Ulatbaansi

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
कविता
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
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कविता
Language:
Hindi
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Hardback

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SKU 9788126317509 Category
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उलटबाँसी –
सहज लेकिन अलग भावभूमि पर खड़ी कथावस्तु के कारण अपने समकालीनों में दूर से पहचान ली जानेवाली कविता का यह दूसरा कथा-संग्रह ‘उलटबाँसी’ जीवन-मूल्यों में हो रहे परिवर्तनों के द्वन्द्व के बीच आत्मनिर्भरता के विश्वास को रेखांकित करता है।
तेज़ रफ़्तारवाले समय और बदलते परिवेश में नये स्त्री-सत्यों का अन्वेषण करतीं ये कहानियाँ स्त्री-मुक्ति का एक समानान्तर संसार भी बुनती हैं। इस संग्रह की कई कहानियाँ उस सार्वभौम भगिनीवाद के उत्कर्ष की कहानियाँ हैं जो मानता है कि वर्गगत, वर्णगत, धर्मगत और नस्लगत विडम्बनाओं की भुक्तभोगी होने के बावजूद विश्व की प्रायः सभी स्त्रियों में एक अव्यक्त-सा बहनापा पलता है। इस बृहत्तर भावबोध और नये परिवार की अवधारणा ही इन कहानियों का मर्म है।
ये कहानियाँ आधुनिकता और परम्परा के ‘जिरह’ से उपजी ऐसी उलटबाँसियाँ हैं जो न सिर्फ़ पुरानी रूढ़ियों को चुनौती देती हैं, उनके बरअक्स आधुनिक युगबोध का एक नया समाजशास्त्र भी रचती हैं। वह भी ज़िन्दगी के इतने क़रीब कि पाठकों को अपना सा लगे।

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Description

उलटबाँसी –
सहज लेकिन अलग भावभूमि पर खड़ी कथावस्तु के कारण अपने समकालीनों में दूर से पहचान ली जानेवाली कविता का यह दूसरा कथा-संग्रह ‘उलटबाँसी’ जीवन-मूल्यों में हो रहे परिवर्तनों के द्वन्द्व के बीच आत्मनिर्भरता के विश्वास को रेखांकित करता है।
तेज़ रफ़्तारवाले समय और बदलते परिवेश में नये स्त्री-सत्यों का अन्वेषण करतीं ये कहानियाँ स्त्री-मुक्ति का एक समानान्तर संसार भी बुनती हैं। इस संग्रह की कई कहानियाँ उस सार्वभौम भगिनीवाद के उत्कर्ष की कहानियाँ हैं जो मानता है कि वर्गगत, वर्णगत, धर्मगत और नस्लगत विडम्बनाओं की भुक्तभोगी होने के बावजूद विश्व की प्रायः सभी स्त्रियों में एक अव्यक्त-सा बहनापा पलता है। इस बृहत्तर भावबोध और नये परिवार की अवधारणा ही इन कहानियों का मर्म है।
ये कहानियाँ आधुनिकता और परम्परा के ‘जिरह’ से उपजी ऐसी उलटबाँसियाँ हैं जो न सिर्फ़ पुरानी रूढ़ियों को चुनौती देती हैं, उनके बरअक्स आधुनिक युगबोध का एक नया समाजशास्त्र भी रचती हैं। वह भी ज़िन्दगी के इतने क़रीब कि पाठकों को अपना सा लगे।

About Author

कविता - जन्म: 15 अगस्त, 1973 (मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार)। शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी), भारतीय कलानिधि, राष्ट्रीय संग्रहालय, नयी दिल्ली। प्रकाशन: मेरी नाप के कपड़े (कहानी संग्रह)। सम्पादन संयोजन: जवाब दो विक्रमादित्य (साक्षात्कार), मैं हंस नहीं पढ़ता (लेख), अब वे वहाँ नहीं रहते (राजेन्द्र यादव, मोहन राकेश, कमलेश्वर और नामवर सिंह का पत्राचार)। सम्मान: 'अमृतलाल नागर कहानी प्रतियोगिता पुरस्कार' (2003)। 'प्रेमचन्द कथा सम्मान' हेतु कहानी चयनित।

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