SaleHardback
Sigiriya Puran
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
प्रियदर्शी ठाकुर 'खयाल'
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
प्रियदर्शी ठाकुर 'खयाल'
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹595 ₹417
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ISBN:
SKU
9789357750301
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
206
सीगिरिया पुराण –
“प्राचीन सिंहल के बौद्ध पुराण ‘महावंश’ पर आधारित यह अनूठा उपन्यास हिन्दी कथा साहित्य में एक अछूता व दुर्लभ योगदान है।”
—डॉ. उषाकिरण खान
पद्मश्री से सम्मानित लेखिका व इतिहासज्ञ
पाँचवीं शताब्दी में श्री लंका राजनीतिक गृहकलह व प्रतिशोध का धधकता हुआ जंगल है; त्रि-सिंहल का राजमुकुट तो मानो बच्चों की गेंद हो—जो झपट सके, ले ले। कई महाराज तो कुछ सप्ताह या महीने भी न टिक पाये। किन्तु धातुसेना महाराज पिछले अट्ठारह वर्षों से अनुराधापुर के सिंहासन पर आसीन हैं; फिर वे अपनी बहन को जीवित ही जला कर मृत्युदण्ड देने की भारी भूल कर बैठते हैं।
महाराज का भाँजा मिगार उतने ही निर्मम प्रतिशोध की शपथ लेता है। वह अपनी प्रतिज्ञा एक परिचारिका से उत्पन्न, धातुसेना के बड़े बेटे कश्यप को मोहरा बना कर पूरी करता है, और नाम मात्र को उसे राजा बना देता है। मिगार की कठपुतली बनकर कश्यप उसकी धौंस और अपने किये के पछतावे में रात-दिन घुटता रहता है। क्या कश्यप मिगार की चंगुल से कभी छूट पायेगा? धातुसेना का छोटा बेटा, युवराज मोगल्लान, पल्लव महाराज से सैन्य-सहायता माँगने के लिए भारत पलायन कर जाता है। कश्यप को हर घड़ी चिन्ता लगी रहती है: मोगल्लान न जाने कब कोई विशाल सेना लेकर चढ़ आये। कश्यप जानता है अनुराधापुर-वासी उसे पितृहन्ता मानते हैं; मोगल्लान के आते ही उसके साथ उठ खड़े होंगे। अनुराधापुर में रहना निरापद नहीं। कश्यप नयी राजधानी के लिए कोई ऐसी जगह ढूँढ रहा है जहाँ मोगल्लान न पहुँच सके। अन्ततः वह सुरक्षा कवच उसे मिल तो जाता है, किन्तु समय आने पर क्या वह कारगर भी सिद्ध होगा?
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Description
सीगिरिया पुराण –
“प्राचीन सिंहल के बौद्ध पुराण ‘महावंश’ पर आधारित यह अनूठा उपन्यास हिन्दी कथा साहित्य में एक अछूता व दुर्लभ योगदान है।”
—डॉ. उषाकिरण खान
पद्मश्री से सम्मानित लेखिका व इतिहासज्ञ
पाँचवीं शताब्दी में श्री लंका राजनीतिक गृहकलह व प्रतिशोध का धधकता हुआ जंगल है; त्रि-सिंहल का राजमुकुट तो मानो बच्चों की गेंद हो—जो झपट सके, ले ले। कई महाराज तो कुछ सप्ताह या महीने भी न टिक पाये। किन्तु धातुसेना महाराज पिछले अट्ठारह वर्षों से अनुराधापुर के सिंहासन पर आसीन हैं; फिर वे अपनी बहन को जीवित ही जला कर मृत्युदण्ड देने की भारी भूल कर बैठते हैं।
महाराज का भाँजा मिगार उतने ही निर्मम प्रतिशोध की शपथ लेता है। वह अपनी प्रतिज्ञा एक परिचारिका से उत्पन्न, धातुसेना के बड़े बेटे कश्यप को मोहरा बना कर पूरी करता है, और नाम मात्र को उसे राजा बना देता है। मिगार की कठपुतली बनकर कश्यप उसकी धौंस और अपने किये के पछतावे में रात-दिन घुटता रहता है। क्या कश्यप मिगार की चंगुल से कभी छूट पायेगा? धातुसेना का छोटा बेटा, युवराज मोगल्लान, पल्लव महाराज से सैन्य-सहायता माँगने के लिए भारत पलायन कर जाता है। कश्यप को हर घड़ी चिन्ता लगी रहती है: मोगल्लान न जाने कब कोई विशाल सेना लेकर चढ़ आये। कश्यप जानता है अनुराधापुर-वासी उसे पितृहन्ता मानते हैं; मोगल्लान के आते ही उसके साथ उठ खड़े होंगे। अनुराधापुर में रहना निरापद नहीं। कश्यप नयी राजधानी के लिए कोई ऐसी जगह ढूँढ रहा है जहाँ मोगल्लान न पहुँच सके। अन्ततः वह सुरक्षा कवच उसे मिल तो जाता है, किन्तु समय आने पर क्या वह कारगर भी सिद्ध होगा?
About Author
प्रियदर्शी ठाकुर 'ख़याल' -
जन्म सन् 1946, मोतिहारी; मूल निवासी सिंहवाड़ा (बिहार); पटना विविद्यालय से बी.ए. (इतिहास ऑनर्स); दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए (इतिहास); सन् 1967 से '70 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के भगत सिंह कॉलेज में इतिहास का अध्यापन; सन् 1970 से 2006 तक भारतीय प्रशासनिक सेवा में; 2008 से आगे पूर्णकालिक लेखन एवं अनुवाद कार्य।
'ख़याल' की कविताओं, ग़ज़लों और नज़्मों के आठ संकलन प्रकाशित हैं, और वे उर्दू शायरी के जाने-माने वेबसाइट रेख़्ता.ऑर्ग में सम्मिलित शायर हैं। 'ख़याल' की ग़ज़लें जगजीत सिंह, अहमद हुसैन मोहम्मद हुसैन, डॉ. सुमन यादव आदि ने गायी हैं।
अनुवाद कार्यों में नवीं शताब्दी चीन के विख्यात कवि बाइ जूई की दो सौ कविताओं के उनके हिन्दी अनुवाद के संकलन 'तुम! हाँ, बिलकुल तुम' (भारतीय ज्ञानपीठ) और 'बाँस की टहनियाँ' (साहित्य अकादमी) और तुर्की नोबेल विजेता ओरहान पामुक का उपन्यास 'स्नो' का हिन्दी अनुवाद (पेंगुइन इंडिया) विशेष उल्लेखनीय हैं।
प्रियदर्शी ठाकुर 'खयाल' का पहला उपन्यास 'रानी रूपमती की आत्मकथा' सन् 2020 में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। श्रीलंका के प्राचीन बौद्ध पुराण 'महावंश' पर आधारित इस दूसरे उपन्यास में पर काया प्रवेश द्वारा कथा बाँचने की शैली को बहुमुखी आयाम देने का अभिनव प्रयोग किया गया है।
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