Sushil Kumar Phull Ki Lokpriya Kahaniyan

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Sushil Kumar Phull
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Sushil Kumar Phull
Language:
Hindi
Format:
Hardback

263

Save: 25%

In stock

Ships within:
1-4 Days

In stock

Book Type

ISBN:
SKU 9789352662968 Categories , Tag
Categories: ,
Page Extent:
176

कहानी कोई चॉकलेट का टुकड़ा तो नहीं होती कि जिसे जब चाहा जैसा चाहा, साँचे-खाँचे में ढालकर बना लिया, बल्कि कहानी तो वह वैचारिक चिनगारी होती है, जो पाठक के मन में एक चौंध पैदा करती है, उसे एक संवेदनपरक चुभन देती है। परवर्ती सहज कहानी के प्रतिपादक सुशीलकुमार फुल्ल की कहानियों का फलक बहुत व्यापक है। वास्तव में संग्रह की कहानियाँ समाज में व्याप्त तनाव की अंतर्धारा की कहानियाँ हैं, जिनमें निम्नमध्य वर्ग का संघर्ष भी झलकता है और उनकी असहज महत्त्वाकांक्षाएँ भी उनके जीवन को बनाती-बिगाड़ती दिखाई देती हैं। समाज के वंचित, शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति कहानियों को समसामयिक समस्याओं से जोड़ देती है। स्थियों को व्यंग्यात्मक धरातल पर इस प्रकार रोचकता से उकेरा गया है कि पाठक कहानी के साथ बहता चला जाता है। कहानियाँ संश्लिष्ट शैली में लिपटी हुई, छोटे-छोटे सूक्त वाक्यों में गुँथी हुई भावप्रवणता से संपृक्त पात्रों के अंतर्मन में झाँकती हैं और जीवन के अवगुंठनों को सहजता से खोलती हैं। कहीं-कहीं कथा संयोजन में क्लिष्ट होते हुए भी ये कहानियाँ अपनी भाषागत सहजता एवं मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति के कारण पाठक को कथ्य से आत्मसात् होने में सहायक सिद्ध होती हैं। वर्तमान समय की सच्चाइयों, बढ़ते तनावों, राजनीतिक लड़ाइयों, व्यावसायिक द्वेषों, नारी-शोषण, वृद्ध प्रताड़ना आदि विषयों के अतिरिक्त अनेक छोटी-छोटी परंतु समाज को व्यथित कर देनेवाली घटनाओं पर आधारित कहानियाँ समय का दर्पण बनकर उभरी हैं|

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Sushil Kumar Phull Ki Lokpriya Kahaniyan”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

कहानी कोई चॉकलेट का टुकड़ा तो नहीं होती कि जिसे जब चाहा जैसा चाहा, साँचे-खाँचे में ढालकर बना लिया, बल्कि कहानी तो वह वैचारिक चिनगारी होती है, जो पाठक के मन में एक चौंध पैदा करती है, उसे एक संवेदनपरक चुभन देती है। परवर्ती सहज कहानी के प्रतिपादक सुशीलकुमार फुल्ल की कहानियों का फलक बहुत व्यापक है। वास्तव में संग्रह की कहानियाँ समाज में व्याप्त तनाव की अंतर्धारा की कहानियाँ हैं, जिनमें निम्नमध्य वर्ग का संघर्ष भी झलकता है और उनकी असहज महत्त्वाकांक्षाएँ भी उनके जीवन को बनाती-बिगाड़ती दिखाई देती हैं। समाज के वंचित, शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति कहानियों को समसामयिक समस्याओं से जोड़ देती है। स्थियों को व्यंग्यात्मक धरातल पर इस प्रकार रोचकता से उकेरा गया है कि पाठक कहानी के साथ बहता चला जाता है। कहानियाँ संश्लिष्ट शैली में लिपटी हुई, छोटे-छोटे सूक्त वाक्यों में गुँथी हुई भावप्रवणता से संपृक्त पात्रों के अंतर्मन में झाँकती हैं और जीवन के अवगुंठनों को सहजता से खोलती हैं। कहीं-कहीं कथा संयोजन में क्लिष्ट होते हुए भी ये कहानियाँ अपनी भाषागत सहजता एवं मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति के कारण पाठक को कथ्य से आत्मसात् होने में सहायक सिद्ध होती हैं। वर्तमान समय की सच्चाइयों, बढ़ते तनावों, राजनीतिक लड़ाइयों, व्यावसायिक द्वेषों, नारी-शोषण, वृद्ध प्रताड़ना आदि विषयों के अतिरिक्त अनेक छोटी-छोटी परंतु समाज को व्यथित कर देनेवाली घटनाओं पर आधारित कहानियाँ समय का दर्पण बनकर उभरी हैं|

About Author

जन्म: 15 अगस्त, 1941 को पंजाब के एक गाँव काईनौर (जिला रोपड़) में। शिक्षा: पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से आचार्य प्रवर डॉ. गणपतिचंद्र गुप्त के निर्देशन में जायसी पूर्व रचित हिंदी ‘प्रेमाख्यान’ विषय पर पी-एच.डी. की उपाधि अर्जित की। रचना-संसार: 68 से अधिक ग्रंथों के रचयिता डॉ. फुल्ल के 12 कहानी संग्रह, 8 उपन्यास, 6 बाल उपन्यास, 15 आलोचना गं्रथ, अनेक संपादित ग्रंथ एवं उपन्यास अंग्रेजी में, हिंदी से अंग्रेजी तथा अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। पहली कहानी ‘परिव्यक्ता’ शीर्षक से सन् 1959 में प्रकाशित हुई। तत्पश्चात् सभी प्रमुख प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुरस्कार-सम्मान: हिमाचल अकादमी पुरस्कार, चंद्रधर शर्मा गुलेरी पुस्कार, अखिल भारतीय कहानी पुरस्कार, राष्ट्रीय पुरस्कार, भास्कर रचना पुरस्कार, यशपाल कथा सम्मान, हिमाचल कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी पुरस्कार से सम्मानित। हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय के भाषा विभाग, पालमपुर से आचार्य एवं अध्यक्ष पद से सन् 2001 में सेवानिवृत्त के बाद स्वतंत्र लेखन। संपर्क: पुष्पांजलि, राजपुर (पालमपुर)-176061 (हि.प्र.).

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Sushil Kumar Phull Ki Lokpriya Kahaniyan”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED