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Thoda-Sa Ujaala
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Thoda-Sa Ujaala
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
अशोक वाजपेयी
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
अशोक वाजपेयी
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹399 ₹279
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In stock
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10-12 Days
In stock
ISBN:
SKU
9788194939856
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
256
कोरोना महामारी और लॉकडाउन ने नौ महीनों से घरबन्द कर रखा है। लाचार एकान्त ने, संयोग से, रचने-समझने की इच्छा और शक्ति को क्षीण नहीं किया। इस पुस्तक में संगृहीत कविताएँ और ‘कभी-कभार स्तम्भ के लिए हर सप्ताह लिखा गद्य इसी इच्छा और यत्किंचित् शक्ति का साक्ष्य हैं। बहुत कुछ स्थगित हुआ, दूसरे दूर चले गये, हमने उनसे विवश होकर दूरियाँ बना लीं, संवाद रू-ब-रू न होकर अपनी मानवीयता या कम-से-कम गरमाहट खोता रहा पर उनकी भौतिक अनुपस्थिति कविता और गद्य में सजीव उपस्थिति बनी रही। उनका इस तरह आसपास, फिर भी, होना कृतज्ञता से भर देता है। इस अर्थ में यह एक संवाद-पुस्तक है। अगर अब पाठक भी इस संवाद में अपने को शामिल महसूस करेंगे तो मुझे कृतकार्यता का अनुभव होगा। यह भरोसा हमारे भयाक्रान्त समय में ज़रूरी है कि हम अकेले पड़कर भी मनुष्य, थोड़े-बहुत ही सही, बने रहे। शब्द अगर अक्षर भी हैं तो ऐसे समय में वह हमें निर्भय भी करें ऐसी उम्मीद करना चाहिए।
-अशोक वाजपेयी
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Description
कोरोना महामारी और लॉकडाउन ने नौ महीनों से घरबन्द कर रखा है। लाचार एकान्त ने, संयोग से, रचने-समझने की इच्छा और शक्ति को क्षीण नहीं किया। इस पुस्तक में संगृहीत कविताएँ और ‘कभी-कभार स्तम्भ के लिए हर सप्ताह लिखा गद्य इसी इच्छा और यत्किंचित् शक्ति का साक्ष्य हैं। बहुत कुछ स्थगित हुआ, दूसरे दूर चले गये, हमने उनसे विवश होकर दूरियाँ बना लीं, संवाद रू-ब-रू न होकर अपनी मानवीयता या कम-से-कम गरमाहट खोता रहा पर उनकी भौतिक अनुपस्थिति कविता और गद्य में सजीव उपस्थिति बनी रही। उनका इस तरह आसपास, फिर भी, होना कृतज्ञता से भर देता है। इस अर्थ में यह एक संवाद-पुस्तक है। अगर अब पाठक भी इस संवाद में अपने को शामिल महसूस करेंगे तो मुझे कृतकार्यता का अनुभव होगा। यह भरोसा हमारे भयाक्रान्त समय में ज़रूरी है कि हम अकेले पड़कर भी मनुष्य, थोड़े-बहुत ही सही, बने रहे। शब्द अगर अक्षर भी हैं तो ऐसे समय में वह हमें निर्भय भी करें ऐसी उम्मीद करना चाहिए।
-अशोक वाजपेयी
About Author
अशोक वाजपेयी हिन्दी कवि-आलोचक, अनुवादक, सम्पादक तथा भारत की एक बड़ी सांस्कृतिक उपस्थिति हैं। कविता की 13 पुस्तकों, आलोचना की 7 पुस्तकों और अंग्रेजी में कला पर 3 पुस्तकों सहित उन्हें संस्कृति के विशिष्ट प्रसारक और नवोन्मेषी संस्था निर्माता के रूप में जाना जाता है। उन्होंने भारतीय और विदेशी संस्कृतियों के मध्य परस्पर जागरूकता और आपसी संवाद को बढ़ाने के लिए अथक प्रयास किया है। कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के सम्पादक के रूप में उन्होंने कविता और आलोचना में युवा प्रतिभाओं और समकालीन तथा शास्त्रीय कलाओं की आलोचनात्मक जागरूकता का प्रसार करने के लिए अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। वे साहित्य, संगीत, नृत्य, नाटक, दृश्यकलाओं, लोक एवं जनजातीय कलाओं, सिनेमा आदि से सम्बन्धित हजारों कार्यक्रमों के आयोजक रहे हैं। उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार, दयावती कवि शेखर सम्मान, भारत भारती और कबीर सम्मान प्रदान किये गये हैं। उनके काव्य संकलनों के अनुवाद अंग्रेजी, फ्रांसीसी, पोलिश, उर्दू, बांग्ला, गुजराती, मराठी और राजस्थानी में हुए हैं। भारत के एक विशिष्ट बुद्धिजीवी श्री वाजपेयी एक सृजनात्मक विश्व पर्यटक हैं, जिन्होंने सम्मेलनों में भाग लेने, व्याख्यान देने के क्रम में कई बार यूरोप आदि का भ्रमण किया है। उन्होंने पोलैण्ड के चार प्रमुख कवियों-चेस्लाव मीलोष, वीस्वावा षिम्बोस्र्का, ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त और तादेऊष रूज़ेविच की कृतियों का हिन्दी अनुवाद किया है। भारतीय प्रशासनिक सेवा से निवृत्त होने के बाद वह दिल्ली में रह रहे हैं। उन्हें पोलैण्ड गणराज्य के राष्ट्रपति द्वारा और फ्रांसीसी सरकार द्वारा अपने उच्च सिविल सम्मानों से विभूषित किया गया है।
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