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Sukhfarosh
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
वीरेंद्र जैन
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
वीरेंद्र जैन
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹180 ₹179
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In stock
ISBN:
SKU
9788126318650
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
186
सुखफ़रोश –
‘वह कहावत तो आप पाठकों ने भी ज़रूर सुनी होगी, फिर भी मेरा मन कह रहा है कि एक बार और सुना ही दो कि सोते हुए को जगाना तो मुमकिन है, जागा हुआ होने पर भी सोये हुए होने का अभिनय करने वाले को जगाना नामुमकिन है।’ —वीरेन्द्र जैन के उपन्यास ‘सुखफ़रोश’ के ये वाक्य भारतीय मध्यवर्ग को समझने का सूत्र प्रदान करते हैं। लिप्साओं और लम्पटताओं से लिथड़े समय में ऐसी स्थितियाँ घटित होती हैं कि सहसा विश्वास नहीं होता। अपनी कथा-रचनाओं में विश्वसनीय यथार्थ को प्रस्तुत करना वीरेन्द्र जैन की विशेषता है। वे समाज की ज्वलन्त समस्याओं को चित्रित करनेवाले कथाकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका यह उपन्यास ‘सुखफ़रोश’ भारतीय मध्यवर्ग (विशेषकर महानगरीय मध्यवर्ग) में एक आवेश की तरह व्याप्त बाज़ारवाद-उपभोक्तावाद को केन्द्र में रखकर लिखा गया है। साथ ही इसमें मानवीय सम्बन्धों मंक आते विचित्र परिवर्तनों को भी लक्षित किया गया है। चुटीली भाषा वीरेन्द्र जैन की पहचान है। कार्यालयों के जीवन की भीतरी लाक्षणिकताएँ चित्रित करनेवाले रचनाकारों में वीरेन्द्र जैन का नाम सर्वोपरि है। ‘सुखफ़रोश’ हमारे आज की रोचक गाथा है।
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Description
सुखफ़रोश –
‘वह कहावत तो आप पाठकों ने भी ज़रूर सुनी होगी, फिर भी मेरा मन कह रहा है कि एक बार और सुना ही दो कि सोते हुए को जगाना तो मुमकिन है, जागा हुआ होने पर भी सोये हुए होने का अभिनय करने वाले को जगाना नामुमकिन है।’ —वीरेन्द्र जैन के उपन्यास ‘सुखफ़रोश’ के ये वाक्य भारतीय मध्यवर्ग को समझने का सूत्र प्रदान करते हैं। लिप्साओं और लम्पटताओं से लिथड़े समय में ऐसी स्थितियाँ घटित होती हैं कि सहसा विश्वास नहीं होता। अपनी कथा-रचनाओं में विश्वसनीय यथार्थ को प्रस्तुत करना वीरेन्द्र जैन की विशेषता है। वे समाज की ज्वलन्त समस्याओं को चित्रित करनेवाले कथाकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका यह उपन्यास ‘सुखफ़रोश’ भारतीय मध्यवर्ग (विशेषकर महानगरीय मध्यवर्ग) में एक आवेश की तरह व्याप्त बाज़ारवाद-उपभोक्तावाद को केन्द्र में रखकर लिखा गया है। साथ ही इसमें मानवीय सम्बन्धों मंक आते विचित्र परिवर्तनों को भी लक्षित किया गया है। चुटीली भाषा वीरेन्द्र जैन की पहचान है। कार्यालयों के जीवन की भीतरी लाक्षणिकताएँ चित्रित करनेवाले रचनाकारों में वीरेन्द्र जैन का नाम सर्वोपरि है। ‘सुखफ़रोश’ हमारे आज की रोचक गाथा है।
About Author
वीरेन्द्र जैन –
राजघाट बाँध की डूब में बिला चुके मध्य प्रदेश के सिरसौद गाँव में 5 सितम्बर, (शिक्षक दिवस) 1955 को जन्म। कुछ वर्ष तक प्रकाशन जगत से जुड़े रहने के बाद पिछले तीस वर्ष से पत्रकारिता से सम्बद्ध।
प्रकाशन: अब तक लगभग तीस पुस्तकें प्रकाशित।
प्रमुख: 'डूब', 'पार', 'पंचनामा', 'दे ताली', 'गैल और गन' (उपन्यास); 'बात बात में बात', 'तीन चित्रकथाएँ', 'बीच के बारह बरस', 'भार्या' (कहानी संग्रह); 'बहस बीच में' (व्यंग्य-संग्रह); 'हास्य कथा बत्तीसी' (किशोर कथाएँ); 'अभिवादन और ख़ेद सहित' (फुटकर गद्य)।
सम्पादन: 'ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता साहित्यकार' और 'सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ग्रन्थावली'।
वीरेन्द्र जैन के साहित्य पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में कई शोधार्थियों द्वारा एम.फिल., पीएच. डी.।
पुरस्कार/सम्मान: प्रेमचन्द महेश सम्मान, अखिल भारतीय वीरसिंह देव पुरस्कार (म.प्र. साहित्य परिषद), श्रीकान्त वर्मा स्मृति सम्मान, निर्मल पुरस्कार, साहित्य कृति सम्मान (हिन्दी अकादमी, दिल्ली), वागीश्वरी पुरस्कार (म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन), बाल साहित्य पुरस्कार (हिन्दी अकादमी, दिल्ली), अखिल भारतीय नेताजी सुभाष चन्द्र बोस सम्मान।
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