Tumhara Namvar (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Namvar Singh, Ed. Ashish Tripathi
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
Author:
Namvar Singh, Ed. Ashish Tripathi
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Hindi
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Hardback

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नामवर सिंह आधुनिक हिन्दी के सबसे बड़े संवादी थे। इस पुस्तक में संकलित पत्र उनके संवादी-भाव को समझने की एक नई दृष्टि देते हैं।
‘तुम्हारा नामवर’ के पहले खंड में परिजनों को लिखे पत्र हैं। मझले भाई रामजी सिंह को सम्बोधित पत्र अनेक दृष्टियों से विशिष्ट हैं। इन पत्रों में आधुनिक एवं पारम्परिक जीवन के द्वन्द्वों के दबावों की अनेक झलकें संकेत रूप में मौजूद हैं। सबसे छोटे भाई काशीनाथ सिंह को लिखे पत्र उन स्थितियों और जीवन-प्रसंगों पर रोशनी डालते हैं जिनमें नामवर सिंह का निर्माण हुआ। व्यक्तिगत पत्रों में बेटी समीक्षा को दार्जिलिंग से लिखे गए दस पत्रों का एक अलग ही महत्त्व है। अठहत्तर वर्ष की अवस्था में गहन भावनाओं से भरे हुए ये पत्र ‘चिट्ठी भी हैं और डायरी भी’। इन्हें हिन्दी की हँसमुख और दिलख़ुश गद्य परम्परा में सम्मान के साथ रखा जा सकता है।
दूसरे खंड में साहित्य-सहचरों—केदारनाथ अग्रवाल, मुक्तिबोध, राजेन्द्र यादव, विश्वनाथ त्रिपाठी, रवीन्द्र कालिया, कमला प्रसाद, नंदकिशोर नवल और महेन्द्रनाथ राय—को लिखे गए पत्र संकलित हैं। इन पत्रों में एक पाठक के रूप में नामवर जी अपने समय-साहित्य के विभिन्न मुद्दों पर न सिर्फ़ बातचीत की एक वृहद् ज़मीन तैयार करते दिखते हैं, बल्कि लेखक व सम्पादक के रूप में अपनी ज़िम्मेदारी भी निभाते नज़र आते हैं। तीसरे खंड में श्रीनारायण पांडेय के नाम लिखे गए पत्रों को व्यक्तिगत-पारिवारिक पत्रों की शृंखला में ही रखा जा सकता है। पांडेय जी 1952-1954 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में नामवर जी के छात्र रहे हैं। ये पत्र काशीनाथ सिंह के नाम पत्रों की ही तरह महत्त्वपूर्ण हैं। नामवर जी के व्यक्तित्व के छिपे हुए रूपों के साथ ही उनके राजनीतिक, सामाजिक और साहित्यिक विचारों की गम्भीर झलक इन पत्रों में मौजूद है।
इस पुस्तक से बाहर भी अभी हज़ारों पत्र लोगों के निजी संग्रह में मौजूद होंगे। उन्हें भी प्राप्त होने के बाद अगले संस्करण में शामिल कर लिया जाएगा। बावजूद इसके ‘तुम्हारा नामवर’ में संकलित पत्र हिन्दी आलोचना में ‘दूसरी परम्परा की खोज’ करनेवाले नामवर सिंह के जीवन-अनुभव से निकला वह जीवन-दर्शन हैं जिनके आलोक में केवल अतीत, वर्तमान ही नहीं बल्कि भविष्य का भी बहुत कुछ पढ़ा, समझा और रचा जा सकता है।

