Sampoorn Dalit Andolan : Pasamanda Tasawwur Hard Cover

Publisher:
Rajkamal
| Author:
ALI ANWAR
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
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ALI ANWAR
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Hindi
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ग़ुलामी भले ही विदा हो गई हो, जाति तो मुसलमानों में क़ायम है ही। उदाहरण के लिए, बंगाल के मुसलमानों की स्थिति को लिया जा सकता है। 1901 के लिए बंगाल प्रान्त के जनगणना अधीक्षक ने बंगाल के मुसलमानों के बारे में यह रोचक तथ्य दर्ज किए हैं—‘मुसलमानों का चार वर्गों—शेख़़, सैयद, मुग़ल और पठान—में परम्परागत विभाजन इस प्रान्त (बंगाल) में प्रायः लागू नहीं है। मुसलमान दो मुख्य सामाजिक विभक्त मानते हैं—1. अशराफ़ अथवा शरफ़ और 2. अज़लाफ़। अशराफ़ से तात्पर्य है ‘कुलीन’ और इसमें विदेशियों के वंशज तथा ऊँची जाति के धर्मान्तरित हिन्दू शामिल हैं। व्यावसायिक वर्ग और निचली जातियों के धर्मान्तरित शेष अन्य मुसलमान अज़लाफ़ अर्थात नीच अथवा निकृष्ट व्यक्ति माने जाते हैं। उन्हें कमीना अथवा इतर कमीना या रासिल, जो ‘रिज़ाल’ का भ्रष्ट रूप है, बेकार कहा जाता है। कुछ स्थानों पर एक तीसरा वर्ग ‘अरज़ाल’ भी है, जिसमें आनेवाले व्यक्ति सबसे नीच समझे जाते हैं। उनके साथ कोई भी अन्य मुसलमान मिलेगा-जुलेगा नहीं और न उन्हें मस्जिद और सार्वजनिक क़ब्रिस्तानों में प्रवेश करने दिया जाता है।
इन वर्गों में भी हिन्दू में प्रचलित जैसी सामाजिक वरीयता और जातियाँ हैं।…
मुसलमानों में इन बुराइयों का होना दु:खद है, किन्तु उससे भी अधिक दु:खद तथ्य यह है कि भारत के मुसलमानों में समाज-सुधार हेतु इन बुराइयों के सफलतापूर्वक उन्मूलन के लिए कोई संगठित आन्दोलन नहीं उभरा।…दूसरी ओर, मुसलमान यह महसूस ही नहीं करते कि ये बुराइयाँ हैं। परिणामतः वे उनके निवारण हेतु सक्रियता भी नहीं दर्शाते। इसके विपरीत, अपनी मौजूदा प्रथाओं में किसी भी परिवर्तन का विरोध करते हैं।
—डॉ. बी.आर. आम्बेडकर
 ‘पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन’ पुस्तक से

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ग़ुलामी भले ही विदा हो गई हो, जाति तो मुसलमानों में क़ायम है ही। उदाहरण के लिए, बंगाल के मुसलमानों की स्थिति को लिया जा सकता है। 1901 के लिए बंगाल प्रान्त के जनगणना अधीक्षक ने बंगाल के मुसलमानों के बारे में यह रोचक तथ्य दर्ज किए हैं—‘मुसलमानों का चार वर्गों—शेख़़, सैयद, मुग़ल और पठान—में परम्परागत विभाजन इस प्रान्त (बंगाल) में प्रायः लागू नहीं है। मुसलमान दो मुख्य सामाजिक विभक्त मानते हैं—1. अशराफ़ अथवा शरफ़ और 2. अज़लाफ़। अशराफ़ से तात्पर्य है ‘कुलीन’ और इसमें विदेशियों के वंशज तथा ऊँची जाति के धर्मान्तरित हिन्दू शामिल हैं। व्यावसायिक वर्ग और निचली जातियों के धर्मान्तरित शेष अन्य मुसलमान अज़लाफ़ अर्थात नीच अथवा निकृष्ट व्यक्ति माने जाते हैं। उन्हें कमीना अथवा इतर कमीना या रासिल, जो ‘रिज़ाल’ का भ्रष्ट रूप है, बेकार कहा जाता है। कुछ स्थानों पर एक तीसरा वर्ग ‘अरज़ाल’ भी है, जिसमें आनेवाले व्यक्ति सबसे नीच समझे जाते हैं। उनके साथ कोई भी अन्य मुसलमान मिलेगा-जुलेगा नहीं और न उन्हें मस्जिद और सार्वजनिक क़ब्रिस्तानों में प्रवेश करने दिया जाता है।
इन वर्गों में भी हिन्दू में प्रचलित जैसी सामाजिक वरीयता और जातियाँ हैं।…
मुसलमानों में इन बुराइयों का होना दु:खद है, किन्तु उससे भी अधिक दु:खद तथ्य यह है कि भारत के मुसलमानों में समाज-सुधार हेतु इन बुराइयों के सफलतापूर्वक उन्मूलन के लिए कोई संगठित आन्दोलन नहीं उभरा।…दूसरी ओर, मुसलमान यह महसूस ही नहीं करते कि ये बुराइयाँ हैं। परिणामतः वे उनके निवारण हेतु सक्रियता भी नहीं दर्शाते। इसके विपरीत, अपनी मौजूदा प्रथाओं में किसी भी परिवर्तन का विरोध करते हैं।
—डॉ. बी.आर. आम्बेडकर
 ‘पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन’ पुस्तक से

