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Too Dekh Tamasha TV Ka
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टीवी ने अपनी तमाशेबाजी के जरिए,पिछले बीस साल में भारतीय समाज को, उसके दिलोदिमाग को जकड़ रखा है। आज कोई भी चर्चा, कोई बात ऐसी नहीं होती जिसके बीच में टीवी के किसी दृश्य का, किसी गीत का, आइटम का संदर्भ न कूद पड़ता हो, ज्ञानी-अज्ञानी सब उसे अनिवार्य संदर्भ मानते हैं। पिछले बीस साल में टीवी एक मात्र निर्णायक माध्यम बन उठा है। इसकी खबरों की ‘आर्थिकी’ है, उसमें लाखों लोग काम करते हैं। उसने मनोरन्जन और पत्रकारिता के परंपरागत नियमों तक को बादल दिया है। यह किताब टीवी की बदलती दुनिया को पाठक के सामने रखती है।
टीवी ने अपनी तमाशेबाजी के जरिए,पिछले बीस साल में भारतीय समाज को, उसके दिलोदिमाग को जकड़ रखा है। आज कोई भी चर्चा, कोई बात ऐसी नहीं होती जिसके बीच में टीवी के किसी दृश्य का, किसी गीत का, आइटम का संदर्भ न कूद पड़ता हो, ज्ञानी-अज्ञानी सब उसे अनिवार्य संदर्भ मानते हैं। पिछले बीस साल में टीवी एक मात्र निर्णायक माध्यम बन उठा है। इसकी खबरों की ‘आर्थिकी’ है, उसमें लाखों लोग काम करते हैं। उसने मनोरन्जन और पत्रकारिता के परंपरागत नियमों तक को बादल दिया है। यह किताब टीवी की बदलती दुनिया को पाठक के सामने रखती है।
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