Talabandi

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
प्रभा खेतान
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
प्रभा खेतान
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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तालाबन्दी उपन्यास में मारवाड़ी व्यापारिक घरानों की जीवन झाँकियों को रेखांकित करते हुए प्रभा खेतान यह बताना चाहती हैं कि समय के साथ उनमें भी बदलाव आया है। परम्परागत और इस मानसिकता के स्थान पर नयी सोच और प्रगतिशीलता ने जन्म लिया है। मानवीय संवेदना का भी संचार हुआ है उनमें। तालाबन्दी में श्याम बाबू के चरित्र से जान जायेंगे कि वह अपने कारखाने की श्रमिक समस्या को हल करने के लिए मार्क्सवाद की शरण में जाते हैं। उनका विचार है कि मार्क्स के सिद्धान्त को समझे बिना भला कोई कैसे निदान ढूँढ़ सकता है! श्याम बाबू का आत्मालाप इस कृति को प्राणवान बनाता है, जो अपने परिवार और कारोबार के घेरों में घिरकर उनसे जूझ रहा होता है। तीसरे स्तर पर श्याम बाबू के इर्द-गिर्द की घटनाएँ निरन्तर ट्रेड यूनियनों की गतिविधियों के माध्यम से उनके दोहरे चरित्र को भी उद्घाटित करती चलती हैं। इनके बीच शेखर दा और मास्टर जी जैसे खाँटी कम्यनिस्टों के प्रेरक चेहरे भी हैं। कुल मिलाकर तिरोहित होती हुई मानवीय भावना के प्रति आशा और आस्था जगाता है यह उपन्यास।

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Description

तालाबन्दी उपन्यास में मारवाड़ी व्यापारिक घरानों की जीवन झाँकियों को रेखांकित करते हुए प्रभा खेतान यह बताना चाहती हैं कि समय के साथ उनमें भी बदलाव आया है। परम्परागत और इस मानसिकता के स्थान पर नयी सोच और प्रगतिशीलता ने जन्म लिया है। मानवीय संवेदना का भी संचार हुआ है उनमें। तालाबन्दी में श्याम बाबू के चरित्र से जान जायेंगे कि वह अपने कारखाने की श्रमिक समस्या को हल करने के लिए मार्क्सवाद की शरण में जाते हैं। उनका विचार है कि मार्क्स के सिद्धान्त को समझे बिना भला कोई कैसे निदान ढूँढ़ सकता है! श्याम बाबू का आत्मालाप इस कृति को प्राणवान बनाता है, जो अपने परिवार और कारोबार के घेरों में घिरकर उनसे जूझ रहा होता है। तीसरे स्तर पर श्याम बाबू के इर्द-गिर्द की घटनाएँ निरन्तर ट्रेड यूनियनों की गतिविधियों के माध्यम से उनके दोहरे चरित्र को भी उद्घाटित करती चलती हैं। इनके बीच शेखर दा और मास्टर जी जैसे खाँटी कम्यनिस्टों के प्रेरक चेहरे भी हैं। कुल मिलाकर तिरोहित होती हुई मानवीय भावना के प्रति आशा और आस्था जगाता है यह उपन्यास।

About Author

जन्म: 1 नवम्बर, 1942 शिक्षा: एम.ए. पी-एच.डी. (दर्शनशास्त्र) प्रकाशित कृतियाँ उपन्यास: आओ पेपे घर चलें !, छिन्नमस्ता, पीली आँधी, अग्निसंभवा, तालाबंदी, अपने-अपने चेहरे। कविता: अपरिचित उजाले, सीढ़ियाँ चढ़ती हुई मैं, एक और आकाश की खोज में, कृष्ण धर्मा मैं, हुस्न बानो और अन्य कविताएँ, अहल्या। चिंतन: उपनिवेश में स्त्री, सार्त्र का अस्तित्ववाद, शब्दों का मसीहा: सार्त्र, अल्बेयर कामू: वह पहला आदमी। अनुवाद: साँकलों में कैद कुछ क्षितिज (कुछ दक्षिण अफ्रीकी कविताएँ), स्त्री: उपेक्षिता (सीमोन द बोउवार की विश्व-प्रसिद्ध कृति ‘द सेकंड सेक्स’)। संपादन: एक और पहचान, ‘हंस’ का स्त्री विशेषांक भूमंडलीकरण: पितृसत्ता के नये रूप। निधन: 20 सितम्बर, 2008।

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