Shakti Ki Manyata

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Dilip Sinha
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Dilip Sinha
Language:
Hindi
Format:
Hardback

675

Save: 25%

In stock

Ships within:
1-4 Days

In stock

Weight 603 g
Book Type

ISBN:
SKU 9789353226855 Categories , Tag
Categories: ,
Page Extent:
37

विश्व शांति का अनुरक्षण करने के लिए संयुक्त राष्ट्र का सर्वाधिक शक्तिशाली निकाय ‘सुरक्षा परिषद्’ द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अपनी स्थापना के काल से कभी बाहर नहीं निकल पाया। इस युद्ध के विजेता अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस ने अपनी स्थायी सदस्यता और वीटो की शक्ति के साथ इस पर नियंत्रण बनाए रखा। उनके पारस्परिक टकरावों ने शीत युद्ध के दौरान परिषद् को निर्बल बना दिया तथा उसके उपरांत उनके सहयोग से विवादास्पद सैन्य काररवाइयों को अंजाम दिया गया।

यह पुस्तक अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहयोग के मूल को तलाशती है तथा अंतरराष्ट्रीय कानून में सुरक्षा परिषद् की शक्तियों की आधारशिला की संवीक्षा करती है। यह स्थायी पाँच देशों द्वारा अपनी वैश्विक प्रधानता को सकारात्मक रूप से सुदृढ़ बनाने और शक्ति के उनके प्रयोग को वैध बनाने के लिए परिषद् का इच्छानुसार प्रयोग करने की समालोचना करती है। इराक, यूगोस्लाविया और लीबिया जैसे देशों में उनके द्वारा लागू सिद्धांतों और काररवाइयों ने एक उत्तरदायी निकाय के रूप में परिषद् के विकास को बाधित किया, जो एक वैश्वीकृत विश्व का भरोसा अर्जित कर सकती थी।
यह पुस्तक वृत्तिकों और शोधार्थियों के लिए पठनीय है, ताकि वे सुरक्षा परिषद् और उसमें सुधार करने की उसकी विफलता को भलीभाँति जान सकें।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Shakti Ki Manyata”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

विश्व शांति का अनुरक्षण करने के लिए संयुक्त राष्ट्र का सर्वाधिक शक्तिशाली निकाय ‘सुरक्षा परिषद्’ द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अपनी स्थापना के काल से कभी बाहर नहीं निकल पाया। इस युद्ध के विजेता अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस ने अपनी स्थायी सदस्यता और वीटो की शक्ति के साथ इस पर नियंत्रण बनाए रखा। उनके पारस्परिक टकरावों ने शीत युद्ध के दौरान परिषद् को निर्बल बना दिया तथा उसके उपरांत उनके सहयोग से विवादास्पद सैन्य काररवाइयों को अंजाम दिया गया।

यह पुस्तक अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहयोग के मूल को तलाशती है तथा अंतरराष्ट्रीय कानून में सुरक्षा परिषद् की शक्तियों की आधारशिला की संवीक्षा करती है। यह स्थायी पाँच देशों द्वारा अपनी वैश्विक प्रधानता को सकारात्मक रूप से सुदृढ़ बनाने और शक्ति के उनके प्रयोग को वैध बनाने के लिए परिषद् का इच्छानुसार प्रयोग करने की समालोचना करती है। इराक, यूगोस्लाविया और लीबिया जैसे देशों में उनके द्वारा लागू सिद्धांतों और काररवाइयों ने एक उत्तरदायी निकाय के रूप में परिषद् के विकास को बाधित किया, जो एक वैश्वीकृत विश्व का भरोसा अर्जित कर सकती थी।
यह पुस्तक वृत्तिकों और शोधार्थियों के लिए पठनीय है, ताकि वे सुरक्षा परिषद् और उसमें सुधार करने की उसकी विफलता को भलीभाँति जान सकें।

About Author

दिलीप सिन्हा उपलब्धियों से भरे वर्ष 2011-2012 की अवधि में सुरक्षा परिषद् की अपनी सदस्यता के दौरान भारत के संयुक्त राष्ट्र मामलों के प्रमुख थे। वे जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र के राजदूत रहे, जहाँ उन्हें 2014 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् का उपाध्यक्ष तथा दक्षिण केंद्र का उपसभापति चुना गया। सिन्हा ने लीबिया और सीरिया में व्याप्त संकट के संबंध में सुरक्षा परिषद् में तथा श्रीलंका के लिए मानवाधिकार परिषद् में भारत की प्रतिक्रिया को संचालित किया। अपने राजनयिक जीवन के दौरान, सिन्हा ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान के साथ भारत के संबंधों की अगुआई की तथा जर्मनी, मिस्र, पाकिस्तान, ब्राजील, बांग्लादेश और यूनान में अपनी सेवाएँ दीं। दिलीप सिन्हा अब भारत में ही रहकर लेखन-कार्य करते हैं और व्याख्यान देते हैं|

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Shakti Ki Manyata”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED