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SCINDIA RAJGHARANA (HINDI)
Publisher:
MANJUL
| Author:
RASHEED KIDWAI
| Language:
English
| Format:
Paperback
Publisher:
MANJUL
Author:
RASHEED KIDWAI
Language:
English
Format:
Paperback
₹399 ₹339
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Weight | 210 g |
---|---|
Book Type |
ISBN:
Category: Children
Page Extent:
218
‘क़िस्सों-कहानियों का ख़ज़ाना… जो दिलचस्प है और सुगम भी’ प्रिया सहगल कोविड-19 महामारी से मुक़ाबला करने के लिए मार्च 2020 में भारत में पूर्ण लॉकडाउन लगाने की घोषणा के हफ़्तों पहले ही मध्य प्रदेश के राजनीतिक रंगमंच पर घटनाचक्र और तख़्तापलट का खेल चरम पर पहुंच चुका था। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एकाएक कांग्रेस का दामन छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का हाथ थाम लिया और इस तरह कांग्रेस राज्य की सत्ता से बाहर हो गई। कई लोगों ने ज्योतिरादित्य के इस निर्णय को भाजपा की छत्रछाया में सिंधियाओं के राजनीतिक राजवंश के पुनर्मिलन के रूप में देखा। ग्वालियर में सिंधियाओं के शाही निवास जय विलास पैलेस के ख़ज़ाने में अनमोल रत्नों के साथ-साथ कई राज़ भी बड़ी सावधानी के साथ दफ़न हैं। उनमें से कुछ तो बहुत होशियारी से छिपाए गए हैं, जैसे 1857 की बग़ावत के समय ग्वालियर के शासकों की विवादास्पद भूमिका। कुछ को कूटनीतिक वजहों की आड़ में नज़रों से ओझल ही रहने दिया गया, जैसे राजमाता की उनके ‘रास्पुतिन’ पर अत्यधिक निर्भरता और नतीजतन उनके इकलौते पुत्र माधवराव पर अविश्वास। फिर सबसे बड़ा सवाल तो महात्मा गांधी की हत्या में महल की कथित भूमिका और उस भूमिका की आधी-अधूरी जांच का भी रहा है। शायद इन अनसुलझे रहस्यों की वजह से ही सिंधिया राजघराने (वह परिवार जिसने भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों को कई राजनेता दिए हैं) के प्रति एक सहज जिज्ञासा भारतीयों के मन-मस्तिष्क पर हावी रही है। राजनीतिक युक्तियों, महल की साज़िशों, गला-काट प्रतिद्वंद्विताओं और घृणित सार्वजनिक झगड़ों, विश्वासघातों, अदालतों में संपत्ति को लेकर लड़ी गई लड़ाइयों व एक-दूसरे को फूटी आंख भी न सुहाने वाले भाई-बहनों ने सिंधिया राजघराने को हमेशा चटखारेदार सुखिर्यों में बनाए रखा है। यह पुस्तक ग्वालियर के शासकों के बारे में विपुल जानकारियां देने के साथ ही उनकी सर्वोत्कृष्ट और खुलासा करने वाली जीवनी है।
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Description
‘क़िस्सों-कहानियों का ख़ज़ाना… जो दिलचस्प है और सुगम भी’ प्रिया सहगल कोविड-19 महामारी से मुक़ाबला करने के लिए मार्च 2020 में भारत में पूर्ण लॉकडाउन लगाने की घोषणा के हफ़्तों पहले ही मध्य प्रदेश के राजनीतिक रंगमंच पर घटनाचक्र और तख़्तापलट का खेल चरम पर पहुंच चुका था। