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Stri Purush Sambandhon Ka Romanchkari Itihas

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
मन्मथनाथ गुप्त
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Vani Prakashan
Author:
मन्मथनाथ गुप्त
Language:
Hindi
Format:
Hardback

487

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10-12 Days

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Book Type

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SKU 9788181433053 Category
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Page Extent:
356

पुरुष और स्त्री की बराबरी या समानता एक मूलभूत, अपरिहार्य मानवीय सिद्धान्त है। पुस्तक में जो कुछ दिखाया गया है, उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि पुरुष और स्त्री के बीच यौन व्यवहार को हम त्याज्य या परिहार्य प्रवृत्ति मानकर नहीं चलते। काम-प्रवृत्ति की चीरफाड़ पुस्तक में की गयी है। केवल धर्मों ने, पैगम्बरों, अवतारों, मनुओं तथा मूसाओं ने ही नहीं, ऐतिहासिक समय के प्रख्यात विद्वानों ने स्त्रियों को समझने में बहुत भारी गलती की है। ऐसी गलतियाँ और अन्याय करनेवाले लोगों में अरस्तू (384-322 ई.पू.) का नाम सर्वोपरि है। वह मानते थे कि दासों का होना ज़रूरी है, दासों के कन्धों पर ही सभ्य संसार पनप सकता है। इसी विचारपद्धति को आगे बढ़ाते हुए वह कहते हैं, जैसा कि बारबरा डेकार्ड ने अपनी पुस्तक ‘दि विमेन्स मूवमेण्ट’ (नारी आन्दोलन) में दिखलाया है ‘हम इस प्रकार इस उपसंहार तक पहुँचते हैं कि यह एक साधारण प्रकृतिक नियम है कि शासक होंगे, साथ ही शासित उपादान दास पर नागरिक का शासन होगा और स्त्री पर पुरुष का। दास कतई विवेचना शक्ति से हीन होता है, स्त्री में कुछ विवेचना शक्ति होती है, पर इतनी नहीं कि वह किसी विषय पर किसी उपसंहार तक पहुँच सके।’

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Description

पुरुष और स्त्री की बराबरी या समानता एक मूलभूत, अपरिहार्य मानवीय सिद्धान्त है। पुस्तक में जो कुछ दिखाया गया है, उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि पुरुष और स्त्री के बीच यौन व्यवहार को हम त्याज्य या परिहार्य प्रवृत्ति मानकर नहीं चलते। काम-प्रवृत्ति की चीरफाड़ पुस्तक में की गयी है। केवल धर्मों ने, पैगम्बरों, अवतारों, मनुओं तथा मूसाओं ने ही नहीं, ऐतिहासिक समय के प्रख्यात विद्वानों ने स्त्रियों को समझने में बहुत भारी गलती की है। ऐसी गलतियाँ और अन्याय करनेवाले लोगों में अरस्तू (384-322 ई.पू.) का नाम सर्वोपरि है। वह मानते थे कि दासों का होना ज़रूरी है, दासों के कन्धों पर ही सभ्य संसार पनप सकता है। इसी विचारपद्धति को आगे बढ़ाते हुए वह कहते हैं, जैसा कि बारबरा डेकार्ड ने अपनी पुस्तक ‘दि विमेन्स मूवमेण्ट’ (नारी आन्दोलन) में दिखलाया है ‘हम इस प्रकार इस उपसंहार तक पहुँचते हैं कि यह एक साधारण प्रकृतिक नियम है कि शासक होंगे, साथ ही शासित उपादान दास पर नागरिक का शासन होगा और स्त्री पर पुरुष का। दास कतई विवेचना शक्ति से हीन होता है, स्त्री में कुछ विवेचना शक्ति होती है, पर इतनी नहीं कि वह किसी विषय पर किसी उपसंहार तक पहुँच सके।’

About Author

क्रांतिकारी और लेखक मन्मथनाथ गुप्त का जन्म 7 फरवरी 1908 को वाराणसी में हुआ था। उनके पिता वीरेश्वर विराटनगर (नेपाल) में एक स्कूल के हेडमास्टर थे। इसलिए मन्मथनाथ गुप्त ने भी दो वर्ष वहीं शिक्षा पाई। बाद में वे वाराणसी आ गए। उस समय के राजनीतिक वातावरण का प्रभाव उन पर भी पड़ा और 1921 में ब्रिटेन के युवराज के बहिष्कार का नोटिस बाँटते हुए गिरफ्तार कर लिए गए और तीन महीने की सजा हो गई। जेल से छूटने पर उन्होंने काशी विद्यापीठ में प्रवेश लिया और वहाँ से विशारद की परीक्षा उत्तीर्ण की। तभी उनका संपर्क क्रांतिकारियों से हुआ और मन्मथ पूर्णरूप से क्रांतिकारी बन गए। 1925 के प्रसिद्ध काकोरी कांड में उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया। ट्रेन रोककर ब्रिटिश सरकार का खजाना लूटने वाले 10 व्यक्तियों में वे भी सम्मिलित थे। इसके बाद गिरफ्तार हुए, मुकदमा चला और 14 वर्ष के कारावास की सजा हो गई। ये मात्र 13 वर्ष की आयु में ही स्वतन्त्रता संग्राम में कूद गये और जेल गये। बाद में वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य भी बने। लेखन कार्य लेखन के प्रति उनकी प्रवृत्ति पहले से ही थी। जेल जीवन के अध्ययन और मनन ने उसे पुष्ट किया। छूटने पर उन्होंने विविध विधाओं में विपुल साहित्य की रचना की। उनके प्रकाशित ग्रंथों की संख्या 80 से अधिक है। निधन प्रसिद्ध क्रांतिकारी और सिद्धहस्त लेखक मन्मथनाथ गुप्त का निधन 26 अक्टूबर 2000 में हुआ।

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