Thoda Thoda Punna Thoda Thoda Paa (PB)

Publisher:
RADHA
| Author:
Kedar
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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RADHA
Author:
Kedar
Language:
Hindi
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Hardback

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परिपक्व जीवन-अनुभवों और भाषा की गहरी समझ के साथ लिखी गई ये कविताएँ लोकजीवन की आत्मीय छवियों और सामाजिक सरोकारों से उपजी ज़िम्मेदार दृष्टि की परिचायक हैं।
केदार जानते हैं कि ‘एक पूरी ज़िन्दगी लिखना नहीं ठट्ठा-हँसी है / खीर है टेढ़ी’—ये कविताएँ ज़िन्दगी को लिखने के इसी कठिन उद्यम से निर्मित हुई हैं। इन कविताओं का कवि किसी धारा से बाँधा हुआ नहीं है। अनुभूति की प्रामाणिकता और परिवेश की पुनर्रचना केदार के काव्यात्म को एक सघन आयाम देते हैं। बचपन से लेकर जीवन के विभिन्न चरणों के विशिष्ट अनुभव इन कविताओं में उतरे हैं तो बतौर मनुष्य स्वयं से साक्षात्कार से लेकर समाज की स्थूल परिधियों और वहाँ मौजूद विसंगतियों तक उनकी दृष्टि जाती है।
‘सर्कस’, ‘होमवर्क’ और ‘कक्षा’ जैसी पारदर्शी कविताएँ जो बचपन का उत्सव मनाती हुईं हमें अपने सहज छन्द-प्रवाह से निर्भार करती हैं तो ‘नसीहत’ और ‘चिट्ठीरसैन’ जैसी कविताएँ हमें सोच के एक भिन्न और गम्भीर स्तर पर ले जाती हैं।
‘एक-एक शब्द की / चुकानी पड़ती क़ीमत / बहुत जलता लहू / हाथ, उस दिन ख़ाली हो जाता / शब्दों में जिस दिन कुछ / उतरता’—कहने वाले केदार अभिव्यक्ति का दायित्व भी जानते हैं और मूल्य भी।

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Description

परिपक्व जीवन-अनुभवों और भाषा की गहरी समझ के साथ लिखी गई ये कविताएँ लोकजीवन की आत्मीय छवियों और सामाजिक सरोकारों से उपजी ज़िम्मेदार दृष्टि की परिचायक हैं।
केदार जानते हैं कि ‘एक पूरी ज़िन्दगी लिखना नहीं ठट्ठा-हँसी है / खीर है टेढ़ी’—ये कविताएँ ज़िन्दगी को लिखने के इसी कठिन उद्यम से निर्मित हुई हैं। इन कविताओं का कवि किसी धारा से बाँधा हुआ नहीं है। अनुभूति की प्रामाणिकता और परिवेश की पुनर्रचना केदार के काव्यात्म को एक सघन आयाम देते हैं। बचपन से लेकर जीवन के विभिन्न चरणों के विशिष्ट अनुभव इन कविताओं में उतरे हैं तो बतौर मनुष्य स्वयं से साक्षात्कार से लेकर समाज की स्थूल परिधियों और वहाँ मौजूद विसंगतियों तक उनकी दृष्टि जाती है।
‘सर्कस’, ‘होमवर्क’ और ‘कक्षा’ जैसी पारदर्शी कविताएँ जो बचपन का उत्सव मनाती हुईं हमें अपने सहज छन्द-प्रवाह से निर्भार करती हैं तो ‘नसीहत’ और ‘चिट्ठीरसैन’ जैसी कविताएँ हमें सोच के एक भिन्न और गम्भीर स्तर पर ले जाती हैं।
‘एक-एक शब्द की / चुकानी पड़ती क़ीमत / बहुत जलता लहू / हाथ, उस दिन ख़ाली हो जाता / शब्दों में जिस दिन कुछ / उतरता’—कहने वाले केदार अभिव्यक्ति का दायित्व भी जानते हैं और मूल्य भी।

About Author

केदार

केदार उपनाम से साहित्य-सृजन करने वाले केदारनाथ सिंह को राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकरके सबसे छोटे सुपुत्र होने का गौरव प्राप्त है। उनका जन्म 13 फरवरी, 1938 को सिमरिया, बेगूसराय (बिहार) में हुआ था। साहित्यिक संस्कार उन्हें विरासत में मिले हैं और अपने जीवन का सर्वाधिक भाग उन्होंने एक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाज के निर्माण में लगाया है। इसका एक उदाहरण है, राष्ट्रकवि दिनकर का जन्म-स्थान होने के कारण एक सांस्कृतिक तीर्थ का स्वरूप ग्रहण कर चुके सिमरिया में दिनकर जी की स्मृति को समर्पित एक भव्य संग्रहालय और स्मारक का निर्माण। साहित्यिक-सांस्कृतिक उन्नयन के कार्यों और अपनी रचनात्मक अभिरुचियों को मूर्त रूप देने की दिशा में वे आज भी निरन्तर सक्रिय हैं।

उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘आँका सूरज, बाँका सूरज’, ‘थोड़ा-थोड़ा पुन्न, थोड़ा-थोड़ा पाप’ (कविता-संग्रह); ‘सिमरिया-स्तवन’ (काव्य-संस्मरण) और ‘आँखों में नाचते दिन’ (राष्ट्रकवि दिनकर : अन्तरंग संस्मरण)।

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