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Brahmin Genocide – The Precursor to Hindu Extinction
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Shri Radha
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
रमाकान्त रथ
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
रमाकान्त रथ
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹90 ₹89
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1-4 Days
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ISBN:
SKU
9789355186218
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
268
श्रीराधा –
व्यक्ति का मन उसके जीवन काल के परे कुछ नहीं सोचता और यदि वह प्रेम करने का निर्णय लेता है तो वह अपने जीवन तथा जीवन काल के बाहर इसे प्राप्त करने की इच्छा नहीं रखता। जीवन के बाहर न तो कोई काल होता है और न स्थान। इसलिए अपने समय को व्यर्थ के कामों में नहीं गँवाया जा सकता, यद्यपि समय अक्षय है पर किसी भी ऐसे कार्य के लिए जो इस प्रेम का अंश नहीं है जीवन में कोई स्थान नहीं है, व्यक्ति जानता है कि सम्बन्ध शाश्वत रूप से बने नहीं रह सकते और उन्हें सन्तोषजनक ढंग से पुनर्व्यवस्थित करने के लिए पर्याप्त समय नहीं होगा, इसलिए उसमें अपने प्रेमी को समझने तथा उसे क्षमा करने की क्षमता भी अधिक होती है।
मैं किसी ऐसी चिड़चिड़ी राधा की कल्पना नहीं कर सकता जो कृष्ण को वृन्दावन छोड़ने के लिए, उस पर निष्ठा न रखने के लिए तथा उसके प्रति उदासीन रहने के लिए चिड़चिड़ाती हो और उसके प्रति प्रेम को मान्यता दिलवाने या उसके साथ रहने के उपाय ढूँढ़ने के लिए उससे कहती हो ऐसा कोई भी आचरण उसके लिए अप्रासंगिक है। प्रारम्भ से ही वह ऐसी कोई आशा नहीं पाले रखती कुण्ठित होकर निराश होने की भी उसके लिए कोई सम्भावना नहीं है। अगर वह निराश हो सकती है तो केवल इसलिए, कि कृष्ण को जिस सहानुभूति तथा संवेदना की आवश्यकता थी, वह उसे न दे सकी। न दे पाने की पीड़ा कुछ लोगों के लिए न ले पाने की पीड़ा से बड़ी होती है।
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Description
श्रीराधा –
व्यक्ति का मन उसके जीवन काल के परे कुछ नहीं सोचता और यदि वह प्रेम करने का निर्णय लेता है तो वह अपने जीवन तथा जीवन काल के बाहर इसे प्राप्त करने की इच्छा नहीं रखता। जीवन के बाहर न तो कोई काल होता है और न स्थान। इसलिए अपने समय को व्यर्थ के कामों में नहीं गँवाया जा सकता, यद्यपि समय अक्षय है पर किसी भी ऐसे कार्य के लिए जो इस प्रेम का अंश नहीं है जीवन में कोई स्थान नहीं है, व्यक्ति जानता है कि सम्बन्ध शाश्वत रूप से बने नहीं रह सकते और उन्हें सन्तोषजनक ढंग से पुनर्व्यवस्थित करने के लिए पर्याप्त समय नहीं होगा, इसलिए उसमें अपने प्रेमी को समझने तथा उसे क्षमा करने की क्षमता भी अधिक होती है।
मैं किसी ऐसी चिड़चिड़ी राधा की कल्पना नहीं कर सकता जो कृष्ण को वृन्दावन छोड़ने के लिए, उस पर निष्ठा न रखने के लिए तथा उसके प्रति उदासीन रहने के लिए चिड़चिड़ाती हो और उसके प्रति प्रेम को मान्यता दिलवाने या उसके साथ रहने के उपाय ढूँढ़ने के लिए उससे कहती हो ऐसा कोई भी आचरण उसके लिए अप्रासंगिक है। प्रारम्भ से ही वह ऐसी कोई आशा नहीं पाले रखती कुण्ठित होकर निराश होने की भी उसके लिए कोई सम्भावना नहीं है। अगर वह निराश हो सकती है तो केवल इसलिए, कि कृष्ण को जिस सहानुभूति तथा संवेदना की आवश्यकता थी, वह उसे न दे सकी। न दे पाने की पीड़ा कुछ लोगों के लिए न ले पाने की पीड़ा से बड़ी होती है।
About Author
रमाकान्त रथ -
ओड़िया के वरिष्ठतम आई.ए.एस. अधिकारी ही नहीं, रमाकान्त रथ ओड़िया के शीर्षस्थ कवियों में से हैं। उनके अब तक 8 कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं। ‘सप्तमऋतु’ 1978 के साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित हुआ है। उसके बाद प्रकाशित ‘श्रीराधा’ (खण्ड-काव्य) ओड़िया की अत्यन्त चर्चित कृति है। परिपक्व संवेदनशीलता, प्रगाढ़ मानवीय चेतना, प्रतीकात्मक भाषा-लालित्य और काव्य-शिल्प की कुशाग्रता के धनी रमाकान्त रथ की कविता आधुनिक भारतीय साहित्य की अमूल्य निधि है।
अनुवादक - श्रीनिवास उद्गाता
ओड़िया के प्रतिष्ठित कवि और कथाकार श्रीनिवास उद्गाता ओड़िया पाठकों को हिन्दी की उत्कृष्ट कृतियों तथा हिन्दी जगत को ओड़िया साहित्य से अनुवाद के माध्यम से महत्वपूर्ण योगदान किया है। एक ओर धर्मवीर भारती की ‘कनुप्रिया’ का ओड़िया अनुवाद किया है तो अब रमाकान्त रथ की ‘श्रीराधा’ हिन्दी पाठकों को समर्पित कर रहे हैं।
राजेन्द्र प्रसाद मिश्र
किसी ओड़िया कृति का हिन्दी अनुवाद हाथ आते ही जिनका सहज ध्यान आता है, उनमें राजेन्द्र मिश्र प्रमुख हैं।
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