About Author

अली अनवर

सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता, पत्रकार और लेखक अली अनवर का जन्म

16 जनवरी, 1954 को बिहार के पुराने शाहाबाद ‌ज़ि‍ले (अब बक्सर) के डुमराँव नगर में एक मज़दूर परिवार में हुआ। 1967 में ‘पढ़ाई नहीं तो फ़ीस नहीं’ शीर्षक से पर्चा छपवाने के कारण राज हाईस्कूल, डुमराँव से निष्कासन हुआ। तब आठवें दर्जे के छात्र थे। यहीं से डुमराँव राज के सामन्ती धाक के ख़िलाफ़ छात्र आन्दोलन की रहनुमाई शुरू हुई। आगे चलकर वामपन्थी आन्दोलन से जुड़ गए। इसी दौर में ‘जनशक्ति’, ‌‘ब्ल‌िट्ज़’, ‘रविवार’ जैसे पत्र-पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन एवं भाषा (पीटीआई) के लिए संवाद संकलन का काम शुरू किया। घर की माली हालत ख़राब होने के चलते कॉलेज की पढ़ाई बीच में छोड़कर 1974 में सरकारी नौकरी ज्वाइन कर ली। नौकरी करते हुए प्राइवेट तौर पर मगध विश्वविद्यालय से 1975 में बी.ए. की डिग्री हासिल की और वकालत की डिग्री हासिल करने के लिए महाराजा कॉलेज, आरा के इवनिंग लॉ कॉलेज में दाख़िला लिया। एक साथ सियासत, सहाफत, नौकरी, पढ़ाई के चलते कई तरह की परेशानियों, मुक़दमेबाज़ी और जेल यात्राओं के बीच लॉ की पढ़ाई छूट गई।

1984 में सरकारी नौकरी से इस्तीफ़ा देकर ‘जनशक्ति’, पटना के माध्यम से बाजाब्ते पत्रकारिता की शुरुआत। ‘जनशक्ति’ के बन्द हो जाने पर ‘नवभारत टाइम्स’, पटना, ‘जनसत्ता’, दिल्ली तथा ‘स्वतंत्र भारत’, लखनऊ के लिए पत्रकारिता की। 1996 में पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतिष्ठित के.के. बिरला फ़ाउंडेशन फ़ेलोशिप मिली। जिसका विषय था—बिहार के दलित मुसलमान। इस शोध-अध्ययन के नतीज़े में ‘मसावात की जंग’ किताब आई। यहीं से जीवन में एक नया मोड़ आया। 1998 में ‘पसमान्दा मुस्लिम महाज़’, बिहार का गठन किया जो कुछ ही वर्षों में। ‘ऑल इंडिया पसमान्दा मुस्लिम महाज़’ के रूप में देश के विभिन्न राज्यों में फैल गया। सितम्बर 2000 में श्रीमती राबड़ी देवी की बिहार सरकार द्वारा राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का सदस्य मनोनीत किया गया। 2006 में जनता दल (यू) के टिकट पर राज्यसभा के लिए निर्वाचित। 2012 में दोबारा राज्यसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित। 2017 में जनता दल (यू) के अचानक एन.डी.ए. में शामिल होने का विरोध करने के कारण डबल इंजन की सरकार द्वारा राज्यसभा की सदस्यता समाप्त। हर तरह की साम्प्रदायिकता का विरोध करते हुए दलित पसमान्दा तबकों को पेशमान्दा बनाना ‌िज़न्दगी का मिशन।

ई-मेल : alianwar3@rediffmail.com

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