Rangmanch ke Siddhant (PB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Ed. Mahesh Anand, Devendra Raj Ankur
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Rajkamal
Author:
Ed. Mahesh Anand, Devendra Raj Ankur
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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हिन्दी में एक ऐसी पुस्तक की लम्बे समय से प्रतीक्षा थी जो पूर्व और पश्चिम में प्रचलित नाट्य सिद्धान्तों को एक स्थान पर और सुग्राह्य भाषा में उपलब्ध कराती हो। ‘रंगमंच के सिद्धान्त’ इसी उद्देश्य की पूर्ति करती है। समकालीन रंगमंच के अध्येता महेश आनन्द तथा रंगकर्म के व्यावहारिक और सैद्धान्तिक पक्षों का एक-सी निष्ठा के साथ निर्वाह करते आ रहे सुपरिचित रंगकर्मी देवेन्द्र राज अंकुर के कुशल सम्पादन में तैयार इस पुस्तक में अरस्तू से लेकर भारतेन्दु और फिर बादल सरकार तक के रंग सिद्धान्तों का विवेचन अधिकारी विद्वानों और रंगकर्मियों द्वारा किया गया है।
यह पुस्तक बताती है कि रंगमंच केवल किसी नाट्य-कृति को अभिनेताओं द्वारा मंच पर खेल देना भर नहीं होता। समाज, मनुष्य, उसकी मनोरचना और नियति के साथ रंगमंच के सम्बन्ध को लेकर हर युग में चिन्तक और रंगकर्मी चिन्तन-मनन करते रहे हैं और मानव-जीवन की एक अधिकाधिक विश्वसनीय प्रतिकृति के रूप में रंगकर्म को स्थापित करने के लिए नई-नई शैलियाँ ढूँढ़ते और विकसित करते रहे हैं। उन तमाम सिद्धान्तों-शैलियों को प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है जो अपने समय में रंगकर्म के लिए दिशा-निर्देशक बने और आज भी हमारी सोच को उत्तेजित करते हैं। जिन विचारकों के सिद्धान्तों का विश्लेषण किया गया है, वे हैं: अरस्तू, स्तानिस्लाव्स्की, मेयरहोल्ड, आर्तो, ब्रेष्ट, क्रेग, माइकेल चेख़व, ग्रोतोव्स्की, पीटर ब्रुक, ज़ेआमि, भरत, भारतेन्दु, प्रसाद और बादल सरकार।

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Description

हिन्दी में एक ऐसी पुस्तक की लम्बे समय से प्रतीक्षा थी जो पूर्व और पश्चिम में प्रचलित नाट्य सिद्धान्तों को एक स्थान पर और सुग्राह्य भाषा में उपलब्ध कराती हो। ‘रंगमंच के सिद्धान्त’ इसी उद्देश्य की पूर्ति करती है। समकालीन रंगमंच के अध्येता महेश आनन्द तथा रंगकर्म के व्यावहारिक और सैद्धान्तिक पक्षों का एक-सी निष्ठा के साथ निर्वाह करते आ रहे सुपरिचित रंगकर्मी देवेन्द्र राज अंकुर के कुशल सम्पादन में तैयार इस पुस्तक में अरस्तू से लेकर भारतेन्दु और फिर बादल सरकार तक के रंग सिद्धान्तों का विवेचन अधिकारी विद्वानों और रंगकर्मियों द्वारा किया गया है।
यह पुस्तक बताती है कि रंगमंच केवल किसी नाट्य-कृति को अभिनेताओं द्वारा मंच पर खेल देना भर नहीं होता। समाज, मनुष्य, उसकी मनोरचना और नियति के साथ रंगमंच के सम्बन्ध को लेकर हर युग में चिन्तक और रंगकर्मी चिन्तन-मनन करते रहे हैं और मानव-जीवन की एक अधिकाधिक विश्वसनीय प्रतिकृति के रूप में रंगकर्म को स्थापित करने के लिए नई-नई शैलियाँ ढूँढ़ते और विकसित करते रहे हैं। उन तमाम सिद्धान्तों-शैलियों को प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है जो अपने समय में रंगकर्म के लिए दिशा-निर्देशक बने और आज भी हमारी सोच को उत्तेजित करते हैं। जिन विचारकों के सिद्धान्तों का विश्लेषण किया गया है, वे हैं: अरस्तू, स्तानिस्लाव्स्की, मेयरहोल्ड, आर्तो, ब्रेष्ट, क्रेग, माइकेल चेख़व, ग्रोतोव्स्की, पीटर ब्रुक, ज़ेआमि, भरत, भारतेन्दु, प्रसाद और बादल सरकार।

About Author

महेश आनंद

नाट्य-समीक्षक तथा रंग-अध्येता।

समकालीन भारतीय रंगमंच से गहरा और सक्रिय जुड़ाव।

रंगमंच की शीर्ष पत्रिका नटरंग में कई वर्षों तक संपादन-सहयोग।

प्रकाशित रचनाएँ : कहानी का रंगमंच (1997), जयशंकर प्रसाद : रंगसृष्टि/रंगमंच के लिए नाटक (1998), रंग दस्तावेज़ दो खंड (2008), रंगमंच के सिद्धान्त (देवेन्द्र राज अंकुर के साथ संपादन, 2009)

विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समीक्षाएँ तथा लेख।

संप्रति : दिल्ली कॉलेज ऑफ़ आर्ट् स ऐंड कॉमर्स (दिल्ली विश्वविद्यालय) में अध्यापन।

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