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नामवर सिंह आधुनिक हिन्दी के सबसे बड़े संवादी थे। इस पुस्तक में संकलित पत्र उनके संवादी-भाव को समझने की एक नई दृष्टि देते हैं।
‘तुम्हारा नामवर’ के पहले खंड में परिजनों को लिखे पत्र हैं। मझले भाई रामजी सिंह को सम्बोधित पत्र अनेक दृष्टियों से विशिष्ट हैं। इन पत्रों में आधुनिक एवं पारम्परिक जीवन के द्वन्द्वों के दबावों की अनेक झलकें संकेत रूप में मौजूद हैं। सबसे छोटे भाई काशीनाथ सिंह को लिखे पत्र उन स्थितियों और जीवन-प्रसंगों पर रोशनी डालते हैं जिनमें नामवर सिंह का निर्माण हुआ। व्यक्तिगत पत्रों में बेटी समीक्षा को दार्जिलिंग से लिखे गए दस पत्रों का एक अलग ही महत्त्व है। अठहत्तर वर्ष की अवस्था में गहन भावनाओं से भरे हुए ये पत्र ‘चिट्ठी भी हैं और डायरी भी’। इन्हें हिन्दी की हँसमुख और दिलख़ुश गद्य परम्परा में सम्मान के साथ रखा जा सकता है।
दूसरे खंड में साहित्य-सहचरों—केदारनाथ अग्रवाल, मुक्तिबोध, राजेन्द्र यादव, विश्वनाथ त्रिपाठी, रवीन्द्र कालिया, कमला प्रसाद, नंदकिशोर नवल और महेन्द्रनाथ राय—को लिखे गए पत्र संकलित हैं। इन पत्रों में एक पाठक के रूप में नामवर जी अपने समय-साहित्य के विभिन्न मुद्दों पर न सिर्फ़ बातचीत की एक वृहद् ज़मीन तैयार करते दिखते हैं, बल्कि लेखक व सम्पादक के रूप में अपनी ज़िम्मेदारी भी निभाते नज़र आते हैं। तीसरे खंड में श्रीनारायण पांडेय के नाम लिखे गए पत्रों को व्यक्तिगत-पारिवारिक पत्रों की शृंखला में ही रखा जा सकता है। पांडेय जी 1952-1954 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में नामवर जी के छात्र रहे हैं। ये पत्र काशीनाथ सिंह के नाम पत्रों की ही तरह महत्त्वपूर्ण हैं। नामवर जी के व्यक्तित्व के छिपे हुए रूपों के साथ ही उनके राजनीतिक, सामाजिक और साहित्यिक विचारों की गम्भीर झलक इन पत्रों में मौजूद है।
इस पुस्तक से बाहर भी अभी हज़ारों पत्र लोगों के निजी संग्रह में मौजूद होंगे। उन्हें भी प्राप्त होने के बाद अगले संस्करण में शामिल कर लिया जाएगा। बावजूद इसके ‘तुम्हारा नामवर’ में संकलित पत्र हिन्दी आलोचना में ‘दूसरी परम्परा की खोज’ करनेवाले नामवर सिंह के जीवन-अनुभव से निकला वह जीवन-दर्शन हैं जिनके आलोक में केवल अतीत, वर्तमान ही नहीं बल्कि भविष्य का भी बहुत कुछ पढ़ा, समझा और रचा जा सकता है।

About Author

नामवर सिंह

जन्म-तिथि : 28 जुलाई, 1926; जन्म-स्थान : बनारस ज़ि‍ले का जीयनपुर नामक गाँव। प्राथमिक शिक्षा बग़ल के गाँव आवाजापुर में। कमालपुर से मिडिल। बनारस के हीवेट क्षत्रिय स्कूल से मैट्रिक और उदयप्रताप कॉलेज से इंटरमीडिएट। 1941 में कविता से लेखक जीवन की शुरुआत। पहली कविता उसी साल क्षत्रियमित्रपत्रिका (बनारस) में प्रकाशित। 1949 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से बी.ए. और 1951 में वहीं से हिन्दी में एम.ए.। 1953 में उसी विश्वविद्यालय में व्याख्याता के रूप में अस्थायी पद पर नियुक्ति। 1956 में पीएच.डी. (पृथ्वीराज रासो की भाषा’)। 1959 में चकिया चन्दौली के लोकसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार। चुनाव में असफलता के साथ विश्वविद्यालय से मुक्त। 1959-60 में सागर विश्वविद्यालय (म.प्र.) के हिन्दी विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर। 1960 से 1965 तक बनारस में रहकर स्वतंत्र लेखन। 1965 में जनयुगसाप्ताहिक के सम्पादक के रूप में दिल्ली में। इस दौरान दो वर्षों तक राजकमल प्रकाशन (दिल्ली) के साहित्यिक सलाहकार। 1967 से आलोचनात्रैमासिक का सम्पादन। 1970 में जोधपुर विश्वविद्यालय (राजस्थान) के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष-पद पर प्रोफ़ेसर के रूप में नियुक्त। 1971 में कविता के नए प्रतिमान पर साहित्य अकादेमी का पुरस्कार। 1974 में थोड़े समय के लिए क.मा.मुं. हिन्दी विद्यापीठ, आगरा के निदेशक। उसी वर्ष जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (दिल्ली) के भारतीय भाषा केन्द्र में हिन्दी के प्रोफ़ेसर के रूप में योगदान। 1987 में वहीं से सेवा-मुक्त। अगले पाँच वर्षों के लिए वहीं पुनर्नियुक्ति। 1993 से 1996 तक राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष। आलोचना त्रैमासिक के प्रधान सम्पादक। महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलाधिपति रहे। वे आलोचनात्रैमासिक के प्रधान सम्पादक भी रहे।

प्रमुख कृतियाँ : बकलम ख़ुद, हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ, पृथ्वीराज रासो की भाषा, इतिहास और आलोचना, कहानी : नई कहानी, कविता के नए प्रतिमान, दूसरी परम्परा की खोज, वाद विवाद संवाद, आलोचक के मुख से, हिन्दी का गद्यपर्व, ज़माने से दो दो हाथ, कविता की ज़मीन ज़मीन की कविता, प्रेमचन्द और भारतीय समाज (आलोचना); कहना न होगा (साक्षात्कार); काशी के नाम (पत्र) आदि। 

रामचन्द्र शुक्ल रचनावली सहित अनेक पुस्तकों का सम्पादन।

निधन : 19 फरवरी, 2019

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