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Tootne Ke Baad

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
संजय कुन्दन
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
संजय कुन्दन
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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Book Type

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ISBN:
SKU 9788126318124 Category
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Page Extent:
108

टूटने के बाद –
‘अप्पू को तो पराजित होना ही है हर हाल में। इस समाज को अप्पू नहीं चाहिए।’ युवा रचनाकार संजय कुन्दन का उपन्यास ‘टूटने के बाद’ भारतीय मध्यवर्ग की समकालीन संरचना को परखते हुए व्यापक सामाजिक संवेदना के साथ उसकी समीक्षा करता है। अप्पू की नियति पराजय क्यों है और कैसा है वह समाज जिसको नैतिकता, मनुष्यता, सार्थकता, पक्षधरता और संवेदना से संचालित अप्पू नहीं चाहिए ऐसे बहुत सारे सवाल ‘टूटने के बाद’ में मौजूद हैं। सामान्य से भी निम्न स्थिति से उबरकर बड़े पद तक पहुँचे रमेश और उनकी पत्नी विमला परिस्थितियों के उतार-चढ़ाव या महत्त्वाकांक्षा की दौड़ के कारण अपने-अपने अजनबी बन कर रह जाते हैं। उनके बेटों अभय और अप्पू की अपनी अलग-अलग दुनिया है। अभय अपनी इच्छाओं की राह पर चलते हुए शेष परिवार को अपदस्थ कर देता है। विमला अपनी छोटी बहन कमला के पारिवारिक संघर्ष में जिस तरह हस्तक्षेप करती है उससे उनके जटिल जीवन की राह भी सुगम होती है। कैरियरिस्ट आरुषि और आकाश छूने को आतुर रमेश के घात-प्रतिघात में रमेश की पराजय को संजय कुन्दन ने बेहद रोचक शैली में शब्दबद्ध किया है। अप्पू सार्थकता की तलाश में कार्टून बनाने से लेकर डॉ. कृष्णन के चुनाव में मदद करने तक अपनी ऊर्जा व्यय करता है और उसे उम्मीद की एक पतली-सी लकीर दिख जाती है।
‘टूटने के बाद’ समकालीन पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों का प्रामाणिक चित्रण है। संजय कुन्दन ने अपनी विशिष्ट भाषा शैली में आधुनिकता के अनिवार्य परिणामों को इस उपन्यास में कुशलतापूर्वक चित्रित किया है।

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Description

टूटने के बाद –
‘अप्पू को तो पराजित होना ही है हर हाल में। इस समाज को अप्पू नहीं चाहिए।’ युवा रचनाकार संजय कुन्दन का उपन्यास ‘टूटने के बाद’ भारतीय मध्यवर्ग की समकालीन संरचना को परखते हुए व्यापक सामाजिक संवेदना के साथ उसकी समीक्षा करता है। अप्पू की नियति पराजय क्यों है और कैसा है वह समाज जिसको नैतिकता, मनुष्यता, सार्थकता, पक्षधरता और संवेदना से संचालित अप्पू नहीं चाहिए ऐसे बहुत सारे सवाल ‘टूटने के बाद’ में मौजूद हैं। सामान्य से भी निम्न स्थिति से उबरकर बड़े पद तक पहुँचे रमेश और उनकी पत्नी विमला परिस्थितियों के उतार-चढ़ाव या महत्त्वाकांक्षा की दौड़ के कारण अपने-अपने अजनबी बन कर रह जाते हैं। उनके बेटों अभय और अप्पू की अपनी अलग-अलग दुनिया है। अभय अपनी इच्छाओं की राह पर चलते हुए शेष परिवार को अपदस्थ कर देता है। विमला अपनी छोटी बहन कमला के पारिवारिक संघर्ष में जिस तरह हस्तक्षेप करती है उससे उनके जटिल जीवन की राह भी सुगम होती है। कैरियरिस्ट आरुषि और आकाश छूने को आतुर रमेश के घात-प्रतिघात में रमेश की पराजय को संजय कुन्दन ने बेहद रोचक शैली में शब्दबद्ध किया है। अप्पू सार्थकता की तलाश में कार्टून बनाने से लेकर डॉ. कृष्णन के चुनाव में मदद करने तक अपनी ऊर्जा व्यय करता है और उसे उम्मीद की एक पतली-सी लकीर दिख जाती है।
‘टूटने के बाद’ समकालीन पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों का प्रामाणिक चित्रण है। संजय कुन्दन ने अपनी विशिष्ट भाषा शैली में आधुनिकता के अनिवार्य परिणामों को इस उपन्यास में कुशलतापूर्वक चित्रित किया है।

About Author

संजय कुन्दन - जन्म : 7 दिसम्बर, 1969, पटना (बिहार)। शिक्षा : एम. ए. (हिन्दी साहित्य), पटना विश्वविद्यालय। प्रकाशन : काग़ज़ के प्रदेश में, चुप्पी का शोर (कविता-संग्रह), बॉस की पार्टी (कहानी-संग्रह)। पुरस्कार/सम्मान : भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, हेमन्त स्मृति सम्मान।

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