Rashtriya Naak (PB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Vishnu Nagar
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Rajkamal
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Vishnu Nagar
Language:
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Paperback

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विष्णु नागर का व्यंग्य सबसे पहला हमला हमारी आदतों और ‘कंडीशनिंग्स’ पर करता है—वे आदतें जो हमारे ‘सामान्य नागरिक’ होने के अहं का निर्माण और पोषण करती हैं और जिनके आधार पर हमारी सुविधा और हमारा यथास्थितिवाद खड़ा होता है। यह व्यंग्य हमारे मुहावरों को विचलित कर देता है और हम यकायक, विकल होकर देखते हैं कि हमारे दैनिक जीवन की जो चीज़ें हमें तक़रीबन ‘परम’ प्रतीत होती हैं, सवाल उन पर भी उठाया जा सकता है, और सबसे बड़ी बात कि, उन पर हँसा भी जा सकता है।
स्थितियों के भीतर व्यंग्य की इस उपस्थिति को पकड़ने के लिए कई बार विष्णु नागर का व्यंग्यकार कल्पना और अतिरंजना का सहारा भी लेता है, लेकिन यह उनका यथार्थ से हटना या कटना नहीं है, बल्कि यथार्थ की एक सुलभ परत से आगे जाकर उसकी कुछ दुर्लभ और दुरूह छवियों तक पहुँचने की कोशिश करना है, इसीलिए कई बार ‘चोर की दाढ़ी में तिनका’ और ‘भैंस के आगे बीन बजाना’ जैसे मुहावरे भी उनकी व्यंग्य–रचना के प्रस्थान बिन्दु हो सकते हैं जो किसी व्यंग्य का निशाना होने के लिए इतने निरीह, निर्दोष और निष्पक्ष दिखाई देते हैं लेकिन विष्णु नागर उनसे भी अपना लक्ष्य साध लेते हैं।

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विष्णु नागर का व्यंग्य सबसे पहला हमला हमारी आदतों और ‘कंडीशनिंग्स’ पर करता है—वे आदतें जो हमारे ‘सामान्य नागरिक’ होने के अहं का निर्माण और पोषण करती हैं और जिनके आधार पर हमारी सुविधा और हमारा यथास्थितिवाद खड़ा होता है। यह व्यंग्य हमारे मुहावरों को विचलित कर देता है और हम यकायक, विकल होकर देखते हैं कि हमारे दैनिक जीवन की जो चीज़ें हमें तक़रीबन ‘परम’ प्रतीत होती हैं, सवाल उन पर भी उठाया जा सकता है, और सबसे बड़ी बात कि, उन पर हँसा भी जा सकता है।
स्थितियों के भीतर व्यंग्य की इस उपस्थिति को पकड़ने के लिए कई बार विष्णु नागर का व्यंग्यकार कल्पना और अतिरंजना का सहारा भी लेता है, लेकिन यह उनका यथार्थ से हटना या कटना नहीं है, बल्कि यथार्थ की एक सुलभ परत से आगे जाकर उसकी कुछ दुर्लभ और दुरूह छवियों तक पहुँचने की कोशिश करना है, इसीलिए कई बार ‘चोर की दाढ़ी में तिनका’ और ‘भैंस के आगे बीन बजाना’ जैसे मुहावरे भी उनकी व्यंग्य–रचना के प्रस्थान बिन्दु हो सकते हैं जो किसी व्यंग्य का निशाना होने के लिए इतने निरीह, निर्दोष और निष्पक्ष दिखाई देते हैं लेकिन विष्णु नागर उनसे भी अपना लक्ष्य साध लेते हैं।

About Author

विष्णु नागर

विष्णु नागर का जन्म 14 जून, 1950 को हुआ। उनका बचपन और छात्र जीवन शाजापुर, मध्य प्रदेश में बीता। 1971 से दिल्ली में पत्रकारिता शुरु की और तभी से दिल्ली में हैं।

‘नवभारत टाइम्स’, ‘हिन्दुस्तान’, ‘कादंबिनी’, ‘नई दुनिया’, ‘शुक्रवार’ आदि पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहे। भारतीय प्रेस परिषद एवं महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा की कार्यकारिणी के सदस्य रहे। फिलहाल स्वतंत्र लेखन में सक्रिय हैं।

उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं–‘मैं फिर कहता हूँ चिड़िया’, ‘तालाब में डूबी छह लड़कियाँ’, ‘संसार बदल जाएगा’, ‘बच्चे, पिता और माँ’, ‘कुछ चीज़ें कभी खोई नहीं’, ‘हँसने की तरह रोना’, ‘घर के बाहर घर’, ‘जीवन भी कविता हो सकता है’ तथा ‘कवि ने कहा’ (कविता-संग्रह); ‘आज का दिन’, ‘आदमी की मुश्किल’, ‘कुछ दूर’, ‘ईश्वर की कहानियाँ’, ‘आख्यान’, ‘रात दिन’, ‘बच्चा और गेंद’, ‘पापा मैं ग़रीब बनूँगा’ (कहानी-संग्रह); ‘जीव-जन्तु पुराण’, ‘घोड़ा और घास’, ‘राष्ट्रीय नाक’, ‘देशसेवा का धन्धा’, ‘नई जनता आ चुकी है’, ‘भारत एक बाज़ार है’, ‘ईश्वर भी परेशान है’, ‘छोटा सा ब्रेक’ तथा ‘सदी का सबसे बड़ा ड्रामेबाज’ (व्यंग्य-संग्रह); ‘आदमी स्वर्ग में’ (उपन्यास); ‘कविता के साथ-साथ’ (आलोचना); ‘असहमति में उठा एक हाथ’ (रघुवीर सहाय की जीवनी);

‘हमें देखतीं आँखें’, ‘आज और अभी’, ‘यथार्थ की माया’, ‘आदमी और उसका समाज’, ‘अपने समय के सवाल’, ‘ग़रीब की भाषा’, ‘यथार्थ के सामने’, ‘एक नास्तिक का धार्मिक रोजनामचा’ (लेख और निबन्ध-संग्रह); ‘मेरे साक्षात्कार : विष्णु नागर’ (साक्षात्कार)।

‘सहमत’ संस्था के लिए तीन संकलनों तथा रघुवीर सहाय पर एक पुस्तक का संपादन। परसाई की चुनी हुई रचनाओं का संपादन। नवसाक्षरों एवं किशोरों के लिए भी पुस्तक लेखन।

उन्हें मध्य प्रदेश सरकार के शिखर सम्मान’, हिन्दी अकादमी, दिल्ली के ‘साहित्य सम्मान’, ‘शमशेर सम्मान’, ‘राही मासूम रज़ा साहित्य सम्मान’, ‘व्यंग्य श्री सम्मान’ आदि से सम्मानित किया जा चुका है।

सम्पर्क : vishnunagar1950@gmail.com

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