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Teesari Parampara Ki Khoj
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
सुधीश पचौरी
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
सुधीश पचौरी
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹295 ₹207
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In stock
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ISBN:
SKU
9789388684125
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
264
यह पुस्तक, हिन्दी साहित्य के उपलब्ध ‘इतिहासों’ की अब तक न देखी गयी ‘सीमाओं को उजागर करते हुए, हिन्दी साहित्य के इतिहास के पुनर्लेखन का एक नया दरवाज़ा खोलती है! उत्तर-आधुनिक नज़रिए, उत्तर-संरचनावादी विखण्डन-पद्धति, मिशेल फूको की इतिहास-लेखन-पद्धति, ग्रीनब्लाट और हैडन व्हाइट आदि के विचारों से विकसित ‘नव्य इतिहासशास्त्र’ ने इतिहास-लेखन के क्षेत्र में आज एक भारी क्रान्ति पैदा कर दी है। इतिहास हमेशा ‘झगड़े की जगह’ हुआ करता है। उपलब्ध इतिहास भी झगड़े की जड़ बने हुए हैं। जिस बीमारी से पुराने इतिहास ग्रस्त थे उसी से इतिहास के नये दावेदार ग्रस्त लगते हैं। एक अतीत की ‘फाल्ट लाइनों को छिपाके चलते हैं तो दूसरे उनको पलटकर इतिहास का हिसाब चुकता करना चाहते हैं।
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Description
यह पुस्तक, हिन्दी साहित्य के उपलब्ध ‘इतिहासों’ की अब तक न देखी गयी ‘सीमाओं को उजागर करते हुए, हिन्दी साहित्य के इतिहास के पुनर्लेखन का एक नया दरवाज़ा खोलती है! उत्तर-आधुनिक नज़रिए, उत्तर-संरचनावादी विखण्डन-पद्धति, मिशेल फूको की इतिहास-लेखन-पद्धति, ग्रीनब्लाट और हैडन व्हाइट आदि के विचारों से विकसित ‘नव्य इतिहासशास्त्र’ ने इतिहास-लेखन के क्षेत्र में आज एक भारी क्रान्ति पैदा कर दी है। इतिहास हमेशा ‘झगड़े की जगह’ हुआ करता है। उपलब्ध इतिहास भी झगड़े की जड़ बने हुए हैं। जिस बीमारी से पुराने इतिहास ग्रस्त थे उसी से इतिहास के नये दावेदार ग्रस्त लगते हैं। एक अतीत की ‘फाल्ट लाइनों को छिपाके चलते हैं तो दूसरे उनको पलटकर इतिहास का हिसाब चुकता करना चाहते हैं।
About Author
जन्मः 29 दिसम्बर, जनपद अलीगढ़। शिक्षाः एम.ए. (हिन्दी) (आगरा विश्वविद्यालय), पीएच.डी. एवं पोस्ट डॉक्टरोल शोध (हिन्दी), दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली। मार्क्सवादी समीक्षक, प्रख्यात स्तम्भकार, मीडिया विशेषज्ञ। चर्चित पुस्तकेंः नई कविता का वैचारिक आधार; कविता का अन्त; दूरदर्शन की भूमिका; दूरदर्शनः स्वायत्तता और स्वतन्त्राता (सं.); उत्तर-आधुनिक परिदृश्य; उत्तर-आधुनिकता और उत्तर संरचनावाद; नवसाम्राज्यवाद और संस्कृति; नामवर के विमर्श (सं.); उत्तर-आधुनिक साहित्य विमर्श; दूरदर्शनः विकास से बाजशर तक; उत्तर-आधुनिक साहित्यिक-विमर्श; देरिदा का विखण्डन और विखण्डन में ‘कामायनी’; मीडिया और साहित्य; टीवी टाइम्स; साहित्य का उत्तरकाण्ड; अशोक वाजपेयी पाठ कुपाठ (सं.); प्रसार भारती और प्रसारण-परिदृश्य; दूरदर्शनः सम्प्रेषण और संस्कृति, स्त्राी देह के विमर्श; आलोचना से आगे; मीडिया, जनतन्त्रा और आतंकवाद; निर्मल वर्मा और उत्तर-उपनिवेशवाद; विभक्ति और विखण्डन; हिन्दुत्व और उत्तर- आधुनिकता; मीडिया की परख; पॉपूलर कल्चर; भूमण्डलीकरण, बाजशर और हिन्दी; टेलीविजन समीक्षाः सिद्धान्त और व्यवहार; उत्तर-आधुनिक मीडिया विमर्श; विंदास बाबू की डायरी; फासीवादी संस्कृति और पॉप-संस्कृति। सम्मानः मध्यप्रदेश साहित्य परिषद् का रामचन्द्र शुक्ल सम्मान (देरिदा का विखण्डन और विखण्डन में ‘कामायनी’); भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार से सम्मानित; दिल्ली हिन्दी अकादमी द्वारा ‘साहित्यकार’ का सम्मान। सम्प्रतिः डीन ऑफ कॉलेजिज, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली।
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