Smritiyon Ke Moti | “स्मृतियों के मोती” | Prempal Sharma

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Prempal Sharma
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Prabhat Prakashan
Author:
Prempal Sharma
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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200

ऐसा नहीं कि प्रेमपालजी ने सिर्फ यात्रा- वृत्तांत ही लिखे हों। मैंने उनके लिखे लेख, संस्मरण, समीक्षाएँ और आलोचनात्मक लेख भी पढ़े हैं। सभी में उनके सरल प्रीतिमय व्यक्तित्व की झलक है और हृदय की ऐसी सरलता है, जो पाठक के मन में पैठ जाती है। कुछ अरसा पहले प्रेमपालजी ने अपने प्यारे और लाड़ले डॉगी ‘रफ्तार’ के बारे में एक सुंदर सा रेखाचित्र लिखा। वह इतना मार्मिक था कि उसे पढ़ते हुए मेरी आँखें भीग गईं। और एक अजब बात यह थी कि लिखा तो उन्होंने अपने लाडले कुत्ते रफ्तार के बारे में था, पर मुझे उसमें उनके बच्चों और पूरे परिवार की आत्मीय छवि दिखाई दे गई, और मैं मानो उनमें से एक-एक को पहचान पा रहा था । इसी तरह एक बार मैंने उन्हें ‘बालवाटिका’ के लिए अपने बचपन और गुरुजनों के बारे में लिखने को कहा तो उन्होंने संस्मरण लिखते हुए मानो एक पूरा वातावरण निर्मित कर दिया। प्रेमपालजी अपने कर्तव्यनिष्ठ और धुनी अध्यापकों को याद करते हैं, तो उन्हें वे सुमधुर गीत और लंबी कविताएँ तक याद आ जाती हैं, जो उन्होंने छुटपन में अपने अध्यापकों से सुनी थीं। आज कई दशकों बाद भी वे उन्हें इस तरह उकेर रहे थे, जैसे यह कल की ही बात हो। मैंने पढ़ा तो अवाक् रह गया । विस्मित !

मेरे लिए इससे बढ़कर आनंद की बात कुछ और नहीं हो सकती कि प्रेमपाल शर्माजी के संस्मरणों की पुस्तक छप रही है। इन सुखद क्षणों में अपने अंतर्मन के नेह और सद्भावनाओं के साथ मैं यही दुआ कर सकता हूँ कि वे लिखें, निरंतर लिखें, और खूब अच्छा लिखें, जिससे दूसरों के दिलों में भी उजास पैदा हो, और यह दुनिया थोड़ी सी ज्यादा उजली और सुंदर हो जाए !

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ऐसा नहीं कि प्रेमपालजी ने सिर्फ यात्रा- वृत्तांत ही लिखे हों। मैंने उनके लिखे लेख, संस्मरण, समीक्षाएँ और आलोचनात्मक लेख भी पढ़े हैं। सभी में उनके सरल प्रीतिमय व्यक्तित्व की झलक है और हृदय की ऐसी सरलता है, जो पाठक के मन में पैठ जाती है। कुछ अरसा पहले प्रेमपालजी ने अपने प्यारे और लाड़ले डॉगी ‘रफ्तार’ के बारे में एक सुंदर सा रेखाचित्र लिखा। वह इतना मार्मिक था कि उसे पढ़ते हुए मेरी आँखें भीग गईं। और एक अजब बात यह थी कि लिखा तो उन्होंने अपने लाडले कुत्ते रफ्तार के बारे में था, पर मुझे उसमें उनके बच्चों और पूरे परिवार की आत्मीय छवि दिखाई दे गई, और मैं मानो उनमें से एक-एक को पहचान पा रहा था । इसी तरह एक बार मैंने उन्हें ‘बालवाटिका’ के लिए अपने बचपन और गुरुजनों के बारे में लिखने को कहा तो उन्होंने संस्मरण लिखते हुए मानो एक पूरा वातावरण निर्मित कर दिया। प्रेमपालजी अपने कर्तव्यनिष्ठ और धुनी अध्यापकों को याद करते हैं, तो उन्हें वे सुमधुर गीत और लंबी कविताएँ तक याद आ जाती हैं, जो उन्होंने छुटपन में अपने अध्यापकों से सुनी थीं। आज कई दशकों बाद भी वे उन्हें इस तरह उकेर रहे थे, जैसे यह कल की ही बात हो। मैंने पढ़ा तो अवाक् रह गया । विस्मित !

मेरे लिए इससे बढ़कर आनंद की बात कुछ और नहीं हो सकती कि प्रेमपाल शर्माजी के संस्मरणों की पुस्तक छप रही है। इन सुखद क्षणों में अपने अंतर्मन के नेह और सद्भावनाओं के साथ मैं यही दुआ कर सकता हूँ कि वे लिखें, निरंतर लिखें, और खूब अच्छा लिखें, जिससे दूसरों के दिलों में भी उजास पैदा हो, और यह दुनिया थोड़ी सी ज्यादा उजली और सुंदर हो जाए !

About Author

जन्म : 5 जुलाई, 1963 को बुलंदशहर (उ.प्र.) के मीरपुर-जरारा गाँव में। शिक्षा : बी.ए. (ऑनर्स), एम.ए. (दिल्ली विश्‍वविद्यालय, दिल्ली)। कृतित्व : विश्‍व-प्रसिद्ध वनस्पतिविद् एवं वन्यजीव विज्ञानी डॉ. रामेश बेदी के सान्निध्य में अनेक वर्षों तक शोध सहायक के रूप में कार्य एवं बेदी वनस्पति कोश (छह खंड) का सफल संपादन। अब तक आयुर्वेद चिकित्सा संबंधी एवं अन्य विधाओं की सैकड़ों पुस्तकों का संपादन। आयुर्वेद एवं घरेलू चिकित्सा पर पत्र-पत्रिकाओं में अनेक लेख प्रकाशित। ‘सवेरा न्यूज’ साप्‍ताहिक में विगत पाँच वर्षों से स्वास्थ्य कॉलम एवं संपादकीय लेखन के साथ-साथ संपादन कार्य। अंतरराष्‍ट्रीय मानवाधिकार संगठन के सदस्य एवं अ.भा. गैर-सरकारी संस्था ‘सवेरा’ के कोषाध्यक्ष। प्रकाशन : ‘संक्षिप्‍त हिंदी-अंग्रेजी कोश’, ‘निबंध, पत्र एवं कहानी लेखन’, ‘सुबोध हिंदी व्याकरण’, ‘जीवनोपयोगी जड़ी-बूटियाँ’, ‘स्वास्थ्य के रखवाले, शाक-सब्जी-मसाले’, ‘सचित्र जीवनोपयोगी पेड़- पौधे’, ‘कहानी रामायण की’, ‘कहानी महाभारत की’, बाल साहित्य की चार पुस्तकों का अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद। संप्रति : आयुर्वेद पर शोध एवं स्वतंत्र लेखन।

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