Shri Krishna

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
श्याम सुशील
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
श्याम सुशील
Language:
Hindi
Format:
Hardback

149

Save: 1%

In stock

Ships within:
1-4 Days

In stock

Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789326355209 Category Tag
Category:
Page Extent:
64

श्रीकृष्ण –
श्रीकृष्ण जगद्गुरु हैं, युग पुरुष तो हैं ही उससे भी अधिक कालातीत व्यक्तित्व हैं। वे केवल अपने युग के नायक नहीं हैं युग-युगान्तर तक, जब तक यह सृष्टि है तब तक मनुष्य मात्र के लिए एक सच्चे पथ प्रदर्शक बने रहेंगे।
श्रीकृष्ण आत्मज्ञानी थे, वे जानते थे कि वे स्वयं नारायण हैं। फिर भी उन्होंने दिव्य शक्तियों का प्रयोग कभी नहीं किया। उन्होंने सदैव बुद्धिचातुर्य और शारीरिक बल से ही संकटों पर विजय पाया। अपने आत्मस्वरूप को उन्होंने कुछ अवसरों पर प्रगट भी किया, जैसे यशोदा माँ को अपने मुख में चौदह भुवन का दर्शन कराना या गीता-प्रसंग में अर्जुन को विश्वरूप दर्शन आदि, लेकिन वे मानवता को उसके छिपे हुए दिव्यास्त्रों का ज्ञान मनुष्य बनकर ही कराना चाहते थे—मनुष्य संकल्प मात्र से जीवन को विपदाहीन कर सकता है। सत्य, अहिंसा, प्रेम, करुणा और समदृष्टि हमारे दिव्यास्त्र हैं—जहाँ सत्य है वहाँ लोभ नहीं, जहाँ अहिंसा है वहाँ क्रोध नहीं, जहाँ प्रेम है वहाँ काम नहीं, जहाँ करुणा है वहाँ घृणा नहीं, जहाँ समदृष्टि है वहाँ द्वेष नहीं—जब ये दुर्गुण सद्गुणों से नष्ट कर दिये जाते हैं तो जीवन सुखमय हो जाता है। श्रीकृष्ण ने मनुष्य बनकर मनुष्य धर्म निभाकर स्वधर्मे निधनं श्रेयः के उपदेश को सार्थक कर दिखाया।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Shri Krishna”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

श्रीकृष्ण –
श्रीकृष्ण जगद्गुरु हैं, युग पुरुष तो हैं ही उससे भी अधिक कालातीत व्यक्तित्व हैं। वे केवल अपने युग के नायक नहीं हैं युग-युगान्तर तक, जब तक यह सृष्टि है तब तक मनुष्य मात्र के लिए एक सच्चे पथ प्रदर्शक बने रहेंगे।
श्रीकृष्ण आत्मज्ञानी थे, वे जानते थे कि वे स्वयं नारायण हैं। फिर भी उन्होंने दिव्य शक्तियों का प्रयोग कभी नहीं किया। उन्होंने सदैव बुद्धिचातुर्य और शारीरिक बल से ही संकटों पर विजय पाया। अपने आत्मस्वरूप को उन्होंने कुछ अवसरों पर प्रगट भी किया, जैसे यशोदा माँ को अपने मुख में चौदह भुवन का दर्शन कराना या गीता-प्रसंग में अर्जुन को विश्वरूप दर्शन आदि, लेकिन वे मानवता को उसके छिपे हुए दिव्यास्त्रों का ज्ञान मनुष्य बनकर ही कराना चाहते थे—मनुष्य संकल्प मात्र से जीवन को विपदाहीन कर सकता है। सत्य, अहिंसा, प्रेम, करुणा और समदृष्टि हमारे दिव्यास्त्र हैं—जहाँ सत्य है वहाँ लोभ नहीं, जहाँ अहिंसा है वहाँ क्रोध नहीं, जहाँ प्रेम है वहाँ काम नहीं, जहाँ करुणा है वहाँ घृणा नहीं, जहाँ समदृष्टि है वहाँ द्वेष नहीं—जब ये दुर्गुण सद्गुणों से नष्ट कर दिये जाते हैं तो जीवन सुखमय हो जाता है। श्रीकृष्ण ने मनुष्य बनकर मनुष्य धर्म निभाकर स्वधर्मे निधनं श्रेयः के उपदेश को सार्थक कर दिखाया।

About Author

श्याम सुशील - दिल्ली विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए.। दैनिक ‘हिन्दुस्तान' (हिन्दुस्तान टाइम्स लि., नयी दिल्ली) में क़रीब बीस वर्षों तक सम्पादन कार्य। दूरदर्शन के साहित्यिक कार्यक्रम 'सृजन', 'फ़लक' और 'किताब की दुनिया' के लिए पचास से अधिक साहित्यकारों पर संक्षिप्त शोध। दूरदर्शन-रेडियो आर्काइव्स में भाषा विशेषज्ञ के तौर पर स्वतन्त्र रूप से कार्य। 'नवान्न', 'बूधन' और 'नन्ही क़लम' पत्रिकाओं का सम्पादन। 'अपनी ज़मीन पर' कविता संग्रह और 'होती मैं भी चंचल तितली' बालगीत संग्रह प्रकाशित। 'मेरे साक्षात्कार' सीरीज़ के अन्तर्गत अमृता प्रीतम और त्रिलोचन के साक्षात्कारों की किताब का सम्पादन। राहुल सांकृत्यायन स्मृति व्याख्यान माला की पहली किताब 'दूसरी दुनिया सम्भव है' तथा 'प्रतिनिधि कविताएँ : त्रिलोचन' का सह-सम्पादन।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Shri Krishna”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED