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Srishti Ka Mukut : Kailash-Mansarover
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Srishti Ka Mukut : Kailash-Mansarover
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
हरिवंश
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
हरिवंश
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹595 ₹417
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In stock
ISBN:
SKU
9789355185914
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
240
हम नहाने उतरे, सात दिनों बाद नहाना हुआ। दिन के नौ बजे थे। पर, तेज़ धूप थी, फिर भी अत्यन्त ठण्डा पानी, पानी नहीं, बल्कि तरल बर्फ़, बर्फ़ का पिघला अत्यन्त पारदर्शी पानी। 11 जून की सुबह में हम काठमाण्डू में नहाये थे। इसके बाद मानसरोवर में ही स्नान हुआ। पर हमेशा बोध बना रहा कि हम मानसरोवर के जल से स्नान कर रहे हैं। सामान्य जल से, तो मैल धुलती है। कामना है कि इस जल से मन के मैल धुलेंगे। विचारों के मैल धुलेंगे। ईर्ष्या, द्वेष, राग और भोग के मैल से मुक्ति मिलेगी। देर तक हम मानसरोवर के किनारे घूमते रहे। साथ-साथ भव्य कैलास निहारते रहे। विद्यापति के शब्दों में कहें, तो-नयन न तिरपित भेल (नैन तृप्ति नहीं हुई)। आँखें अघायी नहीं।
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Description
हम नहाने उतरे, सात दिनों बाद नहाना हुआ। दिन के नौ बजे थे। पर, तेज़ धूप थी, फिर भी अत्यन्त ठण्डा पानी, पानी नहीं, बल्कि तरल बर्फ़, बर्फ़ का पिघला अत्यन्त पारदर्शी पानी। 11 जून की सुबह में हम काठमाण्डू में नहाये थे। इसके बाद मानसरोवर में ही स्नान हुआ। पर हमेशा बोध बना रहा कि हम मानसरोवर के जल से स्नान कर रहे हैं। सामान्य जल से, तो मैल धुलती है। कामना है कि इस जल से मन के मैल धुलेंगे। विचारों के मैल धुलेंगे। ईर्ष्या, द्वेष, राग और भोग के मैल से मुक्ति मिलेगी। देर तक हम मानसरोवर के किनारे घूमते रहे। साथ-साथ भव्य कैलास निहारते रहे। विद्यापति के शब्दों में कहें, तो-नयन न तिरपित भेल (नैन तृप्ति नहीं हुई)। आँखें अघायी नहीं।
About Author
हरिवंश - वर्तमान में राज्यसभा के उपसभापति, हरिवंश देश के जाने-माने पत्रकार रहे हैं। 30 जून, 1956 को बलिया (उ.प्र.) ज़िले के सिताबदियारा (दलजीत टोला) में जन्म। पिता स्व. बाँके बिहारी सिंह, माँ स्वर्गीया देवयानी देवी। आरम्भिक से लेकर माध्यमिक तक की शिक्षा गाँव के स्कूल में ही। आगे की पढ़ाई बनारस में। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए.। वहीं से पत्रकारिता में डिप्लोमा। जे.पी. आन्दोलन सहभागी। लोकप्रिय पत्रिका ‘धर्मयुग’ से पत्रकारीय करियर की शुरुआत। चार दशकों तक सक्रिय पत्रकारिता। बैंकिंग सेवा में भी बतौर अधिकारी काम (1981-84)। जिन पत्र-पत्रिकाओं से सम्बद्ध रहे : 'धर्मयुग’ (1977-1981), 'रविवार' (1985-1989)। अक्टूबर, 1989 में राँची से प्रकाशित 'प्रभात ख़बर’ के प्रधान सम्पादक। प्रधानमन्त्री चन्द्रशेखर के अतिरिक्त सूचना सलाहकार (1990-1991)। बतौर प्रधान सम्पादक पुनः 'प्रभात ख़बर' में (1991-2016)। प्रमुख पुस्तकें : झारखण्ड : समय और सवाल, झारखण्ड : सपने और यथार्थ, झारखण्ड : अस्मिता के आयाम, झारखण्ड : सुशासन अब भी सम्भावना है, जोहार झारखण्ड, सन्तान हूल, झारखण्ड दिसुम मुक्तिगाथा और सृजन के सपने, बिहारनामा, बिहार : रास्ते की तलाश, बिहार : अस्मिता के आयाम, जन सरोकार की पत्रकारिता, शब्द संसार तथा दिल से मैंने दुनिया देखी। चन्द्रशेखर से जुड़ी पाँच किताबों का सम्पादन : चन्द्रशेखर के विचार, चन्द्रशेखर के बारे में, उथल-पुथल और ध्रुवीकरण के बीच (चन्द्रशेखर से संवाद भाग-1), रचनात्मक बेचैनी में (भाग-2), एक दूसरे शिखर से (भाग-3) तथा चन्द्रशेखर की जेल डायरी (दो भागों में)।
अंग्रेज़ी में चन्द्रशेखर की जीवनी-द लास्ट आइकन ऑफ़ आइडियोलॉजिकल पॉलिटिक्स। अनेक देशों की यात्राएँ।
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