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Tum Kahan Ho, Naveen Bhai ?
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Prakash Manu
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Prakash Manu
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹400 ₹280
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1-4 Days
In stock
Book Type |
---|
ISBN:
Categories: General Fiction, Hindi
Page Extent:
176
उफ! उसने तो इतनी जल्दी की अपनी भूमिका जल्दी-जल्दी निभाने के बाद दृश्य से गायब होने की कि आश्चर्य-परम प्राश्चर्य! मानो जिंदगी में हर मोरचे पर हारने और हर मोरचे पर मुझसे पीछे, बहुत पीछे रहनेवाला नवीन आगे निकलने को इस बुरी तरह बेताब हो कि उसने अपने भीतर का सारा बल समेटकर और सबकुछ दाँव पर लगाकर एक अंतिम लंबी छलाँग यह कहते हुए गलाई कि लो भाई साहब, अब खुद को सँभालो, मैं चला!…कि लो भाई साहब, यह रही शह! अब सँभालो अपना बादशाह…कि खत्म, खेल खतम । और यह…मैं चला! और मैं सचमुच समझ नहीं पाया कि मरा नवीन है या मैं? मैं या नवीन? वही नवीन, सदा का दीवाना और अपराजेय नवीन, यों मुझे चिढ़ाकर चला गया…कि पहले मेरे हाथ-पैरों में एक तीखी सर्पिल टकार, एक प्रचंड ललकार-सी पैदा हुई कि साले, तू क्या यों मुझे धोखा देकर जा सकता है? आ, इधर आ… आ, देखता हूँ तुझे! और फिर अचानक मेरे हाथ-पैर जैसे सुन्न हो जाते हैं कि जैसे उनमें जान ही नहीं…कि जैसे लकवा… क्या मैं कहूँ? बताइए मैं किन शब्दों में कहूँ कि इतना दुःख… आत्मा को यों छीलनेवाला, बल्कि… आत्मा का छिलका- छिलका उतार देनेवाला इतना गहरा दुःख और इतना ठंडा सन्नाटा मैंने अपने जीवन में कभी न झेला था । -ड़सी संग्रह से.
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Naveen Bhai ?” Cancel reply
Description
उफ! उसने तो इतनी जल्दी की अपनी भूमिका जल्दी-जल्दी निभाने के बाद दृश्य से गायब होने की कि आश्चर्य-परम प्राश्चर्य! मानो जिंदगी में हर मोरचे पर हारने और हर मोरचे पर मुझसे पीछे, बहुत पीछे रहनेवाला नवीन आगे निकलने को इस बुरी तरह बेताब हो कि उसने अपने भीतर का सारा बल समेटकर और सबकुछ दाँव पर लगाकर एक अंतिम लंबी छलाँग यह कहते हुए गलाई कि लो भाई साहब, अब खुद को सँभालो, मैं चला!…कि लो भाई साहब, यह रही शह! अब सँभालो अपना बादशाह…कि खत्म, खेल खतम । और यह…मैं चला! और मैं सचमुच समझ नहीं पाया कि मरा नवीन है या मैं? मैं या नवीन? वही नवीन, सदा का दीवाना और अपराजेय नवीन, यों मुझे चिढ़ाकर चला गया…कि पहले मेरे हाथ-पैरों में एक तीखी सर्पिल टकार, एक प्रचंड ललकार-सी पैदा हुई कि साले, तू क्या यों मुझे धोखा देकर जा सकता है? आ, इधर आ… आ, देखता हूँ तुझे! और फिर अचानक मेरे हाथ-पैर जैसे सुन्न हो जाते हैं कि जैसे उनमें जान ही नहीं…कि जैसे लकवा… क्या मैं कहूँ? बताइए मैं किन शब्दों में कहूँ कि इतना दुःख… आत्मा को यों छीलनेवाला, बल्कि… आत्मा का छिलका- छिलका उतार देनेवाला इतना गहरा दुःख और इतना ठंडा सन्नाटा मैंने अपने जीवन में कभी न झेला था । -ड़सी संग्रह से.
About Author
जन्म : 12 मई, 1950, शिकोहाबाद ( उप्र.)।
प्रकाशन : ' यह जो दिल्ली है ', ' कथा सर्कस ', ' पापा के जाने के बाद ' ( उपन्यास); ' मेरी श्रेष्ठ कहानियाँ ', ' मिसेज मजूमदार ', ' जिंदगीनामा एक जीनियस का ', ' तुम कहाँ हो नवीन भाई ', ' सुकरात मेरे शहर में ', ' अंकल को विश नहीं करोगे? ', ' दिलावर खड़ा है ' ( कहानियाँ); ' एक और प्रार्थना ', ' छूटता हुआ घर ', ' कविता और कविता के बीच ' (कविता); ' मुलाकात ' (साक्षात्कार), ' यादों का कारवाँ ' (संस्मरण), ' हिंदी बाल कविता का इतिहास ', ' बीसवीं शताब्दी के अंत में उपन्यास ' ( आलोचना/इतिहास); ' देवेंद्र सत्यार्थी : प्रतिनिधि रचनाएँ ', ' देवेंद्र सत्यार्थी : तीन पीढ़ियों का सफर ', ' देवेंद्र सत्यार्थी की चुनी हुई कहानियाँ ', ' सुजन सखा हरिपाल ', ' सदी के आखिरी दौर में ' (संपादित) तथा विपुल बाल साहित्य का सृजन ।
पुरस्कार :
कविता-संग्रह ' छूटता हुआ घर ' पर प्रथम गिरिजाकुमार माथुर स्मृति पुरस्कार, हिंदी अकादमी का ' साहित्यकार सम्मान ' तथा साहित्य अकादेमी के ' बाल साहित्य पुरस्कार ' से सम्मानित। ढाई दशकों तक हिंदुस्तान टाइम्स की बाल पत्रिका 'नंदन' के संपादकीय विभाग से संबद्ध रहे । इन दिनों बाल साहित्य की कुछ बड़ी योजनाओं को पूरा करने में जुटे हैं तथा लोकप्रिय साहित्यिक पत्रिका ' साहित्य अमृत ' के संयुक्त संपादक भी हैं।"
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