Sachchidanand Sinha Rachnawali : Vol. 1 8 (PB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
ARVIND MOHAN
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Rajkamal
Author:
ARVIND MOHAN
Language:
Hindi
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Paperback

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मुद्रित शब्दों की मुख्यधारा के हिन्दी संसार को यह रचनावली ऐसा बहुत कुछ देनेवाली है जिससे हम अभी तक वंचित रहे आए हैं। यह राजनीति, अर्थशास्त्र, इतिहास, समाजशास्त्र के साथ-साथ दर्शन, कला, संस्कृति और धर्म आदि सभी विषयों पर मौलिक, वैकल्पिक और दिशादर्शक चिन्तन-लेखन करनेवाले भारतीय समाजशास्त्री सच्चिदानन्द सिन्हा के समग्र ‌‌लेखन की प्रस्तुति है जिसका अधिकांश ऐसा है जो पाठकों के सामने पहली बार व्यवस्थित रूप में आ रहा है।
व्यापक अध्ययन और उतने ही बड़े फलक पर उनकी राजनीतिक-सामाजिक सक्रियता ने सच्चिदा जी को विचार, विवेचना और अभिव्यक्ति की जो सामर्थ्य दी वह उनके लेखन को भी विशिष्ट बनाती है और उनके जीवन को भी। उनके विचार संघर्षशील जन से उनके सीधे जुड़ाव से परिपक्व हुए, उन्होंने जो लिखा वह अपने समाज, देश और जन-गण की परिस्थितियों में वास्तविक परिवर्तन को लक्ष्य करके लिखा। उनका लेखन न तो शोधवृत्तियों और वजीफों के परिणामस्वरूप हुआ, और न ही किसी अकादेमिक उपलब्धि के लिए, उसकी प्रेरणा इससे कहीं ज्यादा गहरी थी और पढ़नेवाले को वह उतनी ही गहराई में छूती भी है।
उन्होंने अनेक विषयों पर लिखा, अनेक रूपों में लिखा, और अलग-अलग मकसद से लिखा। गहन अवधारणात्मक चिन्तन पुस्तकों में आया, समकालीन मुद्दों पर अखबारों-पत्रिकाओं में लिखा, कार्यकर्ता-शिविरों के लिए अलग ढंग से लिखा, और जरूरत महसूस हुई तो बच्चों के लिए गीत भी लिखे। इस रचनावली में यह सब समेटने का प्रयास किया गया है।
सच्चिदानन्द रचनावली के इस पहले खंड में कला, संस्कृति, भारतीयता, जीवन तथा कला-बोध से सम्बन्धित उनके लेखन को शामिल किया गया है। इसमें तीन पुस्तकें, कुछ भाषण और कुछ लेख संकलित हैं। कला की बुनियादी समझ बनानेवाली उनकी चर्चित पुस्तक ‘अरूप और आकार’ को भी इसमें संकलित किया गया है। इस खंड की सामग्री कला और समाज की पारस्परिकता, तथा संस्कृति व मनुष्य की अन्तर्निर्भरता के व्यापक परिप्रेक्ष्य में हमें एक समग्र जनसापेक्ष दृष्टि विकसित करने में सहायता देती है।

