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Ramayan : Manavta Ka Mahakavya
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Seedhi Rekha
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Seedhi Rekha
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
गंगाधर गाडगिल, सम्पादन लीला वांदिवाडेकर
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
गंगाधर गाडगिल, सम्पादन लीला वांदिवाडेकर
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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ISBN:
SKU
9789355185433
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
252
आधुनिक मराठी साहित्य में गंगाधर गाडगिल का अपना स्वतन्त्र अस्तित्व है। ये पाँचवें दशक से आरम्भ होने वाले कहानी के क्षेत्र में नये युग के प्रवर्तक माने जाते हैं। उन्होंने कहानी के पारम्परिक साँचे को नकार कर उसे नयी संवेदनशीलता और कलात्मक यथार्थवत्ता प्रदान की है। इस नयी संवेदनशीलता के उदय के साथ सहज ही में जो अन्य सन्दर्भ आ जुड़े हैं, वे हैं-महायुद्ध के परिणामस्वरूप सर्वग्रासी विनाश और उससे उपजे जीवन-मूल्य औद्योगीकरण, यंत्र-संस्कृति, नये आर्थिक-सामाजिक अन्तर्विरोध, महानगरीकरण आदि आदि। इस सबके फलस्वरूप गाडगिल की कहानियों में हमें मिलता है जीवन के यथार्थ का व्यामिश्रण, अन्तर्विरोधों का नया भान, मनुष्य के हिस्से में आयी पराश्रयता, अश्रद्धा, अविश्वास और अनाथ होने की वेदना।
गाडगिल की कहानियों में पात्र स्वयम्भू (हीरो इमेज के) न होकर मात्र कथाघटक होते हैं। वे प्रायः अवचेतन मन की सहज प्रवृत्तियों एवं वासनाओं से प्रेरित दैनन्दिन जीवन की गाड़ी खींच रहे ‘साधारण मनुष्य होते हैं। कथाकार जब कभी उनकी मानसिक संकीर्णताओं और सीमाओं का विनोद-शैली में उपहास भी करता है, पर वह उपहास वास्तव में मनुष्य के प्रति न होकर ‘मनुष्यता’ का अवमूल्यन करने वाली पारिवारिक सामाजिक व्यवस्था के प्रति होता है।
प्रस्तुत कृति में गाडगिलजी की ऐसी ही बीस कहानियाँ संकलित हैं। आशा है, हिन्दी पाठक इनके माध्यम से मराठी कहानी के परिवर्तित प्रवाह को भलीभाँति समझ सकेगा।
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Description
आधुनिक मराठी साहित्य में गंगाधर गाडगिल का अपना स्वतन्त्र अस्तित्व है। ये पाँचवें दशक से आरम्भ होने वाले कहानी के क्षेत्र में नये युग के प्रवर्तक माने जाते हैं। उन्होंने कहानी के पारम्परिक साँचे को नकार कर उसे नयी संवेदनशीलता और कलात्मक यथार्थवत्ता प्रदान की है। इस नयी संवेदनशीलता के उदय के साथ सहज ही में जो अन्य सन्दर्भ आ जुड़े हैं, वे हैं-महायुद्ध के परिणामस्वरूप सर्वग्रासी विनाश और उससे उपजे जीवन-मूल्य औद्योगीकरण, यंत्र-संस्कृति, नये आर्थिक-सामाजिक अन्तर्विरोध, महानगरीकरण आदि आदि। इस सबके फलस्वरूप गाडगिल की कहानियों में हमें मिलता है जीवन के यथार्थ का व्यामिश्रण, अन्तर्विरोधों का नया भान, मनुष्य के हिस्से में आयी पराश्रयता, अश्रद्धा, अविश्वास और अनाथ होने की वेदना।
गाडगिल की कहानियों में पात्र स्वयम्भू (हीरो इमेज के) न होकर मात्र कथाघटक होते हैं। वे प्रायः अवचेतन मन की सहज प्रवृत्तियों एवं वासनाओं से प्रेरित दैनन्दिन जीवन की गाड़ी खींच रहे ‘साधारण मनुष्य होते हैं। कथाकार जब कभी उनकी मानसिक संकीर्णताओं और सीमाओं का विनोद-शैली में उपहास भी करता है, पर वह उपहास वास्तव में मनुष्य के प्रति न होकर ‘मनुष्यता’ का अवमूल्यन करने वाली पारिवारिक सामाजिक व्यवस्था के प्रति होता है।
प्रस्तुत कृति में गाडगिलजी की ऐसी ही बीस कहानियाँ संकलित हैं। आशा है, हिन्दी पाठक इनके माध्यम से मराठी कहानी के परिवर्तित प्रवाह को भलीभाँति समझ सकेगा।
About Author
गंगाधर गाडगिल
पूरा नाम - गंगाधर गोपाल गाडगिल ।
जन्म 25 अगस्त, 1923, बम्बई में
अर्थशास्त्र में एम.ए. के बाद, बम्बई में ही अर्थशास्त्र के प्राध्यापक (1946-71), प्राचार्य (1964-71)। पश्चात् अनेक उद्योग-समूहों के आर्थिक सलाहकार (1971-87) । रावलगांव के एक उद्योग फर्म के निदेशक भी रहे।
पहली कहानी 1941 में मासिक पत्रिका 'वाड्मय शोभा' में प्रकाशित। तब से निरन्तर लेखन कार्य में प्रवृत्त । अब तक 50 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित, प्रमुखतः कहानी-संग्रह, उपन्यास, नाटक और व्यंग्यलेख। अंग्रेजी में भी समान रूप से लेखन।
रचनाएँ- अनेक देशी-विदेशी भाषाओं में। कथाशिल्प और शैली की दृष्टि से मराठी की नयी कहानी के प्रवर्तक ।
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