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The Last Salute
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
राजेश कुमार
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
राजेश कुमार
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹299 ₹209
Save: 30%
In stock
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1-4 Days
In stock
ISBN:
SKU
9789357750097
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
108
इस वक़्त अमेरिका अपने तारीखे पागलपन के इन्तहाई भयानक दौर में दाख़िल हो चुका है।
बुश और उसकी फ़ौज अमेरिकी गुस्से को बिन लादेन से सद्दाम हुसैन की तरफ़ मोड़ने में कामयाब हो चुकी है। शायद ही किसी हुकूमत ने बेहतरीन प्रॉपगैंडा मशीनरी के जरिये लोगों की आँखों में धूल झोंकने में इस क्रद्र कामयाबी हासिल की हो।
सदर बुश ने अमेरिकियों को यह यक़ीन दिला दिया है कि उनकी मेयार-ए-जिन्दगी हमेशा-हमेशा के लिए एक जैसी रहेगी। अगर वे लोग यह नहीं समझते कि ऐसा नामुमकिन है, तो हम सबों को इसकी भारी क्रीमत चुकानी पड़ेगी। अमेरिकियों को समझना चाहिए कि बुश पर उनका भरोसा ग़लत है।
चार्ल्स, आओ सीधी तरह से इस मामले को देखें। दरअसल, जो चीज दाँव पर लगी है। वह ‘ Axis of Evil’ नहीं बल्कि तेल, पैसा और इन्सानी जिन्दगियाँ हैं। सद्दाम की बदकिस्मती यह है कि वह दुनिया के दूसरे बड़े कुएँ पर बैठा है। सीधी और साफ़ बात यह है कि बुश उसे हासिल करना चाहता है।
यह कहना कि बग़दाद अपन पड़ोसियों के लिए और अमेरिका या बरतानिया के लिए ख़तरा है, ऐसा ही है जैसा हाथी का चींटी से मुक़ाबला किया जाये। सद्दाम के ‘weapons of mass destruction’, अगर वाक़ई उसके पास है, तो भी अमेरिकी और इज़राइली हथियारों के मुक़ाबले में राई के बराबर भी नहीं। अमेरिकी और इजराइल के पास हथियारों का ऐसा जखीरा है कि वह पाँच मिनट में सद्दाम का काम तमाम कर सकते हैं। अगर उन्होंने ऐसा किया तो यह दुनिया की बर्बादी की शुरुआत होगी।
यह शायद इकलौता तरीक़ा होंगा, उस बोझ को हल्का करने का जो गोरी चमड़ी वालों ने अपने ऊपर ले रखा है, दुनिया पर हमेशा के लिए हुक्मरानी करने का। अगर इन्सानी नस्ल ख़त्म हो गयी तो कुछ नहीं बिगड़ेगा, मगर ख़तरा यह है कि हम अपने साथ-साथ सभी जानदारों को ले डूबेंगे।
और हम और तुम यह कहने के लिए नहीं बचेंगे कि ‘देखा मैंने कहा था।’
1 महेश भट्ट
प्रसिद्ध लेखक व फ़िल्म निर्देशक
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Description
इस वक़्त अमेरिका अपने तारीखे पागलपन के इन्तहाई भयानक दौर में दाख़िल हो चुका है।
बुश और उसकी फ़ौज अमेरिकी गुस्से को बिन लादेन से सद्दाम हुसैन की तरफ़ मोड़ने में कामयाब हो चुकी है। शायद ही किसी हुकूमत ने बेहतरीन प्रॉपगैंडा मशीनरी के जरिये लोगों की आँखों में धूल झोंकने में इस क्रद्र कामयाबी हासिल की हो।
सदर बुश ने अमेरिकियों को यह यक़ीन दिला दिया है कि उनकी मेयार-ए-जिन्दगी हमेशा-हमेशा के लिए एक जैसी रहेगी। अगर वे लोग यह नहीं समझते कि ऐसा नामुमकिन है, तो हम सबों को इसकी भारी क्रीमत चुकानी पड़ेगी। अमेरिकियों को समझना चाहिए कि बुश पर उनका भरोसा ग़लत है।
