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Stri Chintan : Samajik-Sahityik Drishti

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
डॉ. गोपीराम शर्मा / डॉ. घनश्याम बैरवा
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
डॉ. गोपीराम शर्मा / डॉ. घनश्याम बैरवा
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Hindi
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Hardback

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SKU 97893355183453 Category
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Page Extent:
288

स्त्री चिन्तन : सामाजिक-साहित्यिक दृष्टि –
मनुष्य और मनुष्य समाज की आज तक की जीवन-यात्रा ने पर्याप्त प्रगति की है। हमारा समाज उत्तरोत्तर सभ्य और विकसित समाज में बदल रहा है। लेकिन मनुष्य समाज की इस वैभवपूर्ण यात्रा में यह बहुत दुखद है कि समाज का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष ‘स्त्री’ समान रूप से पोषित नहीं हो पाया। हमारी सामाजिक व्यवस्था का मुख्य अंग निश्चय रूप से ‘स्त्री’ है। स्त्री की अनुपस्थिति हो तो समाज व्यवस्थित कभी नहीं हो सकता। इसका कारण यह है कि मनोवैज्ञानिक और सामाजिक स्तर पर स्त्री मज़बूत, विश्वसनीय और आदतन विचारों और रिश्ते निभाने में पुरुषों की तुलना में अधिक व्यवस्थित होती है। मनोविज्ञान तो यह भी कहता है कि किसी स्त्री में स्त्री तत्त्व के साथ पुरुष तत्त्व भी विद्यमान होता है और इसी प्रकार पुरुष में पुरुषतत्व के साथ स्त्री तत्त्व। समाज, सहयोग, साहचर्य व सामुदायिक भावों के विकसित होने के लिए पुरुष में ‘स्त्री तत्त्व’ को बढ़ा हुआ होना आवश्यक है। जब पुरुष तत्त्व बढ़ता है तो अलगाव, विखण्डन व संघर्ष जन्म लेता है। इस पुस्तक का उद्देश्य है कि यह स्त्री-चिन्तन के विविध बिन्दुओं का उद्घाटन करती है जो स्त्री विमर्श में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

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Description

स्त्री चिन्तन : सामाजिक-साहित्यिक दृष्टि –
मनुष्य और मनुष्य समाज की आज तक की जीवन-यात्रा ने पर्याप्त प्रगति की है। हमारा समाज उत्तरोत्तर सभ्य और विकसित समाज में बदल रहा है। लेकिन मनुष्य समाज की इस वैभवपूर्ण यात्रा में यह बहुत दुखद है कि समाज का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष ‘स्त्री’ समान रूप से पोषित नहीं हो पाया। हमारी सामाजिक व्यवस्था का मुख्य अंग निश्चय रूप से ‘स्त्री’ है। स्त्री की अनुपस्थिति हो तो समाज व्यवस्थित कभी नहीं हो सकता। इसका कारण यह है कि मनोवैज्ञानिक और सामाजिक स्तर पर स्त्री मज़बूत, विश्वसनीय और आदतन विचारों और रिश्ते निभाने में पुरुषों की तुलना में अधिक व्यवस्थित होती है। मनोविज्ञान तो यह भी कहता है कि किसी स्त्री में स्त्री तत्त्व के साथ पुरुष तत्त्व भी विद्यमान होता है और इसी प्रकार पुरुष में पुरुषतत्व के साथ स्त्री तत्त्व। समाज, सहयोग, साहचर्य व सामुदायिक भावों के विकसित होने के लिए पुरुष में ‘स्त्री तत्त्व’ को बढ़ा हुआ होना आवश्यक है। जब पुरुष तत्त्व बढ़ता है तो अलगाव, विखण्डन व संघर्ष जन्म लेता है। इस पुस्तक का उद्देश्य है कि यह स्त्री-चिन्तन के विविध बिन्दुओं का उद्घाटन करती है जो स्त्री विमर्श में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

About Author

सम्पादक - डॉ. गोपीराम शर्मा - जन्म: 5 फ़रवरी, 1976, हनुमानगढ़। शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी), एम.ए. (इतिहास), बी.एड., पीएच.डी. (हिन्दी), स्लेट (हिन्दी), डिप्लोमा इन जर्नलिज़्म एंड मास कम्यूनिकेशन। प्रकाशन: मनोहर श्याम जोशी के साहित्य में आधुनिकता और उत्तर आधुनिकता (पुस्तक), 15 अन्तर्राष्ट्रीय एवं 22 राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में शोध आलेख प्रकाशित। सम्मान: उत्कृष्ट प्राध्यापक सम्मान - 2008, श्रीगंगानगर क्षेत्रीय विकास मंच, (राजस्थान); उत्कृष्ट कार्यक्रम अधिकारी - 2008, रा. से. यो. राज्यस्तरीय पुरस्कार, कॉलेज शिक्षा निदेशालय जयपुर (राजस्थान), उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान - 2017, इनसाइट एकेडमी, अबोहर (पंजाब)। सम्पादक - डॉ. घनश्याम बैरवा - जन्म: 30 नवम्बर, 1972, ग्राम-बाड़ा बाजीदपुर (कैमरी) तहसील-नादौती, ज़िला- करौली। शिक्षा: बी.ए. 1994, एलबीएस महाविद्यालय जयपुर, एम. ए. 1996 (प्रथम श्रेणी) संस्कृत विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर, NET, JRF, SLET, पीएच. डी. (2007), पी.डी.एफ. यूजीसी 2016 लिपिज्ञान: ब्राह्मी, गोड़ी, बांग्ला। लेखन कार्य: काव्यदीपिका (टीका); राजलक्ष्मी स्वयंवर का समीक्षात्मक अध्ययन, ग्रन्थ, आधुनिक संस्कृत साहित्य और संस्कृत पत्रकारिता, ग्रन्थ। सम्मान: रिसर्च अवार्ड यूजीसी (2012-14), श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान 2016, राजस्थान विश्वविद्यालय इंटेलेक्चुअल फॉरम, जयपुर।

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