SaleHardback
Sorry Mummy
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
इस्मत चुग़ताई, अनुवाद जानकी प्रसाद शर्मा
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
इस्मत चुग़ताई, अनुवाद जानकी प्रसाद शर्मा
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹295 ₹207
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ISBN:
SKU
9788181433664
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
72
इस्मत की कहानियों का तर्जुमा आसान नहीं । सबसे भारी मुसीबत है-भाषा, क्योंकि इस्मत की कहानियों में विषय के साथ सबसे चौंकाने वाली चीज़ होती है- ‘भाषा’ । आप इस अजीबों-गरीब भाषा का क्या करेंगे? ग़ालिब के अशआर का तर्जुमा यदि मुमकिन है तो इस्मत की कहानियों का भी तर्जुमा हो सकता है। मगर आप जानिये, ग़ालिब तो ग़ालिब थे, ग़ालिब का असल मज़ा तो भाषा में है। बस यही इस्मत को भी ‘छका’ देती है। निगोड़ी, ऐसी अजीबों-गरीब ज़बान का इस्तेमाल करती हैं कि बड़े-बड़ों और अच्छे-अच्छों के पसीने निकल आयें। इस भाषा के लिए अलग से ‘अर्थ’ की दुकान नहीं खोली जा सकती, इसलिए ज़्यादा जगहों पर इस्मत की ख़ूबसूरत ज़बान से ज़्यादा छेड़-छाड़ की कोशिश नहीं की गयी है। हाँ, कहीं-कहीं हिन्दी तर्जुमा ज़रूरी मालूम हुआ है, तो लफ़्ज़ बदले गये हैं ।
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Description
इस्मत की कहानियों का तर्जुमा आसान नहीं । सबसे भारी मुसीबत है-भाषा, क्योंकि इस्मत की कहानियों में विषय के साथ सबसे चौंकाने वाली चीज़ होती है- ‘भाषा’ । आप इस अजीबों-गरीब भाषा का क्या करेंगे? ग़ालिब के अशआर का तर्जुमा यदि मुमकिन है तो इस्मत की कहानियों का भी तर्जुमा हो सकता है। मगर आप जानिये, ग़ालिब तो ग़ालिब थे, ग़ालिब का असल मज़ा तो भाषा में है। बस यही इस्मत को भी ‘छका’ देती है। निगोड़ी, ऐसी अजीबों-गरीब ज़बान का इस्तेमाल करती हैं कि बड़े-बड़ों और अच्छे-अच्छों के पसीने निकल आयें। इस भाषा के लिए अलग से ‘अर्थ’ की दुकान नहीं खोली जा सकती, इसलिए ज़्यादा जगहों पर इस्मत की ख़ूबसूरत ज़बान से ज़्यादा छेड़-छाड़ की कोशिश नहीं की गयी है। हाँ, कहीं-कहीं हिन्दी तर्जुमा ज़रूरी मालूम हुआ है, तो लफ़्ज़ बदले गये हैं ।
About Author
इस्मत चुग़ताई (1912-1992 ई.) उर्दू कथा साहित्य में अपनी बेबाक अभिव्यक्ति के लिए अलग से जानी जाती हैं। उनकी कृतियों में मानवीय करुणा और सक्रिय प्रतिरोध का दुर्लभ सामंजस्य है जिसकी बिना पर उनकी सर्जनात्मक प्रतिमा की एक विशिष्ट पहचान बनती है। अलीगढ़ में अपने चंग्रेजी खानदान के जिस वातावरण में वे पली-बढ़ीं उसमें एक विद्रोही व्यक्तित्व के निर्माण की पुस्ता ज़मीन मौजूद थी। अंगारें (1935) में शामिल महिला कथाकार रशीद जहां से वे बहुत प्रभावित थीं। इसीलिए जब अलीगढ़ में धार्मिक संकीर्णतावादियों ने अंगोर के खिलाफ आवाज़ उठाई तो इस्मत इस आवाज़ को दबानेवाली पहली महिला लेखिका थीं। उस समय इस्मत ने व्यंग्य के साथ कहा था, "अंगारे और वह भी मुसलमानों की जागीरी ज़बान में!” सामाजिक हस्तक्षेप की इस भूमिका के साथ इस्मत की रचना - यात्रा शुरू हुई और उन्होंने उर्दू कथा साहित्य को अपनी बहुमूल्य रचनाओं से समृद्ध किया। उनकी महत्त्वपूर्ण कृतियों में से कुछ इस प्रकार हैं :
उपन्यास : ज़िद्दी (1941), टेढ़ी लकीर (1943), अजीब आदमी (1964), जंगली कबूतर (2004)
कहानी संग्रह : एक बात (1942), दो हाथ, चोटें, सॉरी मम्मी, चिड़ी की दुक्की (2003)
आलोचना : एक क़तरए - खूँ
नाटक : फ़सादी (2003)
आत्मकथा : काग़ज़ी है पैरहन (1994)
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