Sanatan

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
शरणकुमार लिंबाले, अनुवाद - पद्मजा घोरपड़े
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
शरणकुमार लिंबाले, अनुवाद - पद्मजा घोरपड़े
Language:
Hindi
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Hardback

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हिन्दू धर्म ने अस्पृश्यों का और आदिवासियों का कल्पनातीत नुक़सान किया है। इसका हिसाब अभी तक लगाया नहीं गया है। तो मुआवज़ा कैसे दिया जायेगा? यह उपन्यास इसी नुक़सान के सम्बन्ध में कुछ कह रहा है। आपदग्रस्तों को मुआवज़ा दिया जाता है। यहाँ तो हज़ारों की तादाद में लोग सदियों से गरीबी और अज्ञान में तड़प रहे हैं। उनके विस्थापन का हिसाब लगाना होगा। अतल तक खंगालना होगा। अधिक देर तक इसे नज़रअन्दाज़ नहीं किया जा सकता। यह उपन्यास इसकी ओर संकेत देता है।

किसी एक धर्म की बात करना यानी समूचे भारत के बारे में बात करना नहीं होता। यह उपन्यास ख़ासकर दलितों के बारे में कुछ कहना चाहता है। सभी धर्मों ने, प्रदेशों ने, भाषाओं और संस्कृतियों ने दलितों को सहजीवन से ख़ास दूरी पर ही रखा। उनको अपवित्र माना। उनसे दूरी ऐसी बरती कि भेदभाव बन गया। दलित अलग-थलग हो गये। यही दिखाने का प्रयास इस उपन्यास में किया गया है।

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Description

हिन्दू धर्म ने अस्पृश्यों का और आदिवासियों का कल्पनातीत नुक़सान किया है। इसका हिसाब अभी तक लगाया नहीं गया है। तो मुआवज़ा कैसे दिया जायेगा? यह उपन्यास इसी नुक़सान के सम्बन्ध में कुछ कह रहा है। आपदग्रस्तों को मुआवज़ा दिया जाता है। यहाँ तो हज़ारों की तादाद में लोग सदियों से गरीबी और अज्ञान में तड़प रहे हैं। उनके विस्थापन का हिसाब लगाना होगा। अतल तक खंगालना होगा। अधिक देर तक इसे नज़रअन्दाज़ नहीं किया जा सकता। यह उपन्यास इसकी ओर संकेत देता है।

किसी एक धर्म की बात करना यानी समूचे भारत के बारे में बात करना नहीं होता। यह उपन्यास ख़ासकर दलितों के बारे में कुछ कहना चाहता है। सभी धर्मों ने, प्रदेशों ने, भाषाओं और संस्कृतियों ने दलितों को सहजीवन से ख़ास दूरी पर ही रखा। उनको अपवित्र माना। उनसे दूरी ऐसी बरती कि भेदभाव बन गया। दलित अलग-थलग हो गये। यही दिखाने का प्रयास इस उपन्यास में किया गया है।

About Author

शरणकुमार लिंबाले जन्म : 1 जून 1956 शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी. हिन्दी में प्रकाशित किताबें : अक्करमाशी (आत्मकथा) 1991 देवता आदमी (कहानी संग्रह) 1994 दलित साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र (समीक्षा) 2000 नरवानर (उपन्यास) 2004 दलित ब्राह्मण (कहानी संग्रह) 2004 हिन्दू (उपन्यास) 2004 बहुजन (उपन्यास) 2009 दलित साहित्य : वेदना और विद्रोह (सम्पादन) 2010 झुंड (उपन्यास) 2012 प्रज्ञासूर्य : डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर 2013 गैर-दलित (समीक्षा) 2017 दलित पैन्थर (सम्पादन) 2019 यल्गार (कविता संग्रह) 2020 सनातन (उपन्यास) 2020 ई-मेल : sharankumarlimbale@gmail.com पद्मजा घोरपड़े (एम.ए., पीएच. डी., हिन्दी) हिन्दी के व्याख्याता, एसोसिएट प्रोफेसर, विभागाध्यक्ष, प्रभारी प्राचार्य के रूप में कार्यरत (1981 से 2017) प्रकाशित पुस्तकें-40 कविता संग्रह-4 कहानी संग्रह-2 पत्रकारिता-1 जीवनी-2 समीक्षात्मक-3 हिन्दी-मराठी-हिन्दी-अनुवाद-3 गौरव ग्रन्थ (सम्पादन)-3 अनुवाद एवं सम्पादन-2 हिन्दी-मराठी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित समीक्षात्मक लेख एवं अनुवाद-80 सर्जना साहित्य एवं कला मंच की स्थापना एवं सचिव (1986 से 2000) सम्प्रति : 'परिक्रमा' आधारभूत सामाजिक सेवाकार्य न्यास की स्थापना एवं न्यास के प्रमुख न्यासी, अध्यक्ष के रूप में कार्यरत

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