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Rooptilli Ki Katha-(PB)
Publisher:
Lokbharti
| Author:
SHREE PRAKAS MISHRA
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Lokbharti
Author:
SHREE PRAKAS MISHRA
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹325 ₹260
Save: 20%
In stock
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In stock
ISBN:
SKU
9789388211451
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
प्रस्तुत उपन्यास मेघालय बसनेवाली ख़ासी जनजाति के सांस्कृतिक जीवन पर आधारित है। इसका कालखंड वह समय है जब एक तरफ़ अँग्रेज़ उन्हें ईसाई बनाने में लगा था तो आसपास का हिन्दू नेतृत्व उन्हें हिन्दू बनाने में। जनजाति दोनों से बचकर अपनी स्वतंत्र पहचान बनाए रखना चाह रही थी। उससे उत्पन्न संघर्ष की गाथा इस कृति में एक बढ़िया कहानी के माध्यम से उभरकर आई है। इसके पन्नों से गुज़रते हुए लगता है कि हम उस जीवन को न केवल देख रहे हैं, वरन् उसे जी भी रहे हैं। वहाँ की धूप, पानी, पहाड़, नदी, वायु, धरती, पेड़, पशु अपने समस्त सौन्दर्य, तेज, वेग और जीवन्तता के साथ मौजूद हैं, जिन्हें हम अपनी प्राणवायु में भरते चलते हैं। कवि होने के नाते लेखक का गद्य हमें बहुत आकृष्ट करता है।
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Description
प्रस्तुत उपन्यास मेघालय बसनेवाली ख़ासी जनजाति के सांस्कृतिक जीवन पर आधारित है। इसका कालखंड वह समय है जब एक तरफ़ अँग्रेज़ उन्हें ईसाई बनाने में लगा था तो आसपास का हिन्दू नेतृत्व उन्हें हिन्दू बनाने में। जनजाति दोनों से बचकर अपनी स्वतंत्र पहचान बनाए रखना चाह रही थी। उससे उत्पन्न संघर्ष की गाथा इस कृति में एक बढ़िया कहानी के माध्यम से उभरकर आई है। इसके पन्नों से गुज़रते हुए लगता है कि हम उस जीवन को न केवल देख रहे हैं, वरन् उसे जी भी रहे हैं। वहाँ की धूप, पानी, पहाड़, नदी, वायु, धरती, पेड़, पशु अपने समस्त सौन्दर्य, तेज, वेग और जीवन्तता के साथ मौजूद हैं, जिन्हें हम अपनी प्राणवायु में भरते चलते हैं। कवि होने के नाते लेखक का गद्य हमें बहुत आकृष्ट करता है।
About Author
श्रीप्रकाश मिश्र
ग्राम—जड़हा, ज़िला—कुशीनगर (उ.प्र.) के निवासी श्रीप्रकाश मिश्र एम.ए. ( राजनीति शास्त्र) और एल-एल.एम. हैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय से। विद्यार्थी जीवन में छात्र राजनीति में सक्रिय रहे। बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई में ‘मुक्तिवाहिनी’ के साथ रहे। केन्द्र सरकार की सेवा में रहते हुए उत्तर-पूर्व, कश्मीर, भूटान, बांग्लादेश आदि में रहे। अब इलाहाबाद में रहते हैं और कविता की अनियतकालीन पत्रिका ‘उन्नयन' का संपादन/प्रकाशन करते है। ‘रामविलास शर्मा सम्मान’ के संस्थापक व पुरस्कर्ता हैं।
प्रकाशन : पाँच कविता-संग्रह : ‘मौन पर शब्द’ (1986), ‘शब्द के बारीक तारों से’ (2009), ‘शब्द संभावनाएँ हैं’ (2012), ‘मिअमाड़’ (2015), ‘कि जैसे होना ख़तरनाक संकेत’ (2017); चार उपन्यास : ‘जहाँ बाँस फूलते हैं’ (1996), ‘रूपतिल्ली की कथा’ (2006), ‘जो भुला दिए गए’ (2013), ‘आपरेशन ख़ुदाबख़्श’ (2015); चार आलोचना की पुस्तकें : ‘यह जो आ रहा है हरा’ (1992), ‘यूरोप के आधुनिक कवि’ (2011), ‘चुग की नब्ज़’ (2012), ‘रचना का सच’ (2013) के अलावा चिन्तन की दो पुस्तकें : ‘सोच की दृग छाया’ (2017) और ‘उत्तर आधुनिक अवधारणाएँ’ (2018) प्रकाशित हैं।
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