Sarfaroshi Ki Tamanna (PB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
kuldeep Nayar, Tr. Yugank Dhir
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Rajkamal
Author:
kuldeep Nayar, Tr. Yugank Dhir
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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भगत सिंह (1907-1931) का समय वही समय था जब भारत का स्वतंत्रता-संग्राम अपने उरूज की तरफ़ बढ़ रहा था और जिस समय आंशिक आज़ादी के लिए महात्मा गांधी के अहिंसात्मक, निष्क्रिय प्रतिरोध ने लोगों के धैर्य की परीक्षा लेना शुरू कर दिया था।
भारत का युवा वर्ग भगत सिंह के सशस्त्र विरोध के आह्वान और हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के आर्मी विंग की अवज्ञापूर्ण साहसिकता से प्रेरणा ग्रहण कर रहा था, जिससे भगत सिंह और उनके साथी सुखदेव और राजगुरु जुड़े थे। ‘इंकिलाब ज़िन्दाबाद’ का उनका नारा स्वतंत्रता-संघर्ष का उद्घोष बन गया था।
लाहौर षड्यंत्र मामले में एक दिखावटी मुक़दमा चलाकर ब्रिटिश सरकार द्वारा भगत सिंह को मात्र 23 साल की आयु में फाँसी पर चढ़ा दिए जाने के बाद भारतवासियों ने उन्हें, उनके युवकोचित साहस, नायकत्व और मौत के प्रति निडरता को देखते हुए शहीद का दर्जा दे दिया। जेल में लिखी हुई उनकी चीज़ें तो अनेक वर्ष उपरान्त, आज़ादी के बाद सामने आईं। आज इसी सामग्री के आधार पर उन्हें देश की आज़ादी के लिए जान देनेवाले अन्य शहीदों से अलग माना जाता है। उनका यह लेखन उन्हें सिर्फ़ एक भावप्रवण स्वतंत्रता सेनानी से कहीं ज़्यादा एक ऐसे अध्यवसायी बुद्धिजीवी के रूप में सामने लाता है जिसकी प्रेरणा के स्रोत, अन्य विचारकों के साथ, मार्क्स, लेनिन, बर्ट्रेंड रसेल और विक्टर ह्यूगो थे और जिसका क्रान्ति-स्वप्न अंग्रेज़ों को देश से निकाल देने-भर तक सीमित नहीं था, बल्कि वह उससे कहीं आगे एक धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी भारत का सपना सँजो रहा था।
इसी असाधारण युवक की सौवीं जन्मशती के अवसर पर कुलदीप नैयर इस पुस्तक में उस शहीद के पीछे छिपे आदमी, उसके विश्वासों, उसके बौद्धिक रुझानों और निराशाओं पर प्रकाश डाल रहे हैं।
यह पुस्तक पहली बार स्पष्ट करती है कि हंसराज वोहरा ने भगत सिंह के साथ धोखा क्यों किया, साथ ही इसमें सुखदेव के ऊपर भी नई रोशनी में विचार किया गया है जिनकी वफ़ादारी पर कुछ इतिहासकारों ने सवाल उठाए हैं। लेकिन इसके केन्द्र में भगत सिंह का हिंसा का प्रयोग ही है जिसकी गांधी जी समेत अन्य अनेक लोगों ने इतनी कड़ी आलोचना की है। भगत सिंह की मंशा अधिक से अधिक लोगों की हत्या करके या अपने हमलों की भयावहता से अंग्रेज़ों के दिल में आतंक पैदा करना नहीं था, न उनकी निर्भयता का उत्स सिर्फ़ बन्दूक़ों और जवानी के साहस में था। यह उनके अध्ययन से उपजी बौद्धिकता और उनके विश्वासों की दृढ़ता का मिला-जुला परिणाम था।

