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Sanskritik Alok Se Samvad
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
पुष्पिता
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
पुष्पिता
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹140 ₹139
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In stock
ISBN:
SKU
8126311908
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
184
सांस्कृतिक आलोक से संवाद –
भारतीय मनीषा और भाव सम्पदा के अग्रणी हिन्दी और संस्कृत के अधिकृत विद्वान पं. विद्यानिवास मिश्र ने अपनी सृजनात्मक उपस्थिति से हिन्दी संसार को एक सांस्कृतिक दीप्ति दी है।
शब्द सम्पदा, भाषा शास्त्र, परम्परा और आधुनिकता के अन्तःसम्बन्धों पर उनका कार्य बहुत मूल्यवान है। शास्त्रों को लोक से जोड़ने वाले उनके व्यक्ति व्यंजक निबन्ध दार्शनिक विमर्श और लालित्य के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। सांस्कृतिक पाण्डित्य से परिपूर्ण मिश्र जी लोक के गहरे पारखी थे। उनके लेखन में दोनों का अद्भुत सामंजस्य था। वे कोरे विद्वान नहीं, जनमानस से जीवन्त संवाद करने वाले लेखक थे।
इस पुस्तक में पुष्पिता को दिये साक्षात्कार में पण्डित जी ने भारतीय इतिहास, संस्कृति, साहित्य, राजनीति आदि विभिन्न मुद्दों पर बेबाक बातचीत की है—सिर्फ़ उन जिज्ञासु पाठकों के लिए नहीं जो कला साहित्य और संस्कृति में रुचि रखते हैं बल्कि विभिन्न विषयों के विद्वानों के लिए भी यह किताब निश्चित रूप से उनकी ज़रूरत बनेगी क्योंकि इस पुस्तक में पण्डित जी का जो चिन्तन व्यक्त हुआ है, वह उनके साहित्यिक और सांस्कृतिक जीवन का वैचारिक निचोड़ है।
इस दृष्टि से यह पुस्तक हिन्दी जगत की अनमोल निधि है। गूढ़ और गम्भीर विषयों पर भी जिस सहजता से पण्डित जी ने अपनी बात कही है उसे पढ़ना बिल्कुल उनको सुनने की तरह है।
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Description
सांस्कृतिक आलोक से संवाद –
भारतीय मनीषा और भाव सम्पदा के अग्रणी हिन्दी और संस्कृत के अधिकृत विद्वान पं. विद्यानिवास मिश्र ने अपनी सृजनात्मक उपस्थिति से हिन्दी संसार को एक सांस्कृतिक दीप्ति दी है।
शब्द सम्पदा, भाषा शास्त्र, परम्परा और आधुनिकता के अन्तःसम्बन्धों पर उनका कार्य बहुत मूल्यवान है। शास्त्रों को लोक से जोड़ने वाले उनके व्यक्ति व्यंजक निबन्ध दार्शनिक विमर्श और लालित्य के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। सांस्कृतिक पाण्डित्य से परिपूर्ण मिश्र जी लोक के गहरे पारखी थे। उनके लेखन में दोनों का अद्भुत सामंजस्य था। वे कोरे विद्वान नहीं, जनमानस से जीवन्त संवाद करने वाले लेखक थे।
इस पुस्तक में पुष्पिता को दिये साक्षात्कार में पण्डित जी ने भारतीय इतिहास, संस्कृति, साहित्य, राजनीति आदि विभिन्न मुद्दों पर बेबाक बातचीत की है—सिर्फ़ उन जिज्ञासु पाठकों के लिए नहीं जो कला साहित्य और संस्कृति में रुचि रखते हैं बल्कि विभिन्न विषयों के विद्वानों के लिए भी यह किताब निश्चित रूप से उनकी ज़रूरत बनेगी क्योंकि इस पुस्तक में पण्डित जी का जो चिन्तन व्यक्त हुआ है, वह उनके साहित्यिक और सांस्कृतिक जीवन का वैचारिक निचोड़ है।
इस दृष्टि से यह पुस्तक हिन्दी जगत की अनमोल निधि है। गूढ़ और गम्भीर विषयों पर भी जिस सहजता से पण्डित जी ने अपनी बात कही है उसे पढ़ना बिल्कुल उनको सुनने की तरह है।
About Author
पुष्पिता -
जन्म: कानपुर (उ. प्र.)।
शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी) बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय,
वसन्त महिला महाविद्यालय, वाराणसी में हिन्दी विभाग की अध्यक्ष (1984-2001)।
प्रकाशन: कविता संग्रह— 'अक्षत' तथा 'गोखरू'।
लेखक - विद्यानिवास मिश्र -
जन्म: 1926, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
हिन्दी एवं संस्कृत साहित्य के विशिष्ट विद्वान एवं लेखक। साहित्य अकादेमी, कालिदास अकादेमी, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आदि अनेक संस्थाओं से सम्बद्ध रहे। देश-विदेश के अनेक विश्वविद्यालयों में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर।
क.मा. मुंशी भाषा विज्ञान संस्थान, आगरा के निदेशक, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय एवं काशी विद्यापीठ, वाराणसी के उपकुलपति तथा 'नवभारत टाइम्स' के प्रधान सम्पादक और 'साहित्य अमृत' मासिक पत्रिका के सम्पादक रहे। 'पद्मभूषण' उपाधि से अंलकृत तथा ज्ञानपीठ के 'मूर्तिदेवी पुरस्कार' से सम्मानित।
प्रकाशन: हिन्दी और अंग्रेज़ी में बीस से अधिक पुस्तकें। प्रमुख हैं –'मॉडर्न हिन्दी पोएट्री', 'द इंडियन पोयटिक ट्रेडीशन', 'महाभारत का काव्यार्थ', 'भारतीय भाषादर्शन की पीठिका', 'स्वरूप विमर्श' एवं 'व्यक्ति-व्यंजना' (निबन्ध); 'राधा माधव रंग रँगी' (गीतगोविन्द की सरस व्याख्या)।
14 फ़रवरी, 2005 को देहावसान।
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