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एकाएक कांग्रेस का दामन छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का हाथ थाम लिया और इस तरह कांग्रेस राज्य की सत्ता से बाहर हो गई। कई लोगों ने ज्योतिरादित्य के इस निर्णय को भाजपा की छत्रछाया में सिंधियाओं के राजनीतिक राजवंश के पुनर्मिलन के रूप में देखा। ग्वालियर में सिंधियाओं के शाही निवास जय विलास पैलेस के ख़ज़ाने में अनमोल रत्नों के साथ-साथ कई राज़ भी बड़ी सावधानी के साथ दफ़न हैं। उनमें से कुछ तो बहुत होशियारी से छिपाए गए हैं, जैसे 1857 की बग़ावत के समय ग्वालियर के शासकों की विवादास्पद भूमिका। कुछ को कूटनीतिक वजहों की आड़ में नज़रों से ओझल ही रहने दिया गया, जैसे राजमाता की उनके ‘रास्पुतिन’ पर अत्यधिक निर्भरता और नतीजतन उनके इकलौते पुत्र माधवराव पर अविश्वास। फिर सबसे बड़ा सवाल तो महात्मा गांधी की हत्या में महल की कथित भूमिका और उस भूमिका की आधी-अधूरी जांच का भी रहा है। शायद इन अनसुलझे रहस्यों की वजह से ही सिंधिया राजघराने (वह परिवार जिसने भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों को कई राजनेता दिए हैं) के प्रति एक सहज जिज्ञासा भारतीयों के मन-मस्तिष्क पर हावी रही है। राजनीतिक युक्तियों, महल की साज़िशों, गला-काट प्रतिद्वंद्विताओं और घृणित सार्वजनिक झगड़ों, विश्वासघातों, अदालतों में संपत्ति को लेकर लड़ी गई लड़ाइयों व एक-दूसरे को फूटी आंख भी न सुहाने वाले भाई-बहनों ने सिंधिया राजघराने को हमेशा चटखारेदार सुखिर्यों में बनाए रखा है। यह पुस्तक ग्वालियर के शासकों के बारे में विपुल जानकारियां देने के साथ ही उनकी सर्वोत्कृष्ट और खुलासा करने वाली जीवनी है।
About Author
‘क़िस्सों-कहानियों का ख़ज़ाना... जो दिलचस्प है और सुगम भी’ प्रिया सहगल कोविड-19 महामारी से मुक़ाबला करने के लिए मार्च 2020 में भारत में पूर्ण लॉकडाउन लगाने की घोषणा के हफ़्तों पहले ही मध्य प्रदेश के राजनीतिक रंगमंच पर घटनाचक्र और तख़्तापलट का खेल चरम पर पहुंच चुका था। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एकाएक कांग्रेस का दामन छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का हाथ थाम लिया और इस तरह कांग्रेस राज्य की सत्ता से बाहर हो गई। कई लोगों ने ज्योतिरादित्य के इस निर्णय को भाजपा की छत्रछाया में सिंधियाओं के राजनीतिक राजवंश के पुनर्मिलन के रूप में देखा। ग्वालियर में सिंधियाओं के शाही निवास जय विलास पैलेस के ख़ज़ाने में अनमोल रत्नों के साथ-साथ कई राज़ भी बड़ी सावधानी के साथ दफ़न हैं। उनमें से कुछ तो बहुत होशियारी से छिपाए गए हैं, जैसे 1857 की बग़ावत के समय ग्वालियर के शासकों की विवादास्पद भूमिका। कुछ को कूटनीतिक वजहों की आड़ में नज़रों से ओझल ही रहने दिया गया, जैसे राजमाता की उनके ‘रास्पुतिन’ पर अत्यधिक निर्भरता और नतीजतन उनके इकलौते पुत्र माधवराव पर अविश्वास। फिर सबसे बड़ा सवाल तो महात्मा गांधी की हत्या में महल की कथित भूमिका और उस भूमिका की आधी-अधूरी जांच का भी रहा है। शायद इन अनसुलझे रहस्यों की वजह से ही सिंधिया राजघराने (वह परिवार जिसने भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों को कई राजनेता दिए हैं) के प्रति एक सहज जिज्ञासा भारतीयों के मन-मस्तिष्क पर हावी रही है। राजनीतिक युक्तियों, महल की साज़िशों, गला-काट प्रतिद्वंद्विताओं और घृणित सार्वजनिक झगड़ों, विश्वासघातों, अदालतों में संपत्ति को लेकर लड़ी गई लड़ाइयों व एक-दूसरे को फूटी आंख भी न सुहाने वाले भाई-बहनों ने सिंधिया राजघराने को हमेशा चटखारेदार सुखिर्यों में बनाए रखा है। यह पुस्तक ग्वालियर के शासकों के बारे में विपुल जानकारियां देने के साथ ही उनकी सर्वोत्कृष्ट और खुलासा करने वाली जीवनी है।
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