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Description

मुद्रित शब्दों की मुख्यधारा के हिन्दी संसार को यह रचनावली ऐसा बहुत कुछ देनेवाली है जिससे हम अभी तक वंचित रहे आए हैं। यह राजनीति, अर्थशास्त्र, इतिहास, समाजशास्त्र के साथ-साथ दर्शन, कला, संस्कृति और धर्म आदि सभी विषयों पर मौलिक, वैकल्पिक और दिशादर्शक चिन्तन-लेखन करनेवाले भारतीय समाजशास्त्री सच्चिदानन्द सिन्हा के समग्र ‌‌लेखन की प्रस्तुति है जिसका अधिकांश ऐसा है जो पाठकों के सामने पहली बार व्यवस्थित रूप में आ रहा है।
व्यापक अध्ययन और उतने ही बड़े फलक पर उनकी राजनीतिक-सामाजिक सक्रियता ने सच्चिदा जी को विचार, विवेचना और अभिव्यक्ति की जो सामर्थ्य दी वह उनके लेखन को भी विशिष्ट बनाती है और उनके जीवन को भी। उनके विचार संघर्षशील जन से उनके सीधे जुड़ाव से परिपक्व हुए, उन्होंने जो लिखा वह अपने समाज, देश और जन-गण की परिस्थितियों में वास्तविक परिवर्तन को लक्ष्य करके लिखा। उनका लेखन न तो शोधवृत्तियों और वजीफों के परिणामस्वरूप हुआ, और न ही किसी अकादेमिक उपलब्धि के लिए, उसकी प्रेरणा इससे कहीं ज्यादा गहरी थी और पढ़नेवाले को वह उतनी ही गहराई में छूती भी है।
उन्होंने अनेक विषयों पर लिखा, अनेक रूपों में लिखा, और अलग-अलग मकसद से लिखा। गहन अवधारणात्मक चिन्तन पुस्तकों में आया, समकालीन मुद्दों पर अखबारों-पत्रिकाओं में लिखा, कार्यकर्ता-शिविरों के लिए अलग ढंग से लिखा, और जरूरत महसूस हुई तो बच्चों के लिए गीत भी लिखे। इस रचनावली में यह सब समेटने का प्रयास किया गया है।
सच्चिदानन्द रचनावली के इस पहले खंड में कला, संस्कृति, भारतीयता, जीवन तथा कला-बोध से सम्बन्धित उनके लेखन को शामिल किया गया है। इसमें तीन पुस्तकें, कुछ भाषण और कुछ लेख संकलित हैं। कला की बुनियादी समझ बनानेवाली उनकी चर्चित पुस्तक ‘अरूप और आकार’ को भी इसमें संकलित किया गया है। इस खंड की सामग्री कला और समाज की पारस्परिकता, तथा संस्कृति व मनुष्य की अन्तर्निर्भरता के व्यापक परिप्रेक्ष्य में हमें एक समग्र जनसापेक्ष दृष्टि विकसित करने में सहायता देती है।

About Author

सच्चिदानन्‍द सिन्हा

सच्चिदानन्‍द सिन्हा का जन्म 30 अगस्त, 1928 को मुज़फ़्फ़रपुर ज़‍िले के साहेबगंज के परसौनी ग्राम में हुआ। आपका नाम देश के वरिष्ठ समाजवादी विचारकों में शुमार है। अपने छात्र-जीवन में ही समाजवादी मूल्यों की राजनीति की तरफ़ आकृष्ट हुए। फिर, सोशलिस्ट पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता रहे। डॉ. लोहिया की पत्रिका ‘मैनकाइंड’ के सम्पादक मंडल में भी रहे और बाद के दिनों में अपने मित्र किशन पटनायक की वैचारिक पत्रिका ‘सामयिक वार्ता’ के सम्पादकीय सलाहकार रहे। आपने अंग्रेज़ी तथा हिन्दी में दर्जनों पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें महत्त्वपूर्ण हैं : ‘सोशलिज्म एंड पावर’, ‘कियोस एंड क्रिएशन’, ‘कास्ट सिस्टम : मिथ रियलिटी एंड चैलेंज’, ‘कोएलिशन इन पॉलिटिक्स’, ‘इमर्जेन्सी इन परस्पेक्टिव’, ‘इंटरनल कॉलोनी’, ‘दी बिटर हार्वेस्ट’, ‘सोशलिज्म : ए मैनिफेस्तो फ़ॉर सरवाइवल’, ‘समाजवाद के बढ़ते चरण’, ‘वर्तमान विकास की सीमाएँ’, ‘पूंजीवाद का पतझड़’, ‘संस्कृति विमर्श’, ‘मानव सभ्यता और राष्ट्र-राज्य’, ‘संस्कृति और समाजवाद’, ‘पूँजी का चौथा अध्याय’, ‘भारतीय राष्ट्रीयता और साम्प्रदायिकता’ इत्यादि।

 

 

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