Maati Kahe Kumhar Se 665

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Stapled Parchiyan

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
प्रगति गुप्ता
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
प्रगति गुप्ता
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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ISBN:
SKU 9789355185105 Category
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Page Extent:
118

स्टेपल्ड पर्चियाँ –

मेरे लिए अपने अन्तः की यात्रा पर निकलना सुखद अहसासों से जुड़ा है; जहाँ पसरे हुए मौन में छुए-अनछुए पहलुओं पर मेरा गुपचुप वार्तालाप होता है। जब शब्दों के सिरे जुड़कर कही-अनकही आवाज़ों की प्रतिध्वनियों को चाहकर भी विस्तार नहीं दे पाते ।… तब अन्तः में पसरा हुआ मौन गडमड हुए शब्दों को उनके अर्थों समेत अपने बाहुपाश में बाँध लेता है। कोई भी यात्रा बहुत थकान भरी हो सकती है, अगर हम उसे महसूस न कर पायें। मगर मैं जब कभी गाहे बगाहे बहुत कुछ टटोलने और खोज करने के लिए इस यात्रा पर निकलती हूँ, हर आवाज़ की प्रतिध्वनि के पीछे छिपी रूह मुझे परत दर परत पढ़ने को उद्वेलित करती है। ऐसी यात्राओं पर निकलना उस मौन से साक्षात्कार होना है, जहाँ मिलने वाली शान्ति, ऊर्जा का स्रोत है। वहाँ सब बहुत आत्मीय है। इस आत्मीय सत्ता का सम्पर्क उस परम सत्ता से है, जो सृजन करवाता है। ऐसे में ईश्वर निमित्त शब्दों के सिरे स्वतः ही बँधते जाते हैं। और कहानियाँ, संस्मरण, लेख, कविताएँ, उन आवाज़ों की प्रतिध्वनियों की ज़रूरत के अनुसार ढलते जाते हैं। जब तक उन प्रतिध्वनियों की व्याख्या मैं अपने पाठकों के लिए नहीं कर लेती, मेरी यात्रा पूर्ण नहीं होती । मैं तभी हर लेखन के बाद उस परम सत्ता के आगे नतमस्तक हो जाती हूँ। और तेरा तुझको अर्पण कर नवीन आवाज़ों की प्रतिध्वनियों को सुनने के लिए नव-यात्रा का सोपान चढ़ती हूँ।

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Description

स्टेपल्ड पर्चियाँ –

मेरे लिए अपने अन्तः की यात्रा पर निकलना सुखद अहसासों से जुड़ा है; जहाँ पसरे हुए मौन में छुए-अनछुए पहलुओं पर मेरा गुपचुप वार्तालाप होता है। जब शब्दों के सिरे जुड़कर कही-अनकही आवाज़ों की प्रतिध्वनियों को चाहकर भी विस्तार नहीं दे पाते ।… तब अन्तः में पसरा हुआ मौन गडमड हुए शब्दों को उनके अर्थों समेत अपने बाहुपाश में बाँध लेता है। कोई भी यात्रा बहुत थकान भरी हो सकती है, अगर हम उसे महसूस न कर पायें। मगर मैं जब कभी गाहे बगाहे बहुत कुछ टटोलने और खोज करने के लिए इस यात्रा पर निकलती हूँ, हर आवाज़ की प्रतिध्वनि के पीछे छिपी रूह मुझे परत दर परत पढ़ने को उद्वेलित करती है। ऐसी यात्राओं पर निकलना उस मौन से साक्षात्कार होना है, जहाँ मिलने वाली शान्ति, ऊर्जा का स्रोत है। वहाँ सब बहुत आत्मीय है। इस आत्मीय सत्ता का सम्पर्क उस परम सत्ता से है, जो सृजन करवाता है। ऐसे में ईश्वर निमित्त शब्दों के सिरे स्वतः ही बँधते जाते हैं। और कहानियाँ, संस्मरण, लेख, कविताएँ, उन आवाज़ों की प्रतिध्वनियों की ज़रूरत के अनुसार ढलते जाते हैं। जब तक उन प्रतिध्वनियों की व्याख्या मैं अपने पाठकों के लिए नहीं कर लेती, मेरी यात्रा पूर्ण नहीं होती । मैं तभी हर लेखन के बाद उस परम सत्ता के आगे नतमस्तक हो जाती हूँ। और तेरा तुझको अर्पण कर नवीन आवाज़ों की प्रतिध्वनियों को सुनने के लिए नव-यात्रा का सोपान चढ़ती हूँ।

About Author

प्रगति गुप्ता - जन्म : 23 सितम्बर 1966, आगरा शिक्षा : एम.ए. आगरा विश्वविद्यालय, आगरा । कार्यक्षेत्र : लेखन व मरीजों की काउंसिलिंग । साहित्यिक उपलब्धियाँ : गगनांचल, मधुमती, नई धारा, साहित्य अमृत, अक्षरा, कथा-बिम्ब, साहित्य-परिक्रमा, राग-भोपाली, राजभाषा विस्तारिका, लमही, कथा-क्रम, हिन्दुस्तानी जुबान, अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका, दैनिक जागरण, दैनिक ट्रिब्यून, दैनिक नवज्योति, पुरवाई... जैसी दर्जनों प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशन व अनुवाद । आकाशवाणी से कहानी और कविताओं का नियमित प्रसारण । प्रकाशित कृतियाँ : तुम कहते तो (2001), शब्दों से परे (2018), सहेजे हुए अहसास (2018), अनुभूतियाँ प्रेम की (सम्पादन), मिलना मुझसे (2019), सुलझे... अनसुलझे! (2019), माँ! तुम्हारे लिए (2020), भेद (2020), पूर्ण-विराम से पहले (2021)। सम्मान और पुरस्कार : 'श्री वासुदेव प्रसाद खरे स्मृति पुरस्कार', 'अदबी उड़ान काव्य साहित्य पुरस्कार', 'साहित्य सृजन सेवा पदक', 'डॉ. कुमुद टिक्कू कहानी प्रतियोगिता', 'साहित्य सारंग' व 'समाज रत्न' आदि । सम्पर्क : 58, सरदार क्लब स्कीम, जोधपुर- 342011 मो. : 09460248348, 07425834878 ई-मेल : pragatigupta.raj@gmail.com

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