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Samay Aur Sanskriti
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
एस.सी. दुबे
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
एस.सी. दुबे
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹175 ₹174
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In stock
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In stock
ISBN:
SKU
9789387409590
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
190
परम्परा की अनिवार्य महत्ता और उसके राजनीतिकरण से होने वाले विनाश को पहचान कर ही हम वास्तविक भारतीयता को जान सकते हैं। इसके लिए समस्त सामाजिक बोध से युक्त इतिहास-दृष्टि की जरूरत है क्योंकि अन्तर्द्वन्द्व और विरोधाभास हिन्दू-अस्मिता के सबसे बड़े शत्रु हैं। दूसरी तरफ समाज के चारित्रिक ह्रास के कारक रूप में संक्रमणशील समाज के सम्मुख परिवर्तन की छद्म आधुनिकता और धर्म के दुरुपयोग के घातक ख़तरे मौजूद हैं। पश्चिम के दायित्वहीन भोगवादी मनुष्य की नकल करने वाले समाज में संचार के माध्यमों की भूमिका सांस्कृतिक विकास में सहायक न रहकर नकारात्मक हो गयी है। ऐसे में बुद्धिजीवी वर्ग की समकालीन भूमिका और भी जरूरी तथा मुश्किल हो गयी है। श्यामाचरण दुबे का समाज-चिन्तन इस अर्थ में विशिष्ट है कि वे कोरे सिद्धान्तों की पड़ताल और जड़ हो चुके अकादमिक निष्कर्षों के पिष्ट-प्रेषण में व्यर्थ नहीं होता। इसीलिए उनका चिन्तन उन तथ्यों को पहचानने की समझ देता है जिन्हें जीवन जीने के क्रम में महसूस किया जाता है लेकिन उन्हें शब्द देने का काम अपेक्षाकृत जटिल होता है।
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Description
परम्परा की अनिवार्य महत्ता और उसके राजनीतिकरण से होने वाले विनाश को पहचान कर ही हम वास्तविक भारतीयता को जान सकते हैं। इसके लिए समस्त सामाजिक बोध से युक्त इतिहास-दृष्टि की जरूरत है क्योंकि अन्तर्द्वन्द्व और विरोधाभास हिन्दू-अस्मिता के सबसे बड़े शत्रु हैं। दूसरी तरफ समाज के चारित्रिक ह्रास के कारक रूप में संक्रमणशील समाज के सम्मुख परिवर्तन की छद्म आधुनिकता और धर्म के दुरुपयोग के घातक ख़तरे मौजूद हैं। पश्चिम के दायित्वहीन भोगवादी मनुष्य की नकल करने वाले समाज में संचार के माध्यमों की भूमिका सांस्कृतिक विकास में सहायक न रहकर नकारात्मक हो गयी है। ऐसे में बुद्धिजीवी वर्ग की समकालीन भूमिका और भी जरूरी तथा मुश्किल हो गयी है। श्यामाचरण दुबे का समाज-चिन्तन इस अर्थ में विशिष्ट है कि वे कोरे सिद्धान्तों की पड़ताल और जड़ हो चुके अकादमिक निष्कर्षों के पिष्ट-प्रेषण में व्यर्थ नहीं होता। इसीलिए उनका चिन्तन उन तथ्यों को पहचानने की समझ देता है जिन्हें जीवन जीने के क्रम में महसूस किया जाता है लेकिन उन्हें शब्द देने का काम अपेक्षाकृत जटिल होता है।
About Author
प्रो. श्यामाचरण दुबे का जन्म मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में 1922 में हुआ । उनकी गिनती भारत के अग्रणी समाज वैज्ञानिकों में होती है । उनकी अन्तर्राष्ट्रीय पहचान 1955 में ‘इंडियन विलेज’ के प्रकाशन से बनी । उन्हें अनेक राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय सम्मानों के अतिरिक्त मानद उपाधियों से समादृत किया गया है । भारत की जनजातियों और ग्रामीण समुदायों पर उनकी पुस्तकों को बहुत आदर से पढ़ा जाता है । उनकी कई पुस्तकों के अनेक भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं । हिन्दी साहित्य में उनकी बहुत गहरी रुचि रही है और वे जीवनपर्यन्त भारत के कई शीर्षस्थ सम्मानों की प्रवर समितियों से भी जुड़े रहे हैं । हिन्दी में उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं ‘मानव और संस्कृति’, ‘परम्परा और इतिहास-बोध’, ‘संस्कृति तथा शिक्षा’, समाज और भविष्य’, ‘भारतीय ग्राम’, ‘संक्रमण’ की पीड़ा’, ‘विकास का समाजशास्त्र’ और ‘समय और संस्कृति’ ।
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