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Sharir Aur Aatma (Manto Ab Tak-2)
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
सआदत हसन मण्टो, सम्पादक : मुशर्रफ़ आलम ज़ौक़ी
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
सआदत हसन मण्टो, सम्पादक : मुशर्रफ़ आलम ज़ौक़ी
Language:
Hindi
Format:
Paperback
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ISBN:
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9789388434089
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
82
मण्टो फ़रिश्ता नहीं, इंसान है। इसलिए उसके चरित्र गुनाह करते हैं। दंगे करते हैं । न उसे किसी चरित्र से प्यार है न हमदर्दी । मण्टो न पैग़म्बर है न उपदेशक । उसका जन्म ही कहानी कहने के लिए हुआ था । इसलिए फ़साद की बेरहम कहानियाँ लिखते हुए भी उस का क़लम पूरी तरह क़ाबू में रहा । मण्टो की खूबी यह भी थी कि वो चुटकी बजाते एक कहानी लिख लेता था । और वो भी इस हुनरमंदी के साथ कि चुटकी बजाते लिखी जाने वाली कहानियाँ भी आज उर्दू-हिन्दी अफ़साने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी हैं।
सआदत हसन मण्टो उर्दू-हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय एवं महत्त्वपूर्ण कथाकार माने जाते हैं। जन्म, 11 मई 1921 को जिला लुधियाना में हुआ। आरंभिक शिक्षा अमृतसर एवं अलीगढ़में हुई। विभाजन एवं दंगा संस्कृति पर लिखी समस्त कहानियाँ आज दस्तावेज़ बन चुकी हैं। मण्टो ने मुम्बई की बालीवुड नगरी में भी संवाद लेखक के तौर पर काम किया। एक साप्ताहिक पत्रिका ‘मुसव्वर’ का संपादन भी किया। मुम्बई में फिल्मसिटी, फिल्म कंपनी और प्रभात टाकीज में भी नौकरी की। 1948 में पाकिस्तान चले गये और 1955 में इस महान कथाकार की मृत्यु हो गई । मण्टो की पहली कहानी तमाशा थी । मण्टो ने बग़ैर उन्वान के नाम से इकलौता उपन्यास लिखा। उनकी अंतिम कहानी : कबूतर और कबूतरी थी ।
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Description
मण्टो फ़रिश्ता नहीं, इंसान है। इसलिए उसके चरित्र गुनाह करते हैं। दंगे करते हैं । न उसे किसी चरित्र से प्यार है न हमदर्दी । मण्टो न पैग़म्बर है न उपदेशक । उसका जन्म ही कहानी कहने के लिए हुआ था । इसलिए फ़साद की बेरहम कहानियाँ लिखते हुए भी उस का क़लम पूरी तरह क़ाबू में रहा । मण्टो की खूबी यह भी थी कि वो चुटकी बजाते एक कहानी लिख लेता था । और वो भी इस हुनरमंदी के साथ कि चुटकी बजाते लिखी जाने वाली कहानियाँ भी आज उर्दू-हिन्दी अफ़साने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी हैं।
सआदत हसन मण्टो उर्दू-हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय एवं महत्त्वपूर्ण कथाकार माने जाते हैं। जन्म, 11 मई 1921 को जिला लुधियाना में हुआ। आरंभिक शिक्षा अमृतसर एवं अलीगढ़में हुई। विभाजन एवं दंगा संस्कृति पर लिखी समस्त कहानियाँ आज दस्तावेज़ बन चुकी हैं। मण्टो ने मुम्बई की बालीवुड नगरी में भी संवाद लेखक के तौर पर काम किया। एक साप्ताहिक पत्रिका ‘मुसव्वर’ का संपादन भी किया। मुम्बई में फिल्मसिटी, फिल्म कंपनी और प्रभात टाकीज में भी नौकरी की। 1948 में पाकिस्तान चले गये और 1955 में इस महान कथाकार की मृत्यु हो गई । मण्टो की पहली कहानी तमाशा थी । मण्टो ने बग़ैर उन्वान के नाम से इकलौता उपन्यास लिखा। उनकी अंतिम कहानी : कबूतर और कबूतरी थी ।
About Author
मण्टो पर बातें करते हुए अचानक देवेन्द्र सत्यार्थी की याद आ जाती है । मण्टो का मूल्यांकन करना हो तो मण्टो और मण्टो पर लिखे गये, दुनियाभर के लेख एक तरफ मगर सत्यार्थी मण्टो पर जो दो सतरें लिख गये, उसकी नज़ीर मिलनी मुश्किल है। ‘मण्टो मरने के बाद खुदा के दरबार में पहुँचा तो बोला, तुमने मुझे क्या दिया... बयालिस साल । कुछ महीने, कुछ दिन । मैंने तो सौगन्धी को सदियाँ दी हैं।' 'सौगन्धी' मण्टो की मशहूर कहानी है। लेकिन एक सौगन्धी ही क्या मण्टो की कहानियाँ पढ़िये तो जैसे हर कहानी 'सौगन्धी' और उससे आगे की कहानी लगती है।
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