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Description

भगत सिंह (1907-1931) का समय वही समय था जब भारत का स्वतंत्रता-संग्राम अपने उरूज की तरफ़ बढ़ रहा था और जिस समय आंशिक आज़ादी के लिए महात्मा गांधी के अहिंसात्मक, निष्क्रिय प्रतिरोध ने लोगों के धैर्य की परीक्षा लेना शुरू कर दिया था।
भारत का युवा वर्ग भगत सिंह के सशस्त्र विरोध के आह्वान और हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के आर्मी विंग की अवज्ञापूर्ण साहसिकता से प्रेरणा ग्रहण कर रहा था, जिससे भगत सिंह और उनके साथी सुखदेव और राजगुरु जुड़े थे। ‘इंकिलाब ज़िन्दाबाद’ का उनका नारा स्वतंत्रता-संघर्ष का उद्घोष बन गया था।
लाहौर षड्यंत्र मामले में एक दिखावटी मुक़दमा चलाकर ब्रिटिश सरकार द्वारा भगत सिंह को मात्र 23 साल की आयु में फाँसी पर चढ़ा दिए जाने के बाद भारतवासियों ने उन्हें, उनके युवकोचित साहस, नायकत्व और मौत के प्रति निडरता को देखते हुए शहीद का दर्जा दे दिया। जेल में लिखी हुई उनकी चीज़ें तो अनेक वर्ष उपरान्त, आज़ादी के बाद सामने आईं। आज इसी सामग्री के आधार पर उन्हें देश की आज़ादी के लिए जान देनेवाले अन्य शहीदों से अलग माना जाता है। उनका यह लेखन उन्हें सिर्फ़ एक भावप्रवण स्वतंत्रता सेनानी से कहीं ज़्यादा एक ऐसे अध्यवसायी बुद्धिजीवी के रूप में सामने लाता है जिसकी प्रेरणा के स्रोत, अन्य विचारकों के साथ, मार्क्स, लेनिन, बर्ट्रेंड रसेल और विक्टर ह्यूगो थे और जिसका क्रान्ति-स्वप्न अंग्रेज़ों को देश से निकाल देने-भर तक सीमित नहीं था, बल्कि वह उससे कहीं आगे एक धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी भारत का सपना सँजो रहा था।
इसी असाधारण युवक की सौवीं जन्मशती के अवसर पर कुलदीप नैयर इस पुस्तक में उस शहीद के पीछे छिपे आदमी, उसके विश्वासों, उसके बौद्धिक रुझानों और निराशाओं पर प्रकाश डाल रहे हैं।
यह पुस्तक पहली बार स्पष्ट करती है कि हंसराज वोहरा ने भगत सिंह के साथ धोखा क्यों किया, साथ ही इसमें सुखदेव के ऊपर भी नई रोशनी में विचार किया गया है जिनकी वफ़ादारी पर कुछ इतिहासकारों ने सवाल उठाए हैं। लेकिन इसके केन्द्र में भगत सिंह का हिंसा का प्रयोग ही है जिसकी गांधी जी समेत अन्य अनेक लोगों ने इतनी कड़ी आलोचना की है। भगत सिंह की मंशा अधिक से अधिक लोगों की हत्या करके या अपने हमलों की भयावहता से अंग्रेज़ों के दिल में आतंक पैदा करना नहीं था, न उनकी निर्भयता का उत्स सिर्फ़ बन्दूक़ों और जवानी के साहस में था। यह उनके अध्ययन से उपजी बौद्धिकता और उनके विश्वासों की दृढ़ता का मिला-जुला परिणाम था।

About Author

कुलदीप नैयर

जन्म : 14 अगस्त, 1924, सियालकोट, पाकिस्तान।

शिक्षा : बी.ए. (ऑनर्स); एल.एल.बी., एम.एस-सी. (जर्नलिज्म), यू.एस.ए.; पीएच.डी. (दर्शनशास्त्र)।

कार्य : उर्दू समाचार-पत्र ‘अंजान’ से पत्रकारिता की शुरुआत, लालबहादुर शास्त्री तथा गोविन्द बल्लभ पंत के कार्यकाल में अमेरिका में सूचना अधिकारी। अंग्रेज़ी समाचार-पत्र ‘द स्टेट्समैन’ के सम्पादक। अंग्रेज़ी समाचार न्यूज़ एजेंसी के प्रबन्ध सम्पादक। 25 वर्ष तक पत्रिका ‘टाइम्स’ के संवाददाता। अमेरिका में भारतीय उच्चायुक्त रहे। इमरजेंसी के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष, जेल भी गए। पाकिस्तान और भारत के रिश्ते मधुर बनाने में उल्लेखनीय योगदान। मानवाधिकार के लिए एक समर्पित कार्यकर्ता।

सदस्य : ‘इंडियन डेलीगेशन टू द यूनाइटेड नेशन्स’ (1989); सीनेट ऑफ़ गुरुनानक यूनिवर्सिटी, अमृतसर (1990); सीनेट एंड सिंडीकेट ऑफ़ पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला; जेमिनी न्यूज़ सर्विस, लन्दन; फ़ैकल्टी ऑफ़ सोशल साइंस, मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़।

चेयरमैन, सिटीजन ऑफ़ डेमोक्रेसी; ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल (इंडिया)। पुणे की इमेरिट्स यूनिवर्सिटी के मास कम्यूनिकेशन विभाग में प्रोफ़ेसर।

प्रमुख प्रकाशन : ‘बिटवीन द लाइंस’; ‘इंडिया, द क्रिटिकल इयर्स’; ‘डिस्टेंट नेबर्स’ (ए टेल ऑफ़ सबकोन्टिनेंट); ‘सप्रेसन ऑफ़ जजेज़’; ‘इंडिया आफ़्टर नेहरू’; ‘द जजमेंट’ (जेल में बन्दी के दौरान); ‘रिपोर्ट ऑन अफ़ग़ानिस्तान’; ‘ट्रेजिडी ऑफ़ पंजाब’; ‘इंडिया हाउस’; ‘द मार्टअर : भगत सिंह एक्सपेरीमेंट्स इन रिवोल्यूशन’; ‘वॉल एट वाघा’ (इंडो-पाक रिलेशन्स)।

प्रमुख सम्मान : हल्दी घाटी अवार्ड, फ़्रीडम ऑफ़ इनफ़ॉरमेशन, भाई वीर सिंह, प्राइड ऑफ़ इंडिया, मेवाड़ फ़ाउंडेशन, ऑल इंडिया आर्टिस्ट्स एसोसिएशन, यू.के. सिक्ख फोरम, शिरोमणि गुरुद्वारा अमृतसर, फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन मुस्लिम अमेरिका/कनाडा, अब्दुल सलाम इंटरनेशनल इंडो-कनेडियन टाइम्स ट्रस्ट, नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी एलूमनी एसोसिएशन, लाहौर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन, गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी, शहीद नियोगी मेमोरियल लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड इन जर्नलिज़्म। अमेरिका में ‘उच्च आयुक्त कार्यकाल’ में किए गए उल्लेखनीय कार्यों के लिए भी सम्मानित।

निधन : 23 अगस्त, 2018

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