Sharanam 277

Save: 30%

Back to products
Suno Karigar 207

Save: 30%

Shesh Ji

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
शेष नारायण सिंह
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
शेष नारायण सिंह
Language:
Hindi
Format:
Hardback

349

Save: 30%

In stock

Ships within:
1-4 Days

In stock

Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789390678815 Category
Category:
Page Extent:
296

इन लेखों को पढ़ते हुए अहसास होता है कि शेष नारायण सिंह का व्यक्तित्व कैसा था। इसका पहला भाग उस व्यक्ति के बारे में है जिसने अपने रिश्तों को सँजोया और जीवन में मिले सभी लोगों को अपने लेखन का माध्यम बनाया। वह भावुक और बहुत संवेदनशील व्यक्ति थे । पुस्तक के अन्य दो भाग वर्तमान राजनीतिक, सामाजिक और अन्तरराष्ट्रीय बहस पर आधारित हैं। उनको लेखन के साथ आत्मकथाओं को जानने का भी जुनून था। उनका निष्पक्ष और समाचार का सटीक विवरण उनके चुने इस पेशे को सच्ची श्रद्धांजलि देता है। लोकतन्त्र में उनका विश्वास और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, लोकतन्त्र की रक्षा, संरक्षण व पोषण के लिए एक निष्पक्ष और स्वतन्त्र प्रेस की ज़रूरत उनके लेखन में अक्सर दिखाई देती है ।

– भूमिका से

शेष नारायण सिंह एक पत्रकार के रूप में न केवल भारतीय राजनीति पर नज़र बनाये हुए थे, बल्कि उन्हें इसकी बेहतर समझ भी थी। प्रशिक्षण और जज़्बाती तौर पर वे इतिहासकार थे। उन्हें हिन्दी से अगाध प्रेम था, बावजूद इसके अंग्रेज़ी और उर्दू पर भी उनकी अच्छी पकड़ थी । ज्ञान की गहराई और तथ्यों की सटीकता के चलते चार दशकों की उनकी लेखनी में यह स्पष्ट झलकता था कि वे एक सच्चे विद्वान थे । वे हिन्दी व अंग्रेज़ी दोनों का अच्छा वाचन करते थे, हालाँकि उनके पास अंग्रेज़ी उपन्यास पढ़ने का धैर्य नहीं था, मगर जब अंग्रेज़ी नॉन- फ़िक्शन की बात आयी तो उन्होंने सब कुछ पढ़ा। आर्थिक कठिनाइयों के दौर में जब भी उनके पास थोड़ा पैसा होता, वे किताबें ख़रीद लेते । घर पर उनकी लाइब्रेरी उनके विद्वत्तापूर्ण खोज और सोच की गहराई का ख़ूबसूरत चित्रण रही।

– इसी पुस्तक से

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Shesh Ji”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

इन लेखों को पढ़ते हुए अहसास होता है कि शेष नारायण सिंह का व्यक्तित्व कैसा था। इसका पहला भाग उस व्यक्ति के बारे में है जिसने अपने रिश्तों को सँजोया और जीवन में मिले सभी लोगों को अपने लेखन का माध्यम बनाया। वह भावुक और बहुत संवेदनशील व्यक्ति थे । पुस्तक के अन्य दो भाग वर्तमान राजनीतिक, सामाजिक और अन्तरराष्ट्रीय बहस पर आधारित हैं। उनको लेखन के साथ आत्मकथाओं को जानने का भी जुनून था। उनका निष्पक्ष और समाचार का सटीक विवरण उनके चुने इस पेशे को सच्ची श्रद्धांजलि देता है। लोकतन्त्र में उनका विश्वास और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, लोकतन्त्र की रक्षा, संरक्षण व पोषण के लिए एक निष्पक्ष और स्वतन्त्र प्रेस की ज़रूरत उनके लेखन में अक्सर दिखाई देती है ।

– भूमिका से

शेष नारायण सिंह एक पत्रकार के रूप में न केवल भारतीय राजनीति पर नज़र बनाये हुए थे, बल्कि उन्हें इसकी बेहतर समझ भी थी। प्रशिक्षण और जज़्बाती तौर पर वे इतिहासकार थे। उन्हें हिन्दी से अगाध प्रेम था, बावजूद इसके अंग्रेज़ी और उर्दू पर भी उनकी अच्छी पकड़ थी । ज्ञान की गहराई और तथ्यों की सटीकता के चलते चार दशकों की उनकी लेखनी में यह स्पष्ट झलकता था कि वे एक सच्चे विद्वान थे । वे हिन्दी व अंग्रेज़ी दोनों का अच्छा वाचन करते थे, हालाँकि उनके पास अंग्रेज़ी उपन्यास पढ़ने का धैर्य नहीं था, मगर जब अंग्रेज़ी नॉन- फ़िक्शन की बात आयी तो उन्होंने सब कुछ पढ़ा। आर्थिक कठिनाइयों के दौर में जब भी उनके पास थोड़ा पैसा होता, वे किताबें ख़रीद लेते । घर पर उनकी लाइब्रेरी उनके विद्वत्तापूर्ण खोज और सोच की गहराई का ख़ूबसूरत चित्रण रही।

– इसी पुस्तक से

About Author

शेष नारायण सिंह जन्म : 18 फ़रवरी, 1951। शिक्षा : एम.ए. (इतिहास), गोरखपुर विश्वविद्यालय। शिक्षा समाप्ति के बाद सुलतानपुर के एक डिग्री कॉलेज में दो वर्ष तक अध्यापन करने के बाद पूर्णतः पत्रकार बन गये। 1993 में राष्ट्रीय सहारा में एडिट पेज इंचार्ज, 1994 से 1996 तक बीबीसी की हिन्दी सेवा के लिए फ्रीलांस लेखन, 1995 से 1996 तक एक साप्ताहिक पत्रिका में विशेष संवाददाता, 1996 से 1998 तक हिन्दी दैनिक जेवीजी टाइम्स में ब्यूरो चीफ़, 1998 से 2004 तक एनडीटीवी में उप समाचार सम्पादक, 2005 से 2008 तक जागरण इंस्टीट्यूट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन में प्रोफ़ेसर तथा 2009 से 2011 तक शहाफत में एसोसिएट एडिटर तथा इसके बाद 2011 से आख़िरी वक़्त तक 'देशबन्धु' में राजनीतिक सम्पादक के पद पर कार्यरत रहे। गंगा-जमुनी संस्कृति की मिसाल शेष नारायण सिंह अपने समय के उन विरले पत्रकारों की परम्परा के सम्भवतः सबसे सशक्त और अनुभवी पत्रकार थे जो पत्रकारिता के जनवादीकरण को प्राथमिकता देने की वकालत तो करते ही थे लेकिन साथ ही उसमें निहित विसंगतियों की पुरज़ोर मुख़ालफ़त भी करते थे। उनका पत्रकारीय जीवन कई महत्त्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा। राजनीतिक विश्लेषण हो या फिर कोई अन्य मुद्दा, वे हमेशा शालीन बने रहे। वस्तुतः आजकल के आक्रामक और शोर मचाने वाले पत्रकारों के बरअक्स वे पत्रकारिता के आदर्श या यों कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि वे अपने परवर्ती पत्रकारों के लिए एक प्रकाश स्तम्भ की तरह थे जिनसे निश्चय ही उन्हें प्रेरणा लेनी चाहिए। निधन : 7 मई, 2021।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Shesh Ji”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED