Spain Ki Shreshtha Kahaniyan

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Bhadra Sen Puri
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
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Bhadra Sen Puri
Language:
Hindi
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Hardback

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भर्तृहरि संस्कृत के लोकप्रिय कवियों में से एक हैं। संस्कृत साहित्य में उनकी तीन कृतियाँ—‘नीति-शतक’, ‘शृंगार-शतक’ एवं ‘वैराग्य-शतक’ प्रसिद्ध हैं। यद्यपि कवि के रूप में भर्तृहरि का कृतित्व इन तीन शतकों तक ही सीमित है, किंतु गुणात्मक दृष्टि से उसे कवित्व व काव्यकला की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि माना जा सकता है। ‘नीति-शतक’ के सम्यक् अनुशीलन से ज्ञात होता है कि भर्तृहरि ने दुनिया को बड़ी गहराई तथा सूक्ष्म दृष्टि से देखा-समझा था। वस्तुतः कवि ने इस शतक में लोक-व्यवहार, सांसारिक जीवन तथा मानव चरित्र व मानव-मूल्यों के सभी महत्त्वपूर्ण पक्षों का मर्मस्पर्शी विवेचन किया है। भर्तृहरि मनुष्य के व्यक्तित्व में निहित समस्त उदात्त संभावनाओं के चरम उत्कर्ष को अपना अंतिम आदर्श मानते हैं; लेकिन सांसारिक जीवन की विसंगतियों, विकृतियों व क्षुद्रताओं को भी उन्होंने बेझिझक अनावृत किया है। आशा है, ‘नीति-शतक’ का मुक्तछंद में किया गया यह अभिनव हृदयग्राही अनुवाद सुधी पाठकों को उसके अनुपम काव्य-सौंदर्य का आस्वादन कराने में सफल होगा।.

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Description

भर्तृहरि संस्कृत के लोकप्रिय कवियों में से एक हैं। संस्कृत साहित्य में उनकी तीन कृतियाँ—‘नीति-शतक’, ‘शृंगार-शतक’ एवं ‘वैराग्य-शतक’ प्रसिद्ध हैं। यद्यपि कवि के रूप में भर्तृहरि का कृतित्व इन तीन शतकों तक ही सीमित है, किंतु गुणात्मक दृष्टि से उसे कवित्व व काव्यकला की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि माना जा सकता है। ‘नीति-शतक’ के सम्यक् अनुशीलन से ज्ञात होता है कि भर्तृहरि ने दुनिया को बड़ी गहराई तथा सूक्ष्म दृष्टि से देखा-समझा था। वस्तुतः कवि ने इस शतक में लोक-व्यवहार, सांसारिक जीवन तथा मानव चरित्र व मानव-मूल्यों के सभी महत्त्वपूर्ण पक्षों का मर्मस्पर्शी विवेचन किया है। भर्तृहरि मनुष्य के व्यक्तित्व में निहित समस्त उदात्त संभावनाओं के चरम उत्कर्ष को अपना अंतिम आदर्श मानते हैं; लेकिन सांसारिक जीवन की विसंगतियों, विकृतियों व क्षुद्रताओं को भी उन्होंने बेझिझक अनावृत किया है। आशा है, ‘नीति-शतक’ का मुक्तछंद में किया गया यह अभिनव हृदयग्राही अनुवाद सुधी पाठकों को उसके अनुपम काव्य-सौंदर्य का आस्वादन कराने में सफल होगा।.

About Author

जन्म: 6 अक्तूबर, 1932 को जयपुर (राजस्थान) में। शिक्षा: एम.ए. (संस्कृत व हिंदी), पी-एच.डी. (संस्कृत)। व्यवसाय: सेवानिवृत्त प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, मोहनलाल सुखाडि़या विश्वविद्यालय, उदयपुर (राज.)। प्रकाशित कृतियाँ: संस्कृत नाटक में अतिप्राकृत तत्त्व (शोधग्रंथ), ‘सिकता का स्वप्न’ तथा ‘जिंदगी की धूप-छाँह’ (हिंदी कविता-संग्रह), सदाशिवकृत ‘राज-रत्नाकर महाकाव्य’ (हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर संस्कृत मूल पाठ का संपादन एवं अनुवाद), ‘पर्यावरणशतकम्’ (संस्कृत काव्य), ‘भगवद्गीता काव्य’ (गीता का काव्यानुवाद), ‘भर्तृहरि का नीति-शतक’, ‘भर्तृहरि का शृंगार-शतक’, ‘भर्तृहरि का वैराग्य-शतक’ (मुक्तछंदीय काव्यानुवाद), कालिदास कृत ‘ऋतु संहार’, ‘कुमार संभव’ तथा ‘रघुवंश’ महाकाव्य (काव्यानुवाद)। अप्रकाशित कृतियाँ: कालिदास कृत ‘मेघदूत’ (काव्यानुवाद) तथा ‘शोध एवं स्वाध्याय’ (निबंध-संग्रह)। सम्मान: मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार तथा राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली, राजस्थान सरकार तथा राजस्थान संस्कृत अकादमी द्वारा विद्वत्सम्मान।

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