Rashtra Prem Ki Kahaniyan

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Mayaram Patang
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Mayaram Patang
Language:
Hindi
Format:
Hardback

300

Save: 25%

In stock

Ships within:
1-4 Days

In stock

Book Type

ISBN:
SKU 9788192850702 Categories , Tag
Categories: ,
Page Extent:
16

प्रस्तुत पुस्तक में दी गई कहानियाँ न तो मौलिक हैं, न काल्पनिक, बल्कि सच्ची एवं प्रामाणिक घटनाओं पर आधारित हैं। राष्‍ट्र से बड़ी चीज कोई नहीं है। राष्‍ट्र के प्रति यदि सम्मान नहीं है तो मनुष्य जीवन में किसी भी चीज का सम्मान नहीं कर सकता। लंका विजय के बाद महाबली रावण को परास्त कर जब श्रीराम विजयी हुए तो विभीषण ने उन्हें उपहार-स्वरूप जीती गई लंका देनी चाही। इस पर श्रीराम ने कहा—‘अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते जननी जन्मभूम‌ि‍श्‍च स्वर्गादपि गरीयसी।’ यानी सोने की लंका का आकर्षण भी श्रीराम को मातृभूमि को लौटने के संकल्प से न डिगा पाया। ऐसे सैकड़ों उदाहरण उपलब्ध हैं जब राष्‍ट्र के लिए, राष्‍ट्रवासियों के लिए हजारों-हजार लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। राष्‍ट्र-प्रेम केवल युद्ध में प्राण देकर नहीं बल्कि सकारात्मक योगदान करके प्रदर्शित किया जा सकता है। स्वदेश, स्वभाषा, स्वजन—इन सबके प्रति आदर और समर्पण ही सच्चा राष्‍ट्रप्रेम है। राष्‍ट्रभक्‍ति और राष्‍ट्रप्रेम से ओत-प्रोत कहानियों का प्रेरणाप्रद संकलन, जिसके पढ़ने से निश्‍चय ही एक बेहतर राष्‍ट्र बनाने का संकल्प पूरा होगा।.

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Rashtra Prem Ki Kahaniyan”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

प्रस्तुत पुस्तक में दी गई कहानियाँ न तो मौलिक हैं, न काल्पनिक, बल्कि सच्ची एवं प्रामाणिक घटनाओं पर आधारित हैं। राष्‍ट्र से बड़ी चीज कोई नहीं है। राष्‍ट्र के प्रति यदि सम्मान नहीं है तो मनुष्य जीवन में किसी भी चीज का सम्मान नहीं कर सकता। लंका विजय के बाद महाबली रावण को परास्त कर जब श्रीराम विजयी हुए तो विभीषण ने उन्हें उपहार-स्वरूप जीती गई लंका देनी चाही। इस पर श्रीराम ने कहा—‘अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते जननी जन्मभूम‌ि‍श्‍च स्वर्गादपि गरीयसी।’ यानी सोने की लंका का आकर्षण भी श्रीराम को मातृभूमि को लौटने के संकल्प से न डिगा पाया। ऐसे सैकड़ों उदाहरण उपलब्ध हैं जब राष्‍ट्र के लिए, राष्‍ट्रवासियों के लिए हजारों-हजार लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। राष्‍ट्र-प्रेम केवल युद्ध में प्राण देकर नहीं बल्कि सकारात्मक योगदान करके प्रदर्शित किया जा सकता है। स्वदेश, स्वभाषा, स्वजन—इन सबके प्रति आदर और समर्पण ही सच्चा राष्‍ट्रप्रेम है। राष्‍ट्रभक्‍ति और राष्‍ट्रप्रेम से ओत-प्रोत कहानियों का प्रेरणाप्रद संकलन, जिसके पढ़ने से निश्‍चय ही एक बेहतर राष्‍ट्र बनाने का संकल्प पूरा होगा।.

About Author

जन्म : 26 जनवरी, 1940; ग्राम नवादा, डा. गुलावठी, जिला बुलंदशहर। शिक्षा : एम.ए. (दिल्ली), प्रभाकर, साहित्य रत्‍न, साहित्याचार्य, शिक्षा शास्‍‍त्री। कृतित्व : ‘गीत रसीले’, ‘गीत सुरीले’, ‘चहकीं चिडि़याँ’ (कविता); ‘अच्छे बच्चे सीधे सच्चे’, ‘व्यवहार में निखार’, ‘चरित्र निर्माण’, ‘सदाचार सोपान’, ‘पढ़ै सो ज्ञानी होय’ (नैतिक शिक्षा); ‘व्याकरण रचना’ (चार भाग), ‘ऑस्कर व्याकरण भारती’ (आठ भाग), ‘भाषा माधुरी प्राथमिक’ (छह भाग), ‘बच्चे कैसे हों?’, ‘शिक्षक कैसे हों?’, ‘ (शिक्षण साहित्य); ‘पढ़ैं नर-नार, मिटे अँधियार’ (गद्य); ‘श्रीराम नाम महिमा’, ‘मिलन’ (खंड काव्य); ‘सरस्वती वंदना शतक’, ‘हमारे विद्यालय उत्सव’, ‘श्रेष्‍ठ विद्यालय गीत’, ‘चुने हुए विद्यालय गीत’ (संपादित); ‘गीतमाला’, ‘आओ, हम पढ़ें-लिखें’, ‘गुंजन’, ‘उद‍्गम’, ‘तीन सौ गीत’, ‘कविता बोलती है’ (गीत संकलन)।सम्मान : 1996 में हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा सम्मानित; 1997 में दिल्ली राज्य सरकार द्वारा सम्मानित। संप्रति : ‘सेवा समर्पण’ मासिक में लेखन तथा परामर्शदाता, राष्‍ट्रवादी साहित्यकार संघ (दि.प्र.) के अध्यक्ष; संपादक ‘सविता ज्योति’।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Rashtra Prem Ki Kahaniyan”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED