Rooz Ek Kahani

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
सआदत हसन मण्टो, सम्पादक : नरेन्द्र मोहन
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
सआदत हसन मण्टो, सम्पादक : नरेन्द्र मोहन
Language:
Hindi
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Hardback

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176

रोज़ एक कहानी –
मंटो की यह विशेषता है कि वह अपनी कहानियों में, अपने निजी दृष्टिकोण और विचारधारा के साथ, दख़लअन्दाज़ी की हद तक पूरे-का-पूरा मौजूद रहता है। अपने पात्रों की ख़ुशियों के साथ, वह उनकी तकलीफ़ और दुख भी सहता है। यही वजह है कि उनकी कहानियों में संस्मरण का हल्का-सा रंग हमेशा झलकता है-क़िस्सागोई का वह स्पर्श, जो किसी बयान को यादगार बनाने के लिए बहुत ज़रूरी है।
लेकिन यह क़िस्सागोई महज़ दिलचस्पी पैदा करने के लिए, सिर्फ़ चन्द गाँठ के पूरे और दिमाग़ के कोरे ‘साहित्य प्रेमियों का मनोरंजन करने के लिए नहीं है। क़िस्सागोई का यह अन्दाज़ एक ओर तो आम आदमी को इस बात का अहसास कराता है, कि मंटो उनके साथ है, उनके बीच है, वह सारे दुख-सुख महसूस कर रहा है, जो आम आदमी की नियति है, दूसरी ओर यह भी बताता है कि ये कहानियाँ मंटो ने लिखी हैं कि पाठक यह जानें कि उनकी नियति क्यों ऐसी है, जिससे वे अपनी नियति को बदलने के लिए मुनासिब कार्रवाई कर सकें।
यही वजह है कि मंटो, अपने चारों ओर झूठ, फ़रेब और भ्रष्टाचार से पर्दा उठाकर, समाज के उस हिस्से को पेश करता है, जिसे लोग स्वीकार करने से कतराते हैं, या फिर “ऐसा तो होता ही है’ के-से अन्दाज में, एक उदासीन मान्यता देकर, नज़रअन्दाज़ कर देते हैं।
लेकिन व्यक्ति और लेखक-दोनों रूपों में अपनी भूमिका ईमानदारी से निभाने की ज़िम्मेदारी महसूस करते हुए, मंटो न तो कतरा सकता है और न इस सबको नज़रअन्दाज़ ही कर सकता है। वह इस सारे भ्रष्टाचार के रू-ब-रू होकर, उसकी भर्त्सना करता है। लेकिन वह कोरा सुधारक नहीं है, वरन् एक अत्यन्त भाव-प्रवण, सम्वेदनशील व्यक्ति है, इसलिए वह समाज के इस गर्हित पक्ष रंडियों, भड़वों, दलालों, शराबियों में दबी-छिपी मानवीयता की तलाश करता है। वह समाज के निचले तबके के लोगों की ओर मुड़ता है और उनके ‘आहत अनस्तित्व’ को छूने के लिए अपने प्राणदायी हाथ बढ़ाता है।

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Description

रोज़ एक कहानी –
मंटो की यह विशेषता है कि वह अपनी कहानियों में, अपने निजी दृष्टिकोण और विचारधारा के साथ, दख़लअन्दाज़ी की हद तक पूरे-का-पूरा मौजूद रहता है। अपने पात्रों की ख़ुशियों के साथ, वह उनकी तकलीफ़ और दुख भी सहता है। यही वजह है कि उनकी कहानियों में संस्मरण का हल्का-सा रंग हमेशा झलकता है-क़िस्सागोई का वह स्पर्श, जो किसी बयान को यादगार बनाने के लिए बहुत ज़रूरी है।
लेकिन यह क़िस्सागोई महज़ दिलचस्पी पैदा करने के लिए, सिर्फ़ चन्द गाँठ के पूरे और दिमाग़ के कोरे ‘साहित्य प्रेमियों का मनोरंजन करने के लिए नहीं है। क़िस्सागोई का यह अन्दाज़ एक ओर तो आम आदमी को इस बात का अहसास कराता है, कि मंटो उनके साथ है, उनके बीच है, वह सारे दुख-सुख महसूस कर रहा है, जो आम आदमी की नियति है, दूसरी ओर यह भी बताता है कि ये कहानियाँ मंटो ने लिखी हैं कि पाठक यह जानें कि उनकी नियति क्यों ऐसी है, जिससे वे अपनी नियति को बदलने के लिए मुनासिब कार्रवाई कर सकें।
यही वजह है कि मंटो, अपने चारों ओर झूठ, फ़रेब और भ्रष्टाचार से पर्दा उठाकर, समाज के उस हिस्से को पेश करता है, जिसे लोग स्वीकार करने से कतराते हैं, या फिर “ऐसा तो होता ही है’ के-से अन्दाज में, एक उदासीन मान्यता देकर, नज़रअन्दाज़ कर देते हैं।
लेकिन व्यक्ति और लेखक-दोनों रूपों में अपनी भूमिका ईमानदारी से निभाने की ज़िम्मेदारी महसूस करते हुए, मंटो न तो कतरा सकता है और न इस सबको नज़रअन्दाज़ ही कर सकता है। वह इस सारे भ्रष्टाचार के रू-ब-रू होकर, उसकी भर्त्सना करता है। लेकिन वह कोरा सुधारक नहीं है, वरन् एक अत्यन्त भाव-प्रवण, सम्वेदनशील व्यक्ति है, इसलिए वह समाज के इस गर्हित पक्ष रंडियों, भड़वों, दलालों, शराबियों में दबी-छिपी मानवीयता की तलाश करता है। वह समाज के निचले तबके के लोगों की ओर मुड़ता है और उनके ‘आहत अनस्तित्व’ को छूने के लिए अपने प्राणदायी हाथ बढ़ाता है।

About Author

सआदत हसन मंटो - (1912-1955) - मंटो जैसी स्वाभाविक कथा-प्रतिमा किसी भाषा के साहित्य में बार-बार पैदा नहीं होती। उनकी कहानियों ने अपने समय में जिन बहसों, विवादों और चुनौतियों को पैदा किया, वे आज भी उतनी ही प्रासंगिक और चुनौतीपूर्ण हैं। 1947 के दंगों ने उनके संवेदनशील मन पर बहुत गहरा असर डाला और उन्होंने ऐसी मार्मिक, मानवीय और तीखी कहानियाँ लिखीं, जो अविस्मरणीय हैं। उनकी कहानी 'टोबा टेक सिंह' विश्व साहित्य में एक कालजयी क्लासिक कहानी का दर्जा पा चुकी है। कहा जाता है कि मंटो कहानी नहीं सोचते थे बल्कि कहानी उन्हें सोचती थी।

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