Rang Saptak (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Ed. Chavhan Pramod
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
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Ed. Chavhan Pramod
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Hindi
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Hardback

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‘रंग सप्तक’—पणिक्कर जी के बहुआयामी सात नाटकों का संकलन है। मान लीजिए उनके सात सुरों के समान सात मोतियों को एक धागे में पिरोकर, एक सरगम-धुन रूपी माला बनाने का प्रयास।
इसमें दो खंड हैं। खंड-1 में मूलत: संस्कृत के महान नाटकों के चयनित अंशों को आधार बनाकर पुनर्रचित नाट्यालेखों का समावेश किया गया है। इसकी पुनर्रचना में पणिक्कर जी और नाट्य-लेखक दोनों का सम्मिलित योगदान है। इस खंड में स्वप्नकथा, उत्तररामचरितम् एवं माया समाविष्ट हैं। खंड-2 में पणिक्कर जी के मौलिक, मलयालम में रचित नाटकों के हिन्दी अनुवादों का समावेश किया गया है। इसमें ‘तैया-तैयम’, ‘कलिवेषम्’, ‘अपना-अपना कडम्बा’ एवं ‘स्थित है सूर्य’ समाविष्ट हैं।
पणिक्कर जी के नाटकों में मिथकों, धार्मिक अनुष्ठानों, पारम्परिक एवं लोककथाओं और सामाजिक-राजनैतिक भूमिकाओं का पुनर्व्याख्यान, पुनरोद्धार एवं रूपान्तरण होता है, जो अपने वर्तमान को भूतकाल के माध्यम से खोजने का एक नितान्त मौलिक संसाधन बनता है। पणिक्कर जी इन भूमिकाओं का, परम्परा से लेकर आधुनिक विस्फोटक संक्रमणों पर सटीक टिप्पणी करने के लिए तत्पर रहते हैं। साथ ही वह इन भूमिकाओं के ज़रिए समाज में हो रही घटनाओं के बारे में प्रश्न उठाते हैं, जिसे विशिष्ट वातावरण में प्रस्तुत करके बहुआयामी नाट्यालोक (वैश्विक नाट्य) का परिचय देते हैं, किन्तु अन्तत: नैतिक उत्तर खोजने के लिए दर्शक को उत्प्रेरित कर देते हैं।
पणिक्कर जी की रंग-यात्रा कविता से रंगमंच तक और रंगमंच से कविता तक की एक अन्तर्यात्रा है। वह अपने नाटकों को सही मायने में दृश्यकाव्य के रूप में ढालते हैं। वे अपने गाँव के निजी अनुभवों को काव्यात्मक बनाकर, नाटक के माध्यम से विषयानुरूप दृश्यात्मकता प्रदान कर सौन्दर्यमूलक बनाते हैं। मान लो कि गाँव ही पूर्ण रूप से उनकी रंग-यात्रा का प्रमुख गोमुख है।

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Description

‘रंग सप्तक’—पणिक्कर जी के बहुआयामी सात नाटकों का संकलन है। मान लीजिए उनके सात सुरों के समान सात मोतियों को एक धागे में पिरोकर, एक सरगम-धुन रूपी माला बनाने का प्रयास।
इसमें दो खंड हैं। खंड-1 में मूलत: संस्कृत के महान नाटकों के चयनित अंशों को आधार बनाकर पुनर्रचित नाट्यालेखों का समावेश किया गया है। इसकी पुनर्रचना में पणिक्कर जी और नाट्य-लेखक दोनों का सम्मिलित योगदान है। इस खंड में स्वप्नकथा, उत्तररामचरितम् एवं माया समाविष्ट हैं। खंड-2 में पणिक्कर जी के मौलिक, मलयालम में रचित नाटकों के हिन्दी अनुवादों का समावेश किया गया है। इसमें ‘तैया-तैयम’, ‘कलिवेषम्’, ‘अपना-अपना कडम्बा’ एवं ‘स्थित है सूर्य’ समाविष्ट हैं।
पणिक्कर जी के नाटकों में मिथकों, धार्मिक अनुष्ठानों, पारम्परिक एवं लोककथाओं और सामाजिक-राजनैतिक भूमिकाओं का पुनर्व्याख्यान, पुनरोद्धार एवं रूपान्तरण होता है, जो अपने वर्तमान को भूतकाल के माध्यम से खोजने का एक नितान्त मौलिक संसाधन बनता है। पणिक्कर जी इन भूमिकाओं का, परम्परा से लेकर आधुनिक विस्फोटक संक्रमणों पर सटीक टिप्पणी करने के लिए तत्पर रहते हैं। साथ ही वह इन भूमिकाओं के ज़रिए समाज में हो रही घटनाओं के बारे में प्रश्न उठाते हैं, जिसे विशिष्ट वातावरण में प्रस्तुत करके बहुआयामी नाट्यालोक (वैश्विक नाट्य) का परिचय देते हैं, किन्तु अन्तत: नैतिक उत्तर खोजने के लिए दर्शक को उत्प्रेरित कर देते हैं।
पणिक्कर जी की रंग-यात्रा कविता से रंगमंच तक और रंगमंच से कविता तक की एक अन्तर्यात्रा है। वह अपने नाटकों को सही मायने में दृश्यकाव्य के रूप में ढालते हैं। वे अपने गाँव के निजी अनुभवों को काव्यात्मक बनाकर, नाटक के माध्यम से विषयानुरूप दृश्यात्मकता प्रदान कर सौन्दर्यमूलक बनाते हैं। मान लो कि गाँव ही पूर्ण रूप से उनकी रंग-यात्रा का प्रमुख गोमुख है।

