Resha-Resha Resham Sa
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‘रेशा-रेशा रेशम सा काव्य संग्रह अपने नाम को सार्थक करता है। इस संकलन की हर रचना उन रेशमी धागों के समान हैं जिनसे मिलकर बनने वाली इस कोमल कृति का मन से किया गया स्पर्श और अवलोकन दोनों ही एक रेशमी आनंद और शालीनता की अनुभूति देते हैं। जिस प्रकार रेशम की उत्पत्ति में छिपा कष्ट, दुःख और परिश्रम अपरोक्ष रहकर, उसे अद्वितीय कांति देता है, यह मार्मिक संग्रह कवि के अनुभवों, विचारों और सपनों से बनी एक ऐसी रेशमी चादर के समान है जिसे आप छू लें तो ओढ़े बिना रह नहीं सकेंगे। ‘ख्वाब, ़ख्याल और ख्वाहिशें’ के बाद ़गज़लों, नज़्मों और र की ़खुर्रम शहज़ाद नूर की यह दूसरी काव्य कृति है। भारतीय नौसेना में कमोडोर नूर के नाम से प्रसिद्ध ़खुर्रम शहज़ाद नूर नौसेना की शिक्षा शाखा में रहते हुए पनडुब्बी-रोधी युद्ध शैली के महाप्रशिक्षक हैं। सैनिक स्कूल भुवनेश्वर में प्राचार्य रहने के बाद संप्रति नौसेना मुख्यालय में निदेशक हैं।.
‘रेशा-रेशा रेशम सा काव्य संग्रह अपने नाम को सार्थक करता है। इस संकलन की हर रचना उन रेशमी धागों के समान हैं जिनसे मिलकर बनने वाली इस कोमल कृति का मन से किया गया स्पर्श और अवलोकन दोनों ही एक रेशमी आनंद और शालीनता की अनुभूति देते हैं। जिस प्रकार रेशम की उत्पत्ति में छिपा कष्ट, दुःख और परिश्रम अपरोक्ष रहकर, उसे अद्वितीय कांति देता है, यह मार्मिक संग्रह कवि के अनुभवों, विचारों और सपनों से बनी एक ऐसी रेशमी चादर के समान है जिसे आप छू लें तो ओढ़े बिना रह नहीं सकेंगे। ‘ख्वाब, ़ख्याल और ख्वाहिशें’ के बाद ़गज़लों, नज़्मों और र की ़खुर्रम शहज़ाद नूर की यह दूसरी काव्य कृति है। भारतीय नौसेना में कमोडोर नूर के नाम से प्रसिद्ध ़खुर्रम शहज़ाद नूर नौसेना की शिक्षा शाखा में रहते हुए पनडुब्बी-रोधी युद्ध शैली के महाप्रशिक्षक हैं। सैनिक स्कूल भुवनेश्वर में प्राचार्य रहने के बाद संप्रति नौसेना मुख्यालय में निदेशक हैं।.
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