Subhash Chandra Bose Ki Adhoori Atmkatha

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Sisir Kumar Bose/Sugata Bose
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Sisir Kumar Bose/Sugata Bose
Language:
Hindi
Format:
Hardback

450

Save: 25%

In stock

Ships within:
1-4 Days

In stock

Weight 499 g
Book Type

ISBN:
SKU 9789353224356 Categories , Tag
Categories: ,
Page Extent:
288

सुभाषचंद्र बोस की ‘भारत की खोज’, जवाहरलाल नेहरू की तुलना में उनके जीवन में काफी पहले ही हो गई, यानी उन दिनों वे अपनी किशोरावस्था में ही थे। वर्ष 1912 में पंद्रह वर्षीय सुभाष ने अपनी माँ से पूछा था, ‘स्वार्थ के इस युग में भारत माता के कितने निस्स्वार्थ सपूत हैं, जो अपने निजी स्वार्थ को त्याग कर इस आंदोलन में हिस्सा ले सकते हैं? माँ, क्या तुम्हारा यह बेटा अभी तैयार है?’’ 1921 में भारतीय सिविल सेवा से त्यागपत्र देकर वह आजादी की लड़ाई में कूदने ही वाले थे कि उन्होंने अपने बड़े भाई शरत को पत्र लिखा, ‘‘केवल बलिदान और कष्ट की भूमि पर ही हम अपने राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं।’’ दिसंबर 1937 में बोस ने अपनी आत्मकथा के दस अध्याय लिखे, जिसमें 1921 तक की अपनी जीवन का वर्णन किया था और ‘माई फेथ-फिलॉसोफिकल’ शीर्षक का एक चिंतनशील अध्याय भी था। सदैव ऐसा नहीं होता कि जीवन के बाद के समय में लिखे संस्मरणों को शुरुआती, बचपन के दिनों की प्राथमिक स्रोत की सामग्री के साथ पढ़ा जाए। बोस के बचपन, किशोरावस्था व युवावस्था के दिनों के सत्तर पत्रों का एक आकर्षक संग्रह इस आत्मकथा को समृद्ध बनाता है। इस प्रकार यह ऐसी सामग्री उपलब्ध कराता है, जिसकी सहायता से उन धार्मिक, सांस्कृतिक, नैतिक, बौद्धिक तथा राजनीतिक प्रभावों का अध्ययन किया जा सकता है, जिनसे भारत के इस सर्वप्रथम क्रांतिधर्मी राष्ट्रवादी के चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण हुआ।.

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Subhash Chandra Bose Ki Adhoori Atmkatha”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

सुभाषचंद्र बोस की ‘भारत की खोज’, जवाहरलाल नेहरू की तुलना में उनके जीवन में काफी पहले ही हो गई, यानी उन दिनों वे अपनी किशोरावस्था में ही थे। वर्ष 1912 में पंद्रह वर्षीय सुभाष ने अपनी माँ से पूछा था, ‘स्वार्थ के इस युग में भारत माता के कितने निस्स्वार्थ सपूत हैं, जो अपने निजी स्वार्थ को त्याग कर इस आंदोलन में हिस्सा ले सकते हैं? माँ, क्या तुम्हारा यह बेटा अभी तैयार है?’’ 1921 में भारतीय सिविल सेवा से त्यागपत्र देकर वह आजादी की लड़ाई में कूदने ही वाले थे कि उन्होंने अपने बड़े भाई शरत को पत्र लिखा, ‘‘केवल बलिदान और कष्ट की भूमि पर ही हम अपने राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं।’’ दिसंबर 1937 में बोस ने अपनी आत्मकथा के दस अध्याय लिखे, जिसमें 1921 तक की अपनी जीवन का वर्णन किया था और ‘माई फेथ-फिलॉसोफिकल’ शीर्षक का एक चिंतनशील अध्याय भी था। सदैव ऐसा नहीं होता कि जीवन के बाद के समय में लिखे संस्मरणों को शुरुआती, बचपन के दिनों की प्राथमिक स्रोत की सामग्री के साथ पढ़ा जाए। बोस के बचपन, किशोरावस्था व युवावस्था के दिनों के सत्तर पत्रों का एक आकर्षक संग्रह इस आत्मकथा को समृद्ध बनाता है। इस प्रकार यह ऐसी सामग्री उपलब्ध कराता है, जिसकी सहायता से उन धार्मिक, सांस्कृतिक, नैतिक, बौद्धिक तथा राजनीतिक प्रभावों का अध्ययन किया जा सकता है, जिनसे भारत के इस सर्वप्रथम क्रांतिधर्मी राष्ट्रवादी के चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण हुआ।.

About Author

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Subhash Chandra Bose Ki Adhoori Atmkatha”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED