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Soot Ki Kahani
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
गोपाल कमल
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
गोपाल कमल
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹320 ₹224
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In stock
ISBN:
SKU
9789326350532
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
272
सूत की कहानी –
विश्व की जितनी भी सभ्यताएँ हैं प्राय सभी के प्रारम्भिक इतिहास में ऊन और कपास के सूत से बने वस्त्र का ज़िक्र कमोबेश मिलता है। इसमें भारत और मिस्र की सभ्यताएँ खास उल्लेखनीय हैं। सूती कपड़ों में इन्हें विशेष महारत हासिल रही है… ईसा की कई सदियों पूर्व भूमध्यसागर के तटीय प्रदेशों में भारत के सूती कपड़ों का यह प्रताप था कि अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में उसे व्यापारिक विनिमय में सबसे विश्वसनीय माध्यम के रूप में प्रयोग किया जाता रहा।
भारतीय सूती वस्त्र मात्र कोरे और सफ़ेद ही नहीं बनते थे, उनकी रँगाई-छपाई और उनपर चित्रकारी की कला भी ईसापूर्व कई सदियों से भलीभाँति विकसित होती रहीं।
इसी इतिहास के अरण्य से कथा का सन्धान गोपाल कमल की प्रस्तुत काव्यकृति ‘सूत की कहानी’ का उपजीव्य है। इसमें दरअसल सूत की दिक्काल यात्रा का काव्यमय मानचित्र रचने का विरल प्रयास है। व्यक्तिगत सन्दर्भों और स्मृतियों ने रचना को नितान्त आत्मीय बना दिया है।
कवियों को संस्कृत के काव्याचार्यों ने ‘निरंकुश’ कहा है। वह निरंकुश ज़िद गोपाल कमल में कतई कम नहीं है। जो बातें ललित गद्य में सम्भव थीं उन्हें रचनाकार ने कविता के कलेवर में सफल बनाने का जोखिम उठाया है। और इस दुस्साहसिक जोखिम का परिणाम प्रीतिकर सिद्ध हुआ है। कृति के विषय का अनूठापन निश्चय ही उसे अनूठा बनाता है।—वीरेन्द्र कुमार बरनवाल
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Description
सूत की कहानी –
विश्व की जितनी भी सभ्यताएँ हैं प्राय सभी के प्रारम्भिक इतिहास में ऊन और कपास के सूत से बने वस्त्र का ज़िक्र कमोबेश मिलता है। इसमें भारत और मिस्र की सभ्यताएँ खास उल्लेखनीय हैं। सूती कपड़ों में इन्हें विशेष महारत हासिल रही है… ईसा की कई सदियों पूर्व भूमध्यसागर के तटीय प्रदेशों में भारत के सूती कपड़ों का यह प्रताप था कि अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में उसे व्यापारिक विनिमय में सबसे विश्वसनीय माध्यम के रूप में प्रयोग किया जाता रहा।
भारतीय सूती वस्त्र मात्र कोरे और सफ़ेद ही नहीं बनते थे, उनकी रँगाई-छपाई और उनपर चित्रकारी की कला भी ईसापूर्व कई सदियों से भलीभाँति विकसित होती रहीं।
इसी इतिहास के अरण्य से कथा का सन्धान गोपाल कमल की प्रस्तुत काव्यकृति ‘सूत की कहानी’ का उपजीव्य है। इसमें दरअसल सूत की दिक्काल यात्रा का काव्यमय मानचित्र रचने का विरल प्रयास है। व्यक्तिगत सन्दर्भों और स्मृतियों ने रचना को नितान्त आत्मीय बना दिया है।
कवियों को संस्कृत के काव्याचार्यों ने ‘निरंकुश’ कहा है। वह निरंकुश ज़िद गोपाल कमल में कतई कम नहीं है। जो बातें ललित गद्य में सम्भव थीं उन्हें रचनाकार ने कविता के कलेवर में सफल बनाने का जोखिम उठाया है। और इस दुस्साहसिक जोखिम का परिणाम प्रीतिकर सिद्ध हुआ है। कृति के विषय का अनूठापन निश्चय ही उसे अनूठा बनाता है।—वीरेन्द्र कुमार बरनवाल
About Author
गोपाल कमल -
भारतीय राजस्व सेवा, आयकर आयुक्त, नयी दिल्ली।
शिक्षा: एम.एससी. (भौतिकी), पीएच.डी. (भौतिकी), एल.एल.बी., विद्या वाचस्पति।
प्रकाशित कृतियाँ: हिन्द महासागर का सांस्कृतिक इतिहास, प्रपंच कन्या, पंच कन्या (भारतीय दर्शन के लिए एक उपन्यास परिचय), तीव्र गान्धार (विज्ञान, दर्शन, मिथकों, किंवदन्तियों एवं संस्कृति पर निबन्ध)।
मंचन: पुरखों का जातक (हिन्दी) आइ.जी.एन.सी.ए., नयी दिल्ली। भारतीय जिप्सियों के यूरोप में बसने की, छह परनानी की कहानी।
संगोष्ठी सहभागिता: संस्कृत इन मॉडर्न कोन्टेक्स्ट (हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय); हिडेन फेस ऑफ़ बोरोबुदुर (बोरोबुदुर, इंडोनेशिया); हेरिटेज टूरिज़्म (मुम्बई विश्वविद्यालय, मुम्बई); दक्षिण-पूर्व एशिया का इतिहास (सी-इमेज, संचार महाविद्यालय, पटना)। भारत तथा विदेशी सम्मेलनों में अन्तर्राष्ट्रीय कराधान और भारतीय विद्या को व्याख्यायित किया। भारतीय कला व सौन्दर्यशास्त्र पर विभिन्न संग्रहालयों आदि पर व्याख्यान। आयकर के काम को पी.एम. अवार्ड (2009) के लिए केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, नयी दिल्ली द्वारा प्रस्तावित।
विशेष: पूर्व वैज्ञानिक, भाभा परमाणु अनुसन्धान केन्द्र, मुम्बई। 'पंच कन्या' के लिए अन्तर्राष्ट्रीय इम्पॅक लिटरेरी डब्लिन अवार्ड 2003 के लिए नामांकन। भारतीय विद्या भवन, मुम्बई के भवन्स बुक यूनिवर्सिटी श्रृंखला का प्रकाशन।
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