ShreeJi “श्रीजी” | Poems Book | Kamna Singh

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Kamna Singh
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Kamna Singh
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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ब्रज से आरंभ हुई लीला क्षितिज तक फैलती चली गई। प्रयोजन प्रेम की गहराई को जतलाना था या ईश्वर – शक्ति के ऐक्य को दिखाना, लीलाधर ही जानें! पर इस प्रीति का निर्वाह भली प्रकार हुआ। ऐसी प्रीति अन्यत्र कहीं देखी न सुनी। संयोगकाल कितना छोटा और वियोग का मानो एक कल्प । फिर भी प्रेम की तीव्रता रंचमात्र भी कम नहीं। अलग-अलग रहते हुए श्रीराधा-कृष्ण दोनों ने आजीवन प्रेम की रीति-नीति का पालन किया।

बूँद-बूँद अनुभूतियों से भरी श्रीराधा-कृष्ण के प्रेम की गागर भावनाओं का सागर बन गई । क्या नहीं है इस सागर में – शृंगार, उत्साह, शोक, आश्चर्य, क्रोध, हास्य, वात्सल्य और फिर एक अनिर्वचनीय शांति । प्रेम का चरम लक्ष्य शांति ही है। सच्चा प्रेम यदि साधना की सर्वोच्च अवस्था तक नहीं पहुँचे, तो अपूर्ण है। प्रेम पूर्ण तभी, जब साधन और साध्य दोनों धर्मयुत् हों । रीति निर्मल, लक्ष्य पवित्र तो उपलब्धि का अतिपावन होना अवश्यंभावी है ।

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Description

ब्रज से आरंभ हुई लीला क्षितिज तक फैलती चली गई। प्रयोजन प्रेम की गहराई को जतलाना था या ईश्वर – शक्ति के ऐक्य को दिखाना, लीलाधर ही जानें! पर इस प्रीति का निर्वाह भली प्रकार हुआ। ऐसी प्रीति अन्यत्र कहीं देखी न सुनी। संयोगकाल कितना छोटा और वियोग का मानो एक कल्प । फिर भी प्रेम की तीव्रता रंचमात्र भी कम नहीं। अलग-अलग रहते हुए श्रीराधा-कृष्ण दोनों ने आजीवन प्रेम की रीति-नीति का पालन किया।

बूँद-बूँद अनुभूतियों से भरी श्रीराधा-कृष्ण के प्रेम की गागर भावनाओं का सागर बन गई । क्या नहीं है इस सागर में – शृंगार, उत्साह, शोक, आश्चर्य, क्रोध, हास्य, वात्सल्य और फिर एक अनिर्वचनीय शांति । प्रेम का चरम लक्ष्य शांति ही है। सच्चा प्रेम यदि साधना की सर्वोच्च अवस्था तक नहीं पहुँचे, तो अपूर्ण है। प्रेम पूर्ण तभी, जब साधन और साध्य दोनों धर्मयुत् हों । रीति निर्मल, लक्ष्य पवित्र तो उपलब्धि का अतिपावन होना अवश्यंभावी है ।

About Author

कामना सिंह जन्म : आगरा (उ.प्र.) में । शिक्षा : एम.ए. ( दर्शनशास्त्र, हिंदी), पीएच.डी. (दर्शनशास्त्र, हिंदी), डी.लिट्. (हिंदी) । रचना-संसार : 'बोल मेरी मछली', 'पद्म-अग्नि', 'लॉकडाउन डेज', 'गंगा साक्षी है', 'सूरज संग बहती नदी', 'अनलॉक जिंदगी', 'हमकदम है जिंदगी' (उपन्यास), 'हवा को बहने दो' (पुरस्कृत), 'फिर वसंत आया' (इ-वर्जन), 'मन सतरंगी' (कहानी- संग्रह), 'समाँ सौगात बन जाए', 'गीत पुनर्नव' (कविता-संग्रह), रवींद्रनाथ टैगोर के दर्शन में मानववाद, श्रीरामकृष्ण - विवेकानंद का धर्मदर्शन, स्वातंत्र्योत्तर हिंदी बालसाहित्य, हिंदी बालसाहित्य एवं बाल-विमर्श में सहलेखन, 'उषा यादव का बाल विमर्श' (समीक्षा ग्रंथ), बाल एवं किशोर उपन्यास (लगभग दो दर्जन) । पुरस्कार-सम्मान : उ.प्र. हिंदी संस्थान, लखनऊ से नामित सूर पुरस्कार तथा निरंकारदेव सेवक बालसाहित्य इतिहास लेखन सम्मान । 'हवा को बहने दो' को राष्ट्रीय पुरस्कार । पाठ्यक्रम में रचनाओं का संकलन । अनेक कला प्रदर्शनियों में सहभागिता ।

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