Suno Charusheela

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
नरेश सक्सेना
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
नरेश सक्सेना
Language:
Hindi
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Hardback

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सुनो चारुशीला –
नरेश सक्सेना हिन्दी के उन चुनिन्दा कवियों में हैं जो बहुत कम लिखते, किन्तु बहुत ज़्यादा पढ़े जाते हैं। इनकी पहली कविता सन् 60 में छपी थी और आज पचास साल के बाद कवि का यह दूसरा ही संकलन है। पहला संकलन ‘समुद्र पर हो रही है बारिश’ को पाठकों का असीम स्नेह व सम्मान मिल चुका है।
नरेश सक्सेना की कविताई हिन्दी कविता के तमाम ‘क्लीशेज़’ को तोड़ती है। नरेश से पहले किसी ने कॉन्क्रीट, सीमेंट, जंग खाये लोहे, गिट्टी आदि को कविता की आँगनबाड़ी में प्रवेश नहीं दिलाया था। कवि पेशे से इंजीनियर रहा है, इसलिए इन चीज़ों का दाख़िला उसकी मार्फ़त हिन्दी कविता में हुआ। यहाँ यह अलग से बताना ज़रूरी है कि कवि ने चौंकाने या अलग दिखने की वृत्ति से इन पर क़लम नहीं चलायी, ये कहीं से कविता की देह को आहत नहीं करते। इसके विपरीत नरेश के यहाँ उनके समकालीनों की निस्बत ज़्यादा छन्द-बोध दिखता है। इस संकलन में तो कुछ गीत भी दर्ज हैं, बाक़ी कविताएँ भी बक़ौल राजेश जोशी ‘लय की कुदाल’ से उत्खनित हैं। एक अदृश्य लयात्मकता आदि से अन्त तक नरेश की कविताओं को बाँधे रखती है। ‘सेतु’, ‘गिरना’, ‘दाग़ धब्बे’, ‘ईश्वर की औक़ात’, ‘चीड़ लदे ट्रक पर’, ‘पानी क्या कर रहा है’ आदि कविताओं की रहनवारी तो पहले से ही पाठकों के ज़ेहन में है, बाकी कविताएँ भी हिन्दी कविता की एक अनिवार्य उपलब्धि की तरह हैं। कविता के प्रदेश में एक अत्यन्त संग्रहणीय कविता संग्रह।—कुणाल सिंह

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सुनो चारुशीला –
नरेश सक्सेना हिन्दी के उन चुनिन्दा कवियों में हैं जो बहुत कम लिखते, किन्तु बहुत ज़्यादा पढ़े जाते हैं। इनकी पहली कविता सन् 60 में छपी थी और आज पचास साल के बाद कवि का यह दूसरा ही संकलन है। पहला संकलन ‘समुद्र पर हो रही है बारिश’ को पाठकों का असीम स्नेह व सम्मान मिल चुका है।
नरेश सक्सेना की कविताई हिन्दी कविता के तमाम ‘क्लीशेज़’ को तोड़ती है। नरेश से पहले किसी ने कॉन्क्रीट, सीमेंट, जंग खाये लोहे, गिट्टी आदि को कविता की आँगनबाड़ी में प्रवेश नहीं दिलाया था। कवि पेशे से इंजीनियर रहा है, इसलिए इन चीज़ों का दाख़िला उसकी मार्फ़त हिन्दी कविता में हुआ। यहाँ यह अलग से बताना ज़रूरी है कि कवि ने चौंकाने या अलग दिखने की वृत्ति से इन पर क़लम नहीं चलायी, ये कहीं से कविता की देह को आहत नहीं करते। इसके विपरीत नरेश के यहाँ उनके समकालीनों की निस्बत ज़्यादा छन्द-बोध दिखता है। इस संकलन में तो कुछ गीत भी दर्ज हैं, बाक़ी कविताएँ भी बक़ौल राजेश जोशी ‘लय की कुदाल’ से उत्खनित हैं। एक अदृश्य लयात्मकता आदि से अन्त तक नरेश की कविताओं को बाँधे रखती है। ‘सेतु’, ‘गिरना’, ‘दाग़ धब्बे’, ‘ईश्वर की औक़ात’, ‘चीड़ लदे ट्रक पर’, ‘पानी क्या कर रहा है’ आदि कविताओं की रहनवारी तो पहले से ही पाठकों के ज़ेहन में है, बाकी कविताएँ भी हिन्दी कविता की एक अनिवार्य उपलब्धि की तरह हैं। कविता के प्रदेश में एक अत्यन्त संग्रहणीय कविता संग्रह।—कुणाल सिंह

About Author

नरेश सक्सेना - 16 जनवरी, 1939 को ग्वालियर में जन्म। जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से बी.ई. (आनर्स), सिविल इंजीनियरिंग तथा ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ हाइजीन ऐंड पब्लिक हेल्थ, कोलकाता से एम.ई. (पी.एच.) हेतु प्रशिक्षण। सागर विश्वविद्यालय में मुक्तिबोध सृजनपीठ पर (दो वर्ष) एवं आई.आई.टी. कानपुर में एक माह आवास हेतु आमन्त्रित। समुद्र पर हो रही है बारिश (कविता-संग्रह); प्रेत, हर क्षण विदा है, दौड़ (नाटक) एक हती मनू (बुन्देली नाटक), आदमी का आ (नुक्कड़ नाटक)। कविता एवं कला की पत्रिका 'आरम्भ' (त्रैमासिक) का सम्पादन विनोद भारद्वाज के साथ, अमरकान्त की रचनाओं पर केन्द्रित 'वर्ष' का सम्पादन। रवीन्द्र कालिया एवं ममता कालिया के साथ, उ.प्र. संगीत नाटक अकादमी की पत्रिका 'छायानट' का सम्पादन एवं 'रचना समय' के कविता विशेषांक का अतिथि सम्पादन। पहल सम्मान, ऋतुराज सम्मान, उ.प्र. शासन का साहित्य भूषण सम्मान, मुकुट बिहारी सरोज स्मृति सम्मान, कविताकोश सम्मान एवं हिन्दी साहित्य सम्मेलन सहित अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित। 'कथाक्रम' पत्रिका में कविता का स्तम्भ लेखन। कविताएँ मराठी, बांग्ला, ओड़िया, मलयालम, पंजाबी, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं में अनूदित।

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