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Sant Ravidas
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सन्त रविदास –
हमारे देश में आदिकाल से एक धारा चली आ रही है, जो यह मानती है कि ईश्वर नाम की एक सर्वशक्तिमान सत्ता है जिसने इस सृष्टि की रचना की है और उसे संचालित करती है। इस सत्ता के प्रति भक्ति और समर्पण स्वाभाविक है। भक्ति की यह धारा दक्षिण भारत से 14वीं-15वीं शताब्दी में उत्तर भारत पहुँची और एक आन्दोलन के रूप में फैल गयी। विदेशी आक्रमणों से त्रस्त समाज को इस आन्दोलन में एक सुकून जैसा मिला और इसमें से स्वामी रामानन्द, कबीर, सन्त रविदास, सेन नाई, पीपाजी, धन्ना भगत सरीखे कई सन्त उभरे। इनके पदों, भजनों, दोहों आदि ने पूरे समाज को भक्ति रस में सराबोर किये रखा। उनका जीवन पूरे समाज के लिए एक सन्देश बन गया।
सन्त रविदास –
हमारे देश में आदिकाल से एक धारा चली आ रही है, जो यह मानती है कि ईश्वर नाम की एक सर्वशक्तिमान सत्ता है जिसने इस सृष्टि की रचना की है और उसे संचालित करती है। इस सत्ता के प्रति भक्ति और समर्पण स्वाभाविक है। भक्ति की यह धारा दक्षिण भारत से 14वीं-15वीं शताब्दी में उत्तर भारत पहुँची और एक आन्दोलन के रूप में फैल गयी। विदेशी आक्रमणों से त्रस्त समाज को इस आन्दोलन में एक सुकून जैसा मिला और इसमें से स्वामी रामानन्द, कबीर, सन्त रविदास, सेन नाई, पीपाजी, धन्ना भगत सरीखे कई सन्त उभरे। इनके पदों, भजनों, दोहों आदि ने पूरे समाज को भक्ति रस में सराबोर किये रखा। उनका जीवन पूरे समाज के लिए एक सन्देश बन गया।
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