About Author

कावलम नारायण पणिक्कर

जन्म : 28 अप्रैल, 1928

कवि, नाटककार, अनुवादक और एक प्रख्यात नाट्य निर्देशक। भास कृत ‘मध्‍यम व्यायोग’ की मंच प्रस्तुति के साथ आपने भारतीय रंगमंच पर अपनी श्रेष्ठता की छाप छोड़ी। तत्पश्चात् भास कृत ‘कर्णभारम्’, ‘उरुभंगम्’, ‘प्रतिमानाटकम्’, ‘स्वप्नकथा’; कालिदास कृत ‘शाकुन्तलम्’, ‘विक्रमोर्वशीयम्’, ‘मालविकाग्निमित्रम्’ एवं शक्तिभद्र कृत ‘आश्चर्यचूड़ामणि की माया’ आदि अन्य मंच प्रस्तुतियों से आप देश में ही नहीं विदेशों में भी एक वरिष्ठ निर्देशक के रूप में प्रख्यात हुए। आपकी नाट्य संस्था ‘सोपानम्’ को भारत एवं विदेशों के कई प्रमुख नाट्य–उत्सवों में भाग लेने का एवं कार्यशालाएँ आयोजित करने का श्रेय प्राप्त है। आप नाट्यशास्त्र एवं कुट्टियाट्टम्, कथकली, कलरिपायटु, तैयम, पडयानी तथा भारतीय रंगमंच की विभिन्न परम्परागत शैलियों के तत्त्वों—नाट्यधर्मी–लोकमर्धी—का प्रयोग करते हुए अपनी तरह के एक ‘आधुनिक रंगमंच’ की रचना करते हैं, जो हमारे रंगमंच को हमारी ‘जड़ों’ से जोड़े रखता है जिसमें ‘भाव–रस’ की ‘रचना’ एवं ‘प्रस्तुति’ सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं। आपने लोक एवं शास्त्रीय परम्पराओं से प्रेरित होकर कई नाटकों की रचना भी की है तथा कई अंग्रेज़ी और संस्कृत नाटकों का मलयालम में अनुवाद भी किया है।

आपने केरल संगीत अकादमी में सचिव पद से शुरू करके केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी में उपाध्‍यक्ष के पद तक अपनी सेवाएँ प्रदान कीं। नाट्य-लेखन के लिए साहित्य अकादेमी से पुरस्कार सहित आप कई अन्य पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं, जिनमें प्रमुख हैं, निर्देशन के लिए—‘केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्‍कार’—1983 (नई दिल्ली), ‘कालिदास सम्मान’—1995 (मध्य प्रदेश), ‘सीनियर फ़ेलोशिप फ़ॉर ड्रामा’—2000 (केरल संगीत नाटक अकादमी), ‘रत्न सदस्यता’—2002 (केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी) और ‘पद्मभूषण’—2007 (भारत सरकार)।

निधन : 26 जून, 2016

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