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Apne Kurukshetra Mein Akela | "अपने कुरुक्षेत्र में अकेला"
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Rom Rom Mein Ram | “रोम-रोम में राम”
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Rajendra Arun
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Rajendra Arun
Language:
Hindi
Format:
Paperback
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ISBN:
SKU
9789355215710
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Page Extent:
260
लगभग पांच सौ साल पहले अयोध्या में रामजी का मंदिर तोड़ दिया गया था। उस जगह पर एक ढांचा बनाकर उसे मस्जिद का नाम दिया गया। हमारे देवताओं की मूर्तियां टुकड़े-टुकड़े करके उसके फर्श और सीढ़ियों में गाड़ दी गईं। पराजित हिंदू जाति इसको रोक नहीं सकी, पर मंदिर टूटने की पीड़ा एक बुरे सपने की तरह पूरे समाज के मन में जलती रही। इस पीड़ा में 74 संघर्ष हो गए। लाखों लोगों ने प्राण दे दिए। कोर्ट में भी 70 सालों तक मामला उलझा रहा।
अब सपना नहीं सत्य है कि मंदिर बन गया है। यह भव्य है। एक हजार साल से अधिक आयु का है। इसमें जन्मस्थान पर रामजी विराजेंगे। आगे राम राज्य की ओर बढ़ना है। समाज के जीवन में और राज्य की संस्थाओं में मर्यादा, शील और पराक्रम लाना है। सभी धर्माधारित जीवन जीएँ। सबको रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और रोजगार मिले। भारत परम वैभव को प्राप्त करे। इस सबका समय आ रहा है।
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Description
लगभग पांच सौ साल पहले अयोध्या में रामजी का मंदिर तोड़ दिया गया था। उस जगह पर एक ढांचा बनाकर उसे मस्जिद का नाम दिया गया। हमारे देवताओं की मूर्तियां टुकड़े-टुकड़े करके उसके फर्श और सीढ़ियों में गाड़ दी गईं। पराजित हिंदू जाति इसको रोक नहीं सकी, पर मंदिर टूटने की पीड़ा एक बुरे सपने की तरह पूरे समाज के मन में जलती रही। इस पीड़ा में 74 संघर्ष हो गए। लाखों लोगों ने प्राण दे दिए। कोर्ट में भी 70 सालों तक मामला उलझा रहा।
अब सपना नहीं सत्य है कि मंदिर बन गया है। यह भव्य है। एक हजार साल से अधिक आयु का है। इसमें जन्मस्थान पर रामजी विराजेंगे। आगे राम राज्य की ओर बढ़ना है। समाज के जीवन में और राज्य की संस्थाओं में मर्यादा, शील और पराक्रम लाना है। सभी धर्माधारित जीवन जीएँ। सबको रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और रोजगार मिले। भारत परम वैभव को प्राप्त करे। इस सबका समय आ रहा है।
About Author
पं. राजेन्द्र अरुण
मॉरीशस में पं. राजेन्द्र अरुण 'रामायण गुरु' के नाम से जाने जाते हैं। उनके अथक प्रयत्न से सन् २००१ में मॉरीशस की संसद् ने सर्वसम्मति से एक अधिनियम (एक्ट) पारित करके 'रामायण सेंटर' की स्थापना की। यह सेंटर विश्व की प्रथम संस्था है, जिसे रामायण के आदर्शों के प्रचार के लिए किसी देश की संसद् ने स्थापित किया; पं. राजेन्द्र अरुण इसके संस्थापक अध्यक्ष रहे ।
२९ जुलाई, १९४५ को भारत के फैजाबाद जिले के गाँव नरवापितम्बरपुर में जनमे पं. राजेन्द्र अरुण ने प्रयाग विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद पत्रकारिता को व्यवसाय के रूप में चुना। सन् १९७३ में वह मॉरीशस गए और मॉरीशस के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. सर शिवसागर रामगुलाम के हिंदी पत्र 'जनता' के संपादक बने। उन्होंने वहाँ रहते हुए 'समाचार' 'यू.एन.आई.' और 'हिन्दुस्थान समाचार' जैसी न्यूज एजेंसियों के संवाददाता के रूप में भी काम किया।
सन् १९८३ से पं. अरुण रामायण के प्रचार-प्रसार के कार्य में जुट गए। उन्होंने नूतन-ललित शैली में रामायण के व्यावहारिक आदर्शों को जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प लिया था । रेडियो, टेलीविजन, प्रवचन और लेखन से वे अपने शुभ संकल्प को जीवनपर्यंत साकार करते रहे ।
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