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SIRAJ E DIL JAUNPUR
Publisher:
Setu Prakashan
| Author:
AMIT SRIVASTAVA
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Setu Prakashan
Author:
AMIT SRIVASTAVA
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹299 ₹269
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ISBN:
SKU
9788119899791
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
216
जिसमें संस्मरण और स्मृति आख्यान से लेकर ललित निबन्ध तक, गद्य की विविध मनोहारी छटाएँ हैं। ऐसे समय जब मान लिया गया है कि ललित निबन्ध की धारा सूख चुकी है, अमित श्रीवास्तव की यह किताब न सिर्फ़ ऐसी धारणा का प्रत्याख्यान है बल्कि उस धारा को नये इलाक़ों में भी ले जाती है। यों तो इस पुस्तक में संकलित ज्यादातर निबन्धों या स्मृति आख्यानों के केन्द्र में पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक शहर जौनपुर है लेकिन लेखक ने जो रचा है वह सतही वृत्तान्त या विवरणात्मक ज्ञान के सहारे नहीं रचा जा सकता। इस रचाव के लिए बहुत कुछ विरल चाहिए: इतिहास के कोने-अन्तरे तक पहुँच, भूले-बिसरे नायकों की पहचान और उनके अवदान का ज्ञान, इतिहास और साहित्य से लेकर विज्ञान तक में रुचि, स्थानीय जीवन के रंग और विश्वबोध, आदि। इस पुस्तक को पढ़ते हुए किसी को भी हैरानी होगी कि स्थानीय खान-पान और रीति-रिवाज और गली- मोहल्लों के बारे में जिस रोचकता से स्मृति आख्यान लिखे गये हैं उसी तरह से इतिहास में गुम किरदारों और ज्ञान-विज्ञान से जुड़े प्रसंगों के बारे में भी। चाहे जौनपुर के हिन्दी भवन के बारे में लिखा गया स्मृति आख्यान हो, चाहे किसी अल्पज्ञात शख्सियत के योगदान के बारे में, चाहे साहित्य या इतिहास का कोई मसला हो, चाहे कैथी लिपि के चलन से बाहर हो जाने की पड़ताल, आप समान चाव से पढ़ सकते हैं। इन सबसे लेखक का बहुश्श्रुत और बहुपठित व्यक्तित्व उभरता है। इस पुस्तक में संकलित कई निबन्धों के मद्देनजर यह कहा जा सकता है कि ऐसा रसप्रद और खिलन्दड़ा गद्य कहीं और मुश्किल से मिलेगा। ऐसा गद्य लिखते हुए लेखक ने कई जगह नये शब्द भी रचे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस पुस्तक में संकलित कथेतर गद्य की अभिनवता और अनूठेपन को अलक्षित नहीं किया जाएगा।
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Description
जिसमें संस्मरण और स्मृति आख्यान से लेकर ललित निबन्ध तक, गद्य की विविध मनोहारी छटाएँ हैं। ऐसे समय जब मान लिया गया है कि ललित निबन्ध की धारा सूख चुकी है, अमित श्रीवास्तव की यह किताब न सिर्फ़ ऐसी धारणा का प्रत्याख्यान है बल्कि उस धारा को नये इलाक़ों में भी ले जाती है। यों तो इस पुस्तक में संकलित ज्यादातर निबन्धों या स्मृति आख्यानों के केन्द्र में पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक शहर जौनपुर है लेकिन लेखक ने जो रचा है वह सतही वृत्तान्त या विवरणात्मक ज्ञान के सहारे नहीं रचा जा सकता। इस रचाव के लिए बहुत कुछ विरल चाहिए: इतिहास के कोने-अन्तरे तक पहुँच, भूले-बिसरे नायकों की पहचान और उनके अवदान का ज्ञान, इतिहास और साहित्य से लेकर विज्ञान तक में रुचि, स्थानीय जीवन के रंग और विश्वबोध, आदि। इस पुस्तक को पढ़ते हुए किसी को भी हैरानी होगी कि स्थानीय खान-पान और रीति-रिवाज और गली- मोहल्लों के बारे में जिस रोचकता से स्मृति आख्यान लिखे गये हैं उसी तरह से इतिहास में गुम किरदारों और ज्ञान-विज्ञान से जुड़े प्रसंगों के बारे में भी। चाहे जौनपुर के हिन्दी भवन के बारे में लिखा गया स्मृति आख्यान हो, चाहे किसी अल्पज्ञात शख्सियत के योगदान के बारे में, चाहे साहित्य या इतिहास का कोई मसला हो, चाहे कैथी लिपि के चलन से बाहर हो जाने की पड़ताल, आप समान चाव से पढ़ सकते हैं। इन सबसे लेखक का बहुश्श्रुत और बहुपठित व्यक्तित्व उभरता है। इस पुस्तक में संकलित कई निबन्धों के मद्देनजर यह कहा जा सकता है कि ऐसा रसप्रद और खिलन्दड़ा गद्य कहीं और मुश्किल से मिलेगा। ऐसा गद्य लिखते हुए लेखक ने कई जगह नये शब्द भी रचे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस पुस्तक में संकलित कथेतर गद्य की अभिनवता और अनूठेपन को अलक्षित नहीं किया जाएगा।
About Author
पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक प्राचीन शहर जौनपुर में जन्मे अमित श्रीवास्तव भूमण्डलीकृत भारत की उस पीढ़ी के लेखकों में शुमार हैं जो साहित्य की विधागत तोड़-फोड़ एवं नव-निर्माण में रचनारत हैं। गद्य एवं पद्य दोनों ही विधाओं में समान दखल रखने वाले अमित की अब तक प्रकाशित किताबें हैं-बाहर मैं, मैं अन्दर (कविता संग्रह), पहला दखल (संस्मरण), गहन है यह अंधकारा (उपन्यास), कोतवाल का हुक्का (कहानी संग्रह), भूमण्डलीकरण और समकालीन हिन्दी कविता (विचार) और कोविड ब्लूज (डायरी) । समसामयिक राजनीति, अर्थ-व्यवस्था, समाज, खेल, संगीत, इतिहास जैसे विषयों पर अनेक लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं / ऑनलाइन पोर्टल पर प्रकाशित हैं। भाषा की रवानगी, चुटीलेपन एवं साफगोई के लिए जाने जाते हैं। भारतीय पुलिस सेवा में हैं और फ़िलहाल उत्तराखण्ड के देहरादून में रहते हैं।
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