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Sunita Jain ki Lokpriya Kahaniyan

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Sunita Jain
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
Author:
Sunita Jain
Language:
Hindi
Format:
Hardback

225

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SKU 9789386300416 Categories , Tag
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184

समकालीन भारतीय परिदृश्य में प्रस्तुत कहानियाँ और भी अधिक प्रासंगिक हो उठीं है। बहुत पहले ही इन कहानियों ने जैसे अनिष्ट की छाया देख ली हो। माता-पिता के लिए अमेरिका में रह रहे बच्चे भी अजनबी होते जाते हैं। कई वर्षों बाद जब माँ अपने बेटे; बहू और नातियों से मिलने भी जाती हैं तो उसे कई समझौते करने होते हैं। इन कहानियों में गंभीर विमर्श भी है; जिनके माध्यम से सुनीता जैन की ही रचना प्रक्रिया को समझने के सूत्र मिलते हैं। इनकी कहन शैली में एक विशेष गुण यह है कि लेखिका से हम दो स्तरों पर जुड़ते हैं। हमें लगता है कि हम कहानी ‘पढ़’ नहीं रहे; वरन् ‘सुन’ रहे हैं। सुनीता जैन अपने पात्रों को गहन अंधकारमय गुफा में रोशनी की एक सतीर दिखाती हैं। वे हमारी उँगली पकड़ हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलती हैं। अंधकारमय जगत् में वे एक-न-एक रोशनदान खुला रखती हैं।

कब क्या पढ़ना चाहिए और कब क्या नहीं पढ़ना चाहिए की समझ को सुनीता जैन कहानी के मध्य लाती हैं। ऐसा नहीं है कि अमरीकी सभ्यता को दोयम दरजे की घोषित करना लेखिका का मंतव्य हो। वे भारतीयों की फिसलन और सामाजिक ढोंग-ढर्रे की भी अच्छी खबर लेती हैं।
यह संकलन हमारे समकालीन समाज की आलोचना है। ये कहानियाँ स्त्री-पुरुष; घर-परिवार को उसके सामाजिक परिदृश्य में स्थापित करती हैं।

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Description

समकालीन भारतीय परिदृश्य में प्रस्तुत कहानियाँ और भी अधिक प्रासंगिक हो उठीं है। बहुत पहले ही इन कहानियों ने जैसे अनिष्ट की छाया देख ली हो। माता-पिता के लिए अमेरिका में रह रहे बच्चे भी अजनबी होते जाते हैं। कई वर्षों बाद जब माँ अपने बेटे; बहू और नातियों से मिलने भी जाती हैं तो उसे कई समझौते करने होते हैं। इन कहानियों में गंभीर विमर्श भी है; जिनके माध्यम से सुनीता जैन की ही रचना प्रक्रिया को समझने के सूत्र मिलते हैं। इनकी कहन शैली में एक विशेष गुण यह है कि लेखिका से हम दो स्तरों पर जुड़ते हैं। हमें लगता है कि हम कहानी ‘पढ़’ नहीं रहे; वरन् ‘सुन’ रहे हैं। सुनीता जैन अपने पात्रों को गहन अंधकारमय गुफा में रोशनी की एक सतीर दिखाती हैं। वे हमारी उँगली पकड़ हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलती हैं। अंधकारमय जगत् में वे एक-न-एक रोशनदान खुला रखती हैं।

कब क्या पढ़ना चाहिए और कब क्या नहीं पढ़ना चाहिए की समझ को सुनीता जैन कहानी के मध्य लाती हैं। ऐसा नहीं है कि अमरीकी सभ्यता को दोयम दरजे की घोषित करना लेखिका का मंतव्य हो। वे भारतीयों की फिसलन और सामाजिक ढोंग-ढर्रे की भी अच्छी खबर लेती हैं।
यह संकलन हमारे समकालीन समाज की आलोचना है। ये कहानियाँ स्त्री-पुरुष; घर-परिवार को उसके सामाजिक परिदृश्य में स्थापित करती हैं।

About Author

जन्म: 13 जुलाई, 1941, अंबाला। शिक्षा: अमेरिका से एम.ए. और पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त करने के बाद लंबे समय तक आई.आई.टी. दिल्ली में अंग्रेजी की प्रोफेसर व मानविकी विभाग की अध्यक्ष रहीं। कृतित्व: पाँच उपन्यास, पाँच कहानी-संग्रह, तिरपन कविता-संग्रह, चौदह खंडों में समग्र, प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य की पुस्तकें, अनुवाद: आपका बंटी, मेघदूत, ऋतुसंहार, प्रेमचंद: एक कृति, व्यक्तित्व, मूलारूज़ इत्यादि। अंग्रेजी में भी नौ कविता संग्रह, एक उपन्यास, दो कहानी-संग्रह, बाल-साहित्य इत्यादि। सम्मान-पुरस्कार: ‘पद्मश्री’ के अतिरिक्त ‘हरियाणा गौरव’, ‘साहित्य भूषण’, ‘साहित्यकार सम्मान’, ‘महादेवी वर्मा’ व ‘निराला’ नामित सम्मान से सम्मानित। अमेरिका में अपने अंग्रेजी उपन्यास व कहानियों के लिए कई पुरस्कारों से पुरस्कृत। 8वें विश्व हिंदी सम्मेलन, न्यूयॉर्क 2007 में ‘विश्व हिंदी सम्मान’ से सम्मानित हिंदी की पहली कवयित्री। ‘व्यास सम्मान’ 2015। --This text refers to an out of print or unavailable edition of this title.

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