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Rituraj Ek Pal Ka
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
बुद्धिनाथ मिश्र
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
बुद्धिनाथ मिश्र
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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Category: Hindi
Page Extent:
132
ऋतुराज एक पल का –
अपने समय के मूर्धन्य गीत-कवि बुद्धिनाथ मिश्र की देश-विदेश के काव्यमंचों पर एक ऐसे गीतकार के रूप में प्रतिष्ठा है, जो सामान्यतः प्रेम और श्रृंगार से भरे जीवन-रस को भागवत के पृष्ठों से उतार कर पाठकों और श्रोताओं में समान रूप से वितरित करता है। इस संग्रह का नाम ‘ऋतुराज एक पल का’ भी उसी सन्दर्भ का आभास देता है। मगर इसके गीतों का तेवर बिल्कुल भिन्न है। यहाँ बुद्धिनाथ जाल फेंकनेवाले मछेरे के रूप में नहीं, बल्कि सिर पर मुरेठा बाँधे किसान के बाने में हैं। बुद्धिनाथ जी के पास किसान का पारिवारिक मन है तथा संवेदनशील कवि-हृदय भी है। दोनों मिलकर इन्हें अन्य गीतकारों से अलग करते हैं।
नयी भाव-भूमि पर रचे गये ‘ऋतुराज एक पल का’ के गीतों में जनचेतना के साथ गीतिकाव्य के सारे गुण मौजूद हैं। इनमें युग की धड़कन तथा साधारणजन की पीड़ा है, गेयता है, कोमल भाव हैं तथा जनविरोधी व्यवस्था के प्रति मुखर स्वर है। विषय की नवीनता और शिल्प में निरन्तर बदलाव इन नवगीतों की विशेषता है। व्यंग्य का धारदार प्रयोग गीतकार को रूप, सौन्दर्य एवं श्रृंगार के परम्परागत चौखट से निकालकर खुरदुरे मैदान में ले जाता है और संवेदनशील पाठक के मन में एक टीस जगाता है, जो अनिर्वचनीय है।
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Description
ऋतुराज एक पल का –
अपने समय के मूर्धन्य गीत-कवि बुद्धिनाथ मिश्र की देश-विदेश के काव्यमंचों पर एक ऐसे गीतकार के रूप में प्रतिष्ठा है, जो सामान्यतः प्रेम और श्रृंगार से भरे जीवन-रस को भागवत के पृष्ठों से उतार कर पाठकों और श्रोताओं में समान रूप से वितरित करता है। इस संग्रह का नाम ‘ऋतुराज एक पल का’ भी उसी सन्दर्भ का आभास देता है। मगर इसके गीतों का तेवर बिल्कुल भिन्न है। यहाँ बुद्धिनाथ जाल फेंकनेवाले मछेरे के रूप में नहीं, बल्कि सिर पर मुरेठा बाँधे किसान के बाने में हैं। बुद्धिनाथ जी के पास किसान का पारिवारिक मन है तथा संवेदनशील कवि-हृदय भी है। दोनों मिलकर इन्हें अन्य गीतकारों से अलग करते हैं।
नयी भाव-भूमि पर रचे गये ‘ऋतुराज एक पल का’ के गीतों में जनचेतना के साथ गीतिकाव्य के सारे गुण मौजूद हैं। इनमें युग की धड़कन तथा साधारणजन की पीड़ा है, गेयता है, कोमल भाव हैं तथा जनविरोधी व्यवस्था के प्रति मुखर स्वर है। विषय की नवीनता और शिल्प में निरन्तर बदलाव इन नवगीतों की विशेषता है। व्यंग्य का धारदार प्रयोग गीतकार को रूप, सौन्दर्य एवं श्रृंगार के परम्परागत चौखट से निकालकर खुरदुरे मैदान में ले जाता है और संवेदनशील पाठक के मन में एक टीस जगाता है, जो अनिर्वचनीय है।
About Author
बुद्धिनाथ मिश्र -
जन्म: 1 मई, 1949 को देवधा, समस्तीपुर में।
शिक्षा: अंग्रेज़ी और हिन्दी साहित्य में एम.ए.।
'यथार्थवाद और हिन्दी नवगीत' पर पीएच.डी.।
साहित्यिक कृतियाँ: जाल फेंक रे मछेरे, शिखरिणी, जाड़े में पहाड़ (गीत संग्रह)। नोहर के नाहर, स्वयंप्रभ, स्वान्तःसुखाय, नवगीत दशक, विश्व हिन्दी दर्पण तथा सात मूर्धन्य कवियों के काव्य संकलनों का सम्पादन।
पुरस्कार-सम्मान: अन्तर्राष्ट्रीय पुश्किन सम्मान, दुष्यन्त कुमार अलंकरण, परिवार सम्मान, निराला, दिनकर और बच्चन सम्मान। 'कविरत्न' और 'साहित्य सारस्वत' उपाधि। न्यूयार्क और जोहान्सबर्ग विश्व हिन्दी सम्मेलनों में शिरकत।
'आज' दैनिक में साहित्य और समाचार सम्पादन, यूको बैंक, हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड और ऑयल ऐंड नेचुरल गैस कार्पोरेशन (ओएनजीसी) मुख्यालय में राजभाषा प्रभारी पद से सेवानिवृत्त।
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