चार्ल्स, आओ सीधी तरह से इस मामले को देखें। दरअसल, जो चीज दाँव पर लगी है। वह ‘ Axis of Evil’ नहीं बल्कि तेल, पैसा और इन्सानी जिन्दगियाँ हैं। सद्दाम की बदकिस्मती यह है कि वह दुनिया के दूसरे बड़े कुएँ पर बैठा है। सीधी और साफ़ बात यह है कि बुश उसे हासिल करना चाहता है।
यह कहना कि बग़दाद अपन पड़ोसियों के लिए और अमेरिका या बरतानिया के लिए ख़तरा है, ऐसा ही है जैसा हाथी का चींटी से मुक़ाबला किया जाये। सद्दाम के ‘weapons of mass destruction’, अगर वाक़ई उसके पास है, तो भी अमेरिकी और इज़राइली हथियारों के मुक़ाबले में राई के बराबर भी नहीं। अमेरिकी और इजराइल के पास हथियारों का ऐसा जखीरा है कि वह पाँच मिनट में सद्दाम का काम तमाम कर सकते हैं। अगर उन्होंने ऐसा किया तो यह दुनिया की बर्बादी की शुरुआत होगी।
यह शायद इकलौता तरीक़ा होंगा, उस बोझ को हल्का करने का जो गोरी चमड़ी वालों ने अपने ऊपर ले रखा है, दुनिया पर हमेशा के लिए हुक्मरानी करने का। अगर इन्सानी नस्ल ख़त्म हो गयी तो कुछ नहीं बिगड़ेगा, मगर ख़तरा यह है कि हम अपने साथ-साथ सभी जानदारों को ले डूबेंगे।
और हम और तुम यह कहने के लिए नहीं बचेंगे कि ‘देखा मैंने कहा था।’
1 महेश भट्ट
प्रसिद्ध लेखक व फ़िल्म निर्देशक
About Author
राजेश कुमार
नुक्कड़ नाटक और हाशिये के लोगों के रंगमंच के पक्ष में तनकर खड़े रहने वाले राजेश कुमार का जन्म जनवरी, 958 को बिहार के पटना शहर में हुआ। ये भागलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रिकल ब्रांच में स्नातक हैं। ये जितना क्रान्तिकारी वामधारा से जुड़े हैं, उतना ही अम्बेडकर की समतामूलक विचारधारा से भी। युवा नीति, दिशा, दृष्टि, अभिव्यक्ति और धार जैसी नाट्य संस्थाओं के ज़रिये अपने समय के सांस्कृतिक-सामाजिक आन्दोलनों और वैकल्पिक रंगमंच खड़ा करने की दिशा में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। कोई भी जन आन्दोलन हो, उत्पीड़ित समाज के पक्ष में सबसे अगली कतार में ये खड़े दिखते हैं।
ये नाटक लिखते हैं, अभिनय करते हैं और निर्देशन भी करते हैं। दो दर्जन से अधिक नुक्कड़ नाटक और लगभग उतने ही पूर्णकालिक नाटक अब तक लिख चुके हैं। उनमें जनतन्त्र के मुर्दें, जिन्दाबाद-मुदबिद, हमें बोलने दो, नुक्कड़ों पर, अम्बेडकर और गाँधी, गाँधी ने कहा था, घर वापसी, तफ़्तीश और सुखिया मर गया भूख से मंच पर ख़ूब खेले जाते हैं। ये नाटक लिखने और करने के साथ-साथ राजनीतिक-सामाजिक मुद्दों पर भी सक्रिय रहते हैं। यही कारण है कि इनके नाटकों में सामाजिक विषमताएँ, विडम्बनाएँ और परस्पर संघर्ष बहुत स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
एक दर्जन प्राप्त पुरस्कारों में “उ.प्र. संगीत नाटक अकादमी”, “मोहन राकेश सम्मान” और “कारवाँ-ए-हबीब' प्रमुख हैं।
उ.प्र. पॉवर कारपोरेशन में 33 वर्ष नौकरी करने के बाद मुख्य अभियन्ता के पद से सेवानिवृत्त होकर आजकल नाटक के होलटाइमर रंगकर्मी हैं।
मो. : 9453737307, 639346460
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