SaleHardback
Ravindranath Tagore
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
विष्णु नागर , शृंखला सम्पादक लीलाधर मंडलोई
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
विष्णु नागर , शृंखला सम्पादक लीलाधर मंडलोई
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹225 ₹158
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ISBN:
SKU
9789357753708
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
64
रवीन्द्रनाथ टैगोर –
गुरुदेव के नाम से मशहूर रवीन्द्रनाथ टैगोर भारत के सुविख्यात कवि, कथाकार और चित्रकार तो थे ही, वे विश्व-मनीषा के अग्रगण्य प्रतिनिधि भी थे। कवि लेखक-व्यंग्यकार विष्णु नागर ने उनकी यह जीवन कथा लिखी है, जो बच्चों तथा युवाओं के लिए अत्यन्त हृदय ग्राही है।
रवीन्द्रनाथ टैगोर के बचपन से लेकर उनकी अन्तिम जीवन-यात्रा को जानना-समझना आसान तो लगता है, परन्तु उसे व्यक्त करना कठिन कार्य जान पड़ता है, मगर लेखक ने बड़ी समझ-बूझ के साथ रवीन्द्रनाथ टैगोर के बचपन के दिनों का सूक्ष्म चित्रण किया है। राजसी ठाठ-बाट में टैगोर ने किस तरह अपने घर के समूचे वातावरण को आत्मसात किया और अपने जीवन की नींव रखी, लेखक की क़लम से निकली इस कथा का जानना वाकई में बहुत दिलचस्प है।
टैगोर ने शान्ति निकेतन की स्थापना की और वहाँ पर शिक्षा के ऐसे इन्तज़ाम किये जो प्रकृति और मनुष्य के बीच के रिश्तों को रचनात्मक दिशा देने में सक्षम दिखाई देते हैं। लेखक ने उन दृष्टान्तों का बख़ूबी ज़िक्र किया है, जो मनुष्य को मनुष्य बनाने में सहायक सकते हैं।
यह किताब युवा पीढ़ी और बच्चों के लिए बड़ी उपयोगी सिद्ध होगी, ऐसा हमारा विश्वास है।
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Description
रवीन्द्रनाथ टैगोर –
गुरुदेव के नाम से मशहूर रवीन्द्रनाथ टैगोर भारत के सुविख्यात कवि, कथाकार और चित्रकार तो थे ही, वे विश्व-मनीषा के अग्रगण्य प्रतिनिधि भी थे। कवि लेखक-व्यंग्यकार विष्णु नागर ने उनकी यह जीवन कथा लिखी है, जो बच्चों तथा युवाओं के लिए अत्यन्त हृदय ग्राही है।
रवीन्द्रनाथ टैगोर के बचपन से लेकर उनकी अन्तिम जीवन-यात्रा को जानना-समझना आसान तो लगता है, परन्तु उसे व्यक्त करना कठिन कार्य जान पड़ता है, मगर लेखक ने बड़ी समझ-बूझ के साथ रवीन्द्रनाथ टैगोर के बचपन के दिनों का सूक्ष्म चित्रण किया है। राजसी ठाठ-बाट में टैगोर ने किस तरह अपने घर के समूचे वातावरण को आत्मसात किया और अपने जीवन की नींव रखी, लेखक की क़लम से निकली इस कथा का जानना वाकई में बहुत दिलचस्प है।
टैगोर ने शान्ति निकेतन की स्थापना की और वहाँ पर शिक्षा के ऐसे इन्तज़ाम किये जो प्रकृति और मनुष्य के बीच के रिश्तों को रचनात्मक दिशा देने में सक्षम दिखाई देते हैं। लेखक ने उन दृष्टान्तों का बख़ूबी ज़िक्र किया है, जो मनुष्य को मनुष्य बनाने में सहायक सकते हैं।
यह किताब युवा पीढ़ी और बच्चों के लिए बड़ी उपयोगी सिद्ध होगी, ऐसा हमारा विश्वास है।
About Author
विष्णु नागर -
जन्म 14 जून, 1950 । बचपन और छात्र जीवन शाजापुर (मध्य प्रदेश) में बीता। 1971 से दिल्ली में स्वतन्त्र पत्रकारिता। 1974 ये 1997 तक 'नवभारत टाइम्स' के मुम्बई और फिर दिल्ली संस्करण में विशेष संवाददाता समेत विभिन्न पदों पर कार्य किया। इसी बीच जर्मनी में 'डॉयचे वैले' की हिन्दी सेवा में दो वर्ष तक सम्पादक । 1997 से 2002 तक 'हिन्दुस्तान' में विशेष संवाददाता और बाद में 'कादम्बिनी' मासिक के 2008 तक कार्यकारी सम्पादक । क़रीब दो वर्ष तक संडे नई दुनिया के सम्पादक और क़रीब सवा तीन साल तक 'शुक्रवार' समाचार साप्ताहिक के सम्पादक। इस समय स्वतन्त्र लेखन ।
7 कविता-संग्रह, 8 कहानी-संग्रह, 8 व्यंग्य-संग्रह, एक उपन्यास, आलोचना और साक्षात्कार की पुस्तक समेत 7 लेख व निबन्ध-संग्रह। 'सहमत' संस्था के लिए तीन संकलनों तथा रघुवीर सहाय पर पुस्तक का सह- सम्पादन। सुदीप बनर्जी की कविताओं के चयन का सम्पादन लीलाधर मंडलोई के साथ। मृणाल पांडे के साथ कादम्बिनी में प्रकाशित हिन्दी के महत्त्वपूर्ण लेखकों द्वारा चयनित विश्व की श्रेष्ठ कहानियों का संचयन-बोलता लिहाफ़।
मध्य प्रदेश का 'शिखर सम्मान', 'शमशेर सम्मान', 'व्यंग्य श्री सम्मान', दिल्ली हिन्दी अकादमी का 'साहित्य सम्मान', 'शिवकुमार मिश्र स्मृति सम्मान', उत्तर प्रदेश का 'पत्रकारिता शिरोमणि', 'रामनाथ गोयन्का सम्मान' आदि ।
सम्पर्क : ए-34 नवभारत टाइम्स अपार्टमेंट, मयूर विहार फ़ेज़-1, नयी दिल्